सूपेबेड़ा को सालभर में मिलने लगेगा तेल नदी का फिल्टर किया पानी
- स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव बोले-फिल्टर प्लांट के लिए जल्द जारी होगा टेंडर
- पत्रकारों के सवालों पर कहा-आपदा वाली स्थिति नहीं, हालात पहले से नियंत्रण में
- राज्यपाल आज जा रहीं सुपेबेड़ा के दौरे पर
रायपुर/नवप्रदेश। स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव (health minister ts singhdev) ने कहा कि सूपेबेड़ा (supebeda) में तेल नदी का फिल्टर्ड पानी (filtered water) सालभर में मिलने लगेगा। उन्होंने कहा कि सूपेबेड़ा में फैली किडनी की दीर्घकालिक बीमारी (chronic kidney disease) के मद्देनजर वहां नदी का शुद्ध पानी पहुंचाने के लिए वाटर फिल्टर प्लांट करने के लिए डीपीआर जारी हो गया है।
जल्द ही टेंडर जारी कर दिया जाएगा। ये मानकर चला जाए कि सालभर में वहां तेल नदी का फिल्टर्ड पानी (filtered water) मिलने लगेगा। सिंहदेव स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव (health minister ts singhdev) ने सोमवार को पत्रकारों के साथ गेट-टूगेदर कार्यक्रम में ये बात कही।
गौरतलब है कि राज्यपाल अनुसुईया उइके के सूपेबेड़ा मामले पर चिंता जताए जाने व इसके बाद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की प्रतिक्रिया से इस मामले ने तूल पकड़ लिया। माना जा रहा है कि इसी वजह से स्वास्थ्य मंत्री ने इस मुद्दे पर पत्रकारों से बातचीत की। राज्यपाल मंगलवार को सूपेबेड़ा के दौरे पर भी जा रही हैं।
कार्यक्रम में मंत्री ने सुपेबेड़ा (supebeda) में किडनी की बीमारी से ग्रसित लोगों के इलाज के लिए शासन के द्वारा चलाई जा रही योजनाओंं का ब्योरा दिया। उन्होंने कहा कि करीब 200 से 250 प्रभावित लोग पाए गए हैं। शासन की ओर से इनकेे इलाज व इस रोग की रोकथाम के लिए हर संभव प्रयास किए जा रहे हैं।
पानी के अलावा अन्य चार फैक्टर भी
उन्होंने यह भी कहा कि सूपेबेड़ा में किडनी की बीमारी (chronic kidney disease) फैलने के पीछे की वजह पहले तो दूषित जल ही बताया जा रहा था, लेकिन विशेषज्ञों द्वारा किए जा रहे अध्ययन मेंं दूषित पानी के अलावा अन्य फैक्टर भी हो सकते हैं। इनमें पहला- अनुवांशिकता, दूसरा- बीपी, शुगर, मलेरिया जैसी बीमारियां, पेन किलर का इस्तेमाल, तीसरा- पड़ोसी राज्य में ओडिशा से आने वाली शराब में यूरिया की मात्रा का अधिक होना व चौथा- क्रोनिक किडनी डिसीज ऑफ अननोन इटियोलॉजी (सीकेडीयू या अज्ञात कारण) शामिल हैं।
पत्रकारों के सवालों पर मंत्री ने यह भी कहा कि सूपेबेड़ा के हालात चिंतनीय जरूर हैं लेकिन पहले से नियंत्रण में है। वहां आपदा जैसी कोई चीज नहीं हैं। यदि ऐसा होता तो वहां के लोग वही रहने की बात नहीं करते, तेल नदी पर पुल की मांग नहीं करते, जो जल्द ही बनने जा रहा है।
स्वास्थ्य मंत्री ने गिनाएं शासन के ये काम
1. चिकित्सकों के मुताबिक सूपेबेड़ा (supebeda) में एक फीसदी लोगों को डायलिसिस की जरूरत है। देवभोग कम्यूनिटी हेल्थ सेंटर पर डायलिसिस मशीन उपलब्ध करा दी गई है।
2. देवभोग जैसी जगह पर एमडी डॉक्टर को भेजना शासन के लिए चुनौती थी, लेकिन इसमें भी सफलता मिल गई है। वहां एमडी डॉक्टर को तैनात कर दिया गया है।
3. कम्यूनिटी हेल्थ सेेंटर पर ब्लड टेस्ट व पैथोलॉजी संबंधी अन्य जांच की भी सुविधा है।
4. सूपेबेड़ा में जल शुद्धिकरण (water filter) के लिए आरओ प्लांट भी लगाए गए हैं।
5. दूषित जल वाले एक हेंडपंप को सील कर दिया गया है।
6. सूपेबेड़ा को सालभर में तेल नदी का फिल्टर्ड पानी (filtered water) मिलने लगेगा।
प्रथमदृष्ट्या पानी व मिट्टी ही जिम्मेदार: नागरकर
कार्यक्रम में एम्स, रायपुर के डायरेक्टर प्रो. डॉ. नितीन नागरकर भी मौजूद थे। उन्होंने बताया कि एम्स के डॉक्टरों की टीम भी सूपेबेड़ा (supebeda) जाकर प्रभावित लोगों का इलाज कर रही है। अब एम्स के डॉक्टर हर माह सूपेबेड़ा जाएंगे।
नवप्रदेश के यह पूछे जाने पर कि अननोन फैक्टर (सीकेडीयू) को छोड़ दें तो कौन सा कारण ज्यादा खतरनाक है?, नागरकर ने कहा- पानी और मिट्टी। उन्होंने कहा कि प्रथमदृष्ट्या सूपेबेड़ा के पानी में आर्सेनिक , फ्लोरोसिस जैसे तत्व होने के कारण किडनी की बीमारी ( kidney disease) फैल रही है।
मिट्टी की बात करें तो इससे पैदा होने वाले अनाज में भी ये तत्व हो सकते हैं। नागरकर ने कहा कि हालांकि सटीक नतीजे पर पहुंचने केे लिए अध्ययन चल रहा है। साथ ही साथ मरीजों का इलाज भी किया जा रहा है। अब हमारा उद्देश्य प्रभावित लोगों के इलाज के साथ ही इस बीमारी को अन्य लोगों में घर करने से रोकना है।
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