नवप्रदेश साप्ताहिक स्तंभ- बातों...बातों...में...

नवप्रदेश साप्ताहिक स्तंभ- बातों…बातों…में…

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सुकांत राजपूत

मालदारों का मलाईदार अड्डा

प्रदेश का सबसे मालदार खेल इदारों में शुमार है छत्तीसगढ़ क्रिकेट संघ। लेकिन, मालदारों के इस मलाईदार अड्डे में सब एक से बड़े एक खिलाड़ी हैं। मजे की बात यह कि संघ में सब खेलते हैं, लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि मैदान में पूरे फिसड्डी हैं।

एसी केबिन से प्रदेश की क्रिकेट प्रतिभाओं की छंटनी करने वाले महानुभवों ने संघ के वजूद में आने के 5 साल बाद भी सिर्फ कागजों में ही काम किया है। यूं तो राज्य निर्माण के 18 साल बाद जवान हो चुके छत्तीसगढ़ में क्रिकेट प्रतिभाओं की कोई कमी नहीं है। फिर भी सीएससीएस के गठन के सालों बाद पुरूषों की टीम में प्रदेश के युवा खिलाडिय़ों की कोई खास अहमियत नहीं है। रही बात महिला क्रिकेट टीम की तो पूरी संभावनाओं के बाद भी मालदारों ने अब तक सूबे में ढंग की टीम गठित नहीं कर पाई है। सहीं मायनों में तो करोड़ों के फंड और उसकी राशि खर्च कर सीएससीएस के मालदार मजबूत टीम बना सकते थे, पर माल, मलाई के बाद मन होता तब न!

पॉलिटिक्स मिक्स क्रिकेट

पद, पैसा और पॉवर 9 साल से साथ है। पॉलिटिक्स ऐसी रही कि क्रिकेट में गहरी समाती चली गई। जिन्होंने कभी हाथों में बैट-बॉल नहीं थामा वो सूबाई क्रिकेट के दां बन बैठे। सूबे का निजाम बदला तो नजीर पेश करते हुए विरासत भी घर के चिराग को सौंप दी गई। पदों की बंदरबांट में यह भी ख्याल नहीं किया कि संघ में कम से कम नेशनल, इंटरनेशनल या फिर रणजी ही खेले लोगों को पद और पॉवर देते।

पूरे सीएससीएस में खिलाडिय़ों से ज्यादा कारोबारियों को डिसिजन मेकर बना दिया गया। संघ में इक्के-दुक्के जो सच्चे क्रिकेट प्लेयर हैं उन्हें भी साइड लाइन में चेहरा दिखाने के लिए रखा गया है। देशभर के क्रिकेट संघों में कमोबेश हाल ऐसा है कि क्रिकेट में पॉलिटिक्स नहीं बल्कि पूरी पॉलिटिक्स ही क्रिकेट में समा गई है।

नौ साल बाद राजेश क्यों?

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यूं तो सीएससीएस को बने 9 साल हो गए हैं। बीसीसीआई से करोड़ों की मदद भी सालों से ले रहे हैं। फिर सवाल उठता है क्यों संघ का दारोमदार किसी प्रोफेशनल क्रिकेट प्लेयर या स्टार के हाथों में नहीं दिया। ऐसा भी नहीं है कि छत्तीसगढ़ में नेशनल या इंटरनेशनल क्रिकेट प्लेयर ही नहीं है। विडंबना ही है कि छत्तीसगढ़ का खेल गौरव लंबे समय ते अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट मैच खेलने का अनुभव रखने वाले राजेश चौहान की अनदेखी की जाती रही।

