Chatha puja 2019 : नहाय खाय से शुरू होगा सूर्योपसना का महापर्व छठ
कृष्ण देव सिंह
हिन्दुस्तान (Hindustan)के लोग कहीं भी रहें , अपनी मिट्टी से जुडे रहना ही उनकी खासियत और पहचान है। उनका दिल हमेशा अपनी संस्कृति और रिवाजों (Culture and customs) के आसपास धड़कता है। देश के विभिन्न अंचलों की तरह ही छत्तीसगढ़ तभा मध्यप्रदेश (CG and MP) में बिहार, झारखण्ड तथा पूर्वांच्चल मूल के परिवारों को अपने राज्य, शहर या गांव से दूर रहने का मलाल तो है परन्तु छठी मइया व उनके पुत्र सूर्यदेव का सम्पूर्ण परिवार की पूजन की लोक पर्व छ्ठ (Chatha puja 2019) को वो परम्परागत रंग में रंगने में को कसर नहीं छोड़ते है।
छ्ठ(Chatha puja 2019) बिहार, झारखण्ड व पूंर्वाच्चल का सर्वाधिक महत्वपूर्ण पर्व है।इसकी महत्ता इतनी है कि बिहारी मूल के लोग दुनिया के किसी भी कोने/हिस्से में रहे,वे अपने पैतृक घर / परिवार जरूर लौटते हैं या लौटने की पुरी कोशिश करते हैं और जो नही जा पाते,वो अपने आसपास ही छोटा – सा बिहार बना लेते है। आज हालात यह है भारत के सभी शहरों/ कस्वों के साथ_ साथ दुनिया के अनेक देशों में छ्ठ पर्व घुमधाम व पुरी श्रद्धा के साथ मनाया जाता है।
सनातन हिन्दु परम्परा में छ्ठ (Chatha puja 2019) एक मात्र ऐसा लोकपर्व है जिसमें किसी भी बाम्मण/ पंडित/ पुजारी/ पंडा की को भूमिका नहीं होती और न ही किसी देवी- देवता की मूर्ति / चित्र की पूजा की जाती है। इतना ही नहीं छ्ठ पर्व की तैयारी में घर/ पुरे गाँव/ शहर/कसवा/मुहल्ला की साफ सफा व्यक्तिगत/ सामुहिक रन्प से बिशेष तौर पर की जाती है।
अपनी ऊर्जा से समस्त जगत को चलायमान रखनेवाले सूर्यदेव और उनकी माता अदिति की प्रमुख रूप से अराघना का ये छ्ठपर्व संभवत:सनातन हिन्दू संस्कृति के प्राचीनतम् त्यौहारों में से एक मात्र लोकपर्व है। किंवदंतियों की माने तो दीनानाथ(सूर्यदेव) और छ्ठी मैया(माता) की उपासना चार दिन होती है,लगभग वैसा ही पर्व एक बार महर्षि धौम्य की सलाह पर द्रोपदी ने किया था। सूर्यदेव की उपासना की लगभग समान विधि -विधानों का उल्लेख ॠग्वेद में भी मिलता है।
बैसे जब त्यौहार इतना पुराना हो और उससे गहरा लगाव हो तो आस्था का सैलाब हर कहीं होना स्वाभाविक है।छ्ठपर्व के अवसर पर बिहार जाने वाली हबाईजहाज/ ट्रेन/ बस की टिकटें महीनों पहले आरक्षित हो जाती है। लेकिन अगर वे इस बार घर से दूर हैं तो आप अपने पैतृक प्रान्त का एक प्रतिरूप अपने पास ही तैयार करना चाहते है तो मेरा इस लेख में वार्णित विधि- बिघान आपकी कुछ मदद जरूर कर सकते हैं:
हमारे देशमें सुर्योपासना के लिए प्रसिद्ध पर्व है छ्ठ मूलत: सूर्य षट्टी ब्रत होने के कारण इसे छ्ठ कहा गया है।यह पर्व वर्ष में दो बार मनाया जाता है। पहली बार चैत्र में और दुसरी वार कार्तिक में। चैत्र शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाये जाने वाले छ्ठ पर्व को चैती छ्ठ तथा कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी पर बनाये जाने वाले छ्ठपर्व को कार्तिक( कतकी)छ्ठ कहा जाता है। पारिवारिक सुख -समृद्धि तभा मनोंवांक्षित फलप्राप्ति के लिए छ्ठ पर्व मनाया जाता है।
इस पर्व को स्त्री और पुरूष समान रूप