Child Labour : 20 वर्ष बाद भी नहीं सुधरे हालात

Child Labour : 20 वर्ष बाद भी नहीं सुधरे हालात

Child Labor: Even after 20 years, the situation has not improved

Child Labor

योगेश कुमार गोयल। Child Labour : बालश्रम की समस्या पूरी दुनिया के लिए एक गंभीर चुनौती बनी है। हालांकि इस समस्या के समाधान के लिए बालश्रम पर प्रतिबंध लगाने हेतु कई देशों द्वारा कानून भी बनाए गए हैं लेकिन फिर भी स्थिति में अपेक्षित सुधार दिखाई नहीं देता। बालश्रम के प्रति विरोध, इसके लिए लोगों को जागरूक करने, बालश्रम की क्रूरता तथा बालश्रम को पूरी तरह समाप्त करने के उद्देश्य से प्रतिवर्ष 12 जून को दुनियाभर में ‘बालश्रम निषेध दिवस’ मनाया जाता है। इसकी शुरूआत ‘अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन’ (इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन) द्वारा वर्ष 2002 में 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों को बाल मजदूरी से बाहर निकालकर उन्हें शिक्षित करने के उद्देश्य से की गई थी।

बच्चों की समस्याओं पर विचार करने के लिए पहला बड़ा अंतर्राष्ट्रीय प्रयास अक्तूबर 1990 में न्यूयार्क में विश्व शिखर सम्मेलन में हुआ था, जिसमें गरीबी, कुपोषण और भुखमरी के शिकार दुनिया भर के करोड़ों बच्चों की समस्याओं पर 151 देशों के प्रतिनिधियों ने विचार-विमर्श किया था। हालांकि चिंता की बात यही है कि बालश्रम निषेध दिवस मनाते हुए 20 वर्ष बीत जाने के बाद भी बाल मजदूरी पर अंकुश नहीं लगाया जा सका है। बढ़ती जनसंख्या, निर्धनता, अशिक्षा, बेरोजगारी, खाद्य असुरक्षा, अनाथ, सस्ता श्रम, मौजूदा कानूनों का दृढ़ता से लागू न होना इत्यादि बालश्रम के अहम कारण हैं। बालश्रम के ही कारण बच्चे शिक्षा से वंचित हो जाते हैं, उनके स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है, बाल अपराध बढ़ते हैं और भिक्षावृत्ति, मानव अंगों के कारोबार तथा यौन शोषण के लिए उनकी गैर कानूनी खरीद-फरोख्त होती है।

अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) की एक रिपोर्ट के मुताबिक (Child Labour) दुनियाभर में 5 और 17 वर्ष की उम्र के बीच 15 करोड़ से ज्यादा बच्चे बाल मजदूरी करने को विवश हैं, जिनमें से 7.3 करोड़ बच्चे बहुत बदतर परिस्थितियों में खतरनाक कार्य कर रहे हैं, जिनमें सफाई, निर्माण, कृषि कार्य, खदानों, कारखानों में तथा फेरी वाले व घरेलू सहायक इत्यादि के रूप में कार्य करना शामिल हैं। आईएलओ के अनुसार हाल के वर्षों में खतरनाक श्रम में शामिल 5 से 11 वर्ष की आयु के बच्चों की संख्या बढ़कर करीब दो करोड़ हो गई है। संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के अनुसार 15 से 24 वर्ष आयु के 54 करोड़ युवा श्रमिकों में से 3.7 करोड़ बच्चे हैं, जो खतरनाक बालश्रम का कार्य करते हैं, जो विश्व की कुल श्रमिक क्षमता का 15 फीसद है और पिछले ढ़ाई वर्षों के कोरोना काल में तो इन आंकड़ों में बड़ी वृद्धि होने का अनुमान है। संयुक्त राष्ट्र द्वारा निर्धारित सतत विकास लक्ष्य के तहत हालांकि वर्ष 2025 तक बाल मजदूरी को पूरी तरह से खत्म करने का संकल्प लिया गया है लेकिन पूरी दुनिया में बालश्रम के आंकड़े जिस प्रकार बढ़ रहे हैं, उसे देखते हुए ऐसा होता संभव नहीं दिखता।

संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनीसेफ) की एक रिपोर्ट में बताया जा चुका है कि दुनियाभर में 13 करोड़ से भी ज्यादा बच्चे किसी न किसी कारण स्कूल नहीं जा पाते। वैसे दुनिया के विभिन्न देशों में बालश्रम को लेकर बच्चों की अलग-अलग आयु निर्धारित की गई है। संयुक्त राष्ट्र संघ के अनुसार श्रम करने वाले 18 वर्ष से कम आयु वालों को बाल श्रमिक माना गया है जबकि आईएलओ के मुताबिक बालश्रम की उम्र 15 वर्ष तय की गई है। अमेरिका में 12 वर्ष अथवा उससे कम उम्र वालों को बाल श्रमिक माना जाता है जबकि हमारे यहां भारतीय संविधान के अनुसार किसी उद्योग, कल-कारखाने अथवा किसी कम्पनी या प्रतिष्ठान में शारीरिक अथवा मानसिक श्रम करने वाले 5 से 14 वर्ष की आयु वाले बच्चों को बाल श्रमिक कहा जाता है।

