छत्तीसगढ़, मप्र में सीनियर पुलिस अफसर जूनियर को ज्यादा बताते हैं घर का काम |

छत्तीसगढ़, मप्र में सीनियर पुलिस अफसर जूनियर को ज्यादा बताते हैं घर का काम

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  • सीएसडीएस के सर्वे में खुलासा

रायपुर/नई दिल्ली। नवप्रदेश छत्तीसगढ़ व मध्य प्रदेश (chhattisgarh and madhya pradesh) में पुलिसकर्मियों (police personnel) को उनके वरिष्ठ अफसर अपने घर का काम (household work) अन्य राज्यों के अफसरों की तुलना में ज्यादा बताते हैं।
जबकि सेवा शर्तों के मुताबिक पुलिसकर्मी अफसरों के घर का काम करने के लिए बाध्य नहीं है। कॉमन कॉज एंड सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसायटी (सीएसडीएस) की सर्वे रिपोर्ट में यह बात सामने आई है। रिपोर्ट का नाम भारत में पुलिस की स्थिति- 2019 है।

रिपोर्ट के मुतबिक, मध्य प्रदेश के 63 फीसदी पुलिसकर्मियों ने कहा कि उनके अफसर उन्हें व्यक्तिगत या घर का काम करने के लिए कहते हैं। इसके बाद दूसरा नंबर है छत्तीसगढ़ का, जहां के 57 फीसदी पुलिसकर्मियों ने भी यही बात कही है। कुल 21 राज्यों में 12 हजार पुलिसकर्मी व उनके 10595 परिजन से बात कर यह रिपोर्ट तैयार की गई है।

सर्वे के मताबिक, अनुसूचित जनजाति के पुलिसकर्मियों (32 फीसदी) को ऐसा सबसे ज्यादा लगता है कि उनसे अफसर अपने घर का या निजी काम कराते हैं। इसके बाद ऐसा अहसास करने वालों में अनुसूचित जाति (28 फीसदी) व ओबीसी (26फीसदी) वर्ग के पुलिसकर्मी हैं।

सर्वे में राज्य से जुड़ीं ये खास बातें भी :

वरिष्ठों से बुरी भाषा भी सुननी पड़ती है :

यहीं नहीं सर्वे में चौंकाने वाली बात यह भी सामने आई है कि कनिष्ठ स्तर के पुलिसकर्मियों को अपने वरिष्ठों के मुंह से बुरी भाषा भी सुनना पड़ती है। सर्वे के मुताबिक, देशभर मेंं हर पांच पुलिसकर्मियों में से दो को वरिष्ठों के मुंह से बुरी भाषा सुननी पड़ती है। लेकिन रिपोर्ट की मानें तो इस मामले में भी छत्तीसगढ़, गुजरात व मध्य प्रदेश के अफसर सबसे आगे हैं।

16 घंटे करनी पड़ती है ड्यूटी:

सर्वे में यह बात भी सामने आई है कि छत्तीसगढ़ व मध्य प्रदेश में पुलिसकर्मियों पर काम का इतना बोझ है कि उन्हें हर दिन 16 घंटे ड्यूटी करना पड़ता है। रिपोर्ट के मुताबिक, हालांकि ओडिशा व पंजाब की तुलना में प्रदेश की स्थिति को कुछ हद तक ठीक कहा जा सकता है।

क्योंकि ओडिशा में पुलिसकर्मियों को 18 घंटे व पंजाब में 17 घंटे काम करना पड़ता है। इस हिसाब से ओडिशा की बात करें तो यहां औसतन दो पुलिसकर्मियों में से एक को ओवरटाइम करना पड़ता है। जबकि 10 में से आठ पुलिसवालों को ओवरटाइम का भुगतान भी नहीं किया जाता।

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