भिलाई के बेटे ने ऐसे दौर में प्रदेश का नाम देश-दुनिया में रोशन किया जब तात्कालीन मध्य प्रदेश का राज था और छत्तीसगढ़ के साथ ऐन मौकों पर सियासत हो जाती थी। सियासी चालबाजों की वजह से ही राजेश चौहान को तरजीह सीएससीएस में भी 9 साल बाद मिली। बातों ही बातों में नाराज संघ सदस्य ने बताया कि दिल्ली लेवल पर दबाव बनने के बाद ही संघ में राजेश चौहान जी को स्थान मिला है। हालांकि अब भी उन्हें संघ ने सदस्य के बतौर तो जगह दे दी गई है पर वे चाहकर भी किसी तरह के बदलाव वाले फैसले लेने की स्थिति में अब भी नहीं रहेंगे। वजह साफ है अब भी इंटरनेशनल क्रिकेटर को कारोबारियों ने अपने ही अंडर में रखा है।

एक्को गरीब के लइका नहीं

आदिवासी, छत्तीसगढिय़ा गरीब के लइका के कोनों पूछ-परख नहीं हे। जिला क्रिकेट संघ हो या फिर छत्तीसगढ़ क्रिकेट संघ की टीम से खेलइया टुरा मन गरीबहा नहीं है। कोनों अफसर के त कोई मालदार के टुरा ल जम्मो संघ के मुखिया ह खेलवावथे। बचे-खुचे लइका मन ला भारी दबाव के बाद बॉलर बना के ही रखे हे क्रिकेट संघ के खेवईया मन। कहने का मतलब साफ है बीसीसीआई और अन्य जरिये से प्रदेश की क्रिकेट टीम व प्रतिभा को चुनने, बनाने के लिए खेल के माहिर को जिम्मा नहीं दिया गया है। नतीजतन क्रिकेट संघ में मोटी फीस लेकर जिन बच्चों को प्रशिक्षण दिया जा रहा है उन्हें ही तवज्जों भी मिलती है।

साफ हो जाता है कि क्रिकेट के लिए तैयार की जाने वाली नई पीढ़ी हो या फिर जरा सी मेहनत के बाद तैयार खिलाडिय़ों को आगे बढ़ाने के लिए किया जाने वाला प्रयास सभी उच्च या उच्च मध्यमवर्गीय तबके के बच्चे हैं। बातों ही बातों में हम वर्ग में क्रिकेट को नहीं बांट रहे अगर वाकई में उच्च वर्ग का युवा खिलाड़ी बेहतरीन हैं तो उसे भी मौका दें पर बस्तर, रायपुर, सरगुजा, दुर्ग, राजनांदगांव और रायगढ़ जैसे संभागों से भी गरीब पर काबिल लोगों का चयन किया जाए।

कितना मिला, कहां हुआ खर्च!

जिला हो या छत्तीसगढ़ क्रिकेट संघ उन्हें मिलने वाले फंड की पाई-पाई का हिसाब होना जरुरी है। वह इसलिए कि पैसा ही बनाता है और यही पैसा लालच में पूरी व्यवस्था को बदतर भी कर देता है। चंद बड़े खेल पत्रकारों या मीडिया घरानों से दोस्ताना और नजराने के भरोसे मोटे-मोटे अक्षरों में खबरें छपवाकर फिजूलखर्च करने वालों से हिसाब मांगा जाना जरुरी है। यह आसान भी हो गया है क्योंकि बीसीसीआई जैसे इदारों से फंड रिलीज हो रहा है तो वह सालाना कितना है, कहां और क्रिकेट हित में कितना व्यय हुआ यह आरटीआई के दायरे में है।

वो बात अलग है कि क्रिकेट के नामधारियों के प्रभाव या दबाव में कई बड़े खेल पत्रकार चुप्पी साधे हैं पर खेल की राशि में खेल करने वालों के लिए अगर कष्टप्रद है तो वह समझदारी से ऐसों का पर्दाफाश करने आगे आएं, कारवां खुद ब खुद बनता चला जाएगा। बातों ही बातों में एक क्रिकेट प्रेमी ने कहा अब छत्तीसगढिय़ा सीएम से ही कुछ उम्मीद है।

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