भारत में भी बाल श्रम, बाल शोषण और बाल व्यापार एक गंभीर समस्या है, जिसके लिए आर्थिक तंगी, भुखमरी इत्यादि अहम कारक हैं। यूनीसेफ के अनुसार दुनियाभर के कुल बाल मजदूरों में 12 फीसदी हिस्सेदारी अकेले भारत की है। हालांकि भारत में बाल श्रम (निषेध व नियमन) अधिनियम 1986 के तहत 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के जीवन एवं स्वास्थ्य के लिए अहितकर माने गए किसी भी प्रकार के अवैध पेशों तथा कई प्रक्रियाओं में नियोजन को निषिद्ध बनाता है। वर्ष 1996 में उच्चतम न्यायालय ने भी अपने फैसले में संघीय और राज्य सरकारों को खतरनाक प्रक्रियाओं तथा पेशों में कार्य करने वाले बच्चों की पहचान करने, उन्हें कार्य से हटाने और गुणवत्तायुक्त शिक्षा प्रदान करने का निर्देश दिया था।

अगर मौजूदा समय में बालश्रम की स्थिति देखें तो करोड़ों बच्चे पढऩे-लिखने, खेलने-कूदने की उम्र में भी उत्तर प्रदेश से लेकर मध्य प्रदेश, जम्मू-कश्मीर से लेकर पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, महाराष्ट्र से लेकर तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, केरल, बिहार से लेकर पश्चिम बंगाल, असम, त्रिपुरा इत्यादि लगभग पूरे देश के विभिन्न हिस्सों में कालीन, दियासलाई, रत्न पॉलिश, ज्वैलरी, पीतल, कांच, बीड़ी उद्योग, हस्तशिल्प, पत्थर खुदाई, चाय बागान, बाल वेश्यावृत्ति इत्यादि कार्यों में लिप्त हैं। एक ओर जहां श्रम कार्यों में लिप्त बच्चों का बचपन श्रम की भ_ी में झुलस रहा है, वहीं कम उम्र में खतरनाक कार्यों में लिप्त होने के कारण ऐसे अनेक बच्चों को कई प्रकार की बीमारियां होने का खतरा भी रहता है। खतरनाक कार्यों में संलिप्त होने के कारण बाल श्रमिकों में प्राय: श्वास रोग, टीबी, दमा, रीढ़ की हड्डी की बीमारी, नेत्र रोग, सर्दी-खांसी, सिलिकोसिस, चर्म-रोग, स्नायु संबंधी जटिलता, अत्यधिक उत्तेजना, ऐंठन, तपेदिक जैसी बीमारियां हो जाती हैं।

हालांकि भारत में बालश्रम को लेकर स्पष्ट आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं लेकिन वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार देश में 5 से 14 वर्ष के 25.96 करोड़ बच्चों में से 1.01 करोड़ बालश्रम की दलदल में धकेले गए थे लेकिन बालश्रम निषेध के लिए बने तमाम कानूनों और उच्चतम न्यायालय के दिशा-निर्देशों के बावजूद यह समस्या कम होने के बजाय निरन्तर बढ़ती गई है। गैर सरकारी आंकड़ों के अनुसार भारत में वर्तमान में पांच करोड़ से ज्यादा बाल मजदूर हैं। आंकड़ों पर नजर डालें तो देश में कुल बाल मजदूरों में से करीब 80 फीसद बच्चे गांवों से ही हैं और खेती-बाड़ी जैसे कार्यों से लेकर खतरनाक उद्योगों और यहां तक कि वेश्यावृत्ति जैसे शर्मनाक पेशों में भी धकेले गए हैं। शहरों तथा कस्बों में तो बच्चे ऐसे माहौल में काम करने को विवश हैं, जहां उनके स्वास्थ्य के साथ खुलकर खिलवाड़ होता है।

बालश्रम (Child Labour) के खिलाफ कार्यरत संगठन ‘बचपन बचाओ आंदोलन’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 7-8 करोड़ बच्चे अनिवार्य शिक्षा से वंचित हैं और इनमें से अधिकांश बच्चे संगठित अपराध रैकेट के शिकार होकर बाल मजदूरी के लिए विवश किए जाते हैं जबकि शेष गरीबी के कारण स्कूल नहीं जा पाते। वर्ष 2011 की जनगणना के आधार पर देश में सेक्टर आधारित बाल मजदूरी पर नजर डालें तो बच्चों की सबसे बड़ी करीब 33 फीसदी आबादी खेती से जुड़े कार्यों में लगी थी जबकि करीब 26 फीसदी बच्चे खेतिहर मजदूर थे। भारत में बाल मजदूरों की सर्वाधिक संख्या देश के पांच बड़े राज्यों उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, महाराष्ट्र तथा मध्य प्रदेश में है। श्रम विशेषज्ञों का मानना है कि बालश्रम केवल गरीबी की ही देन नहीं है बल्कि इसका संबंध समुचित शिक्षा के अभाव से भी है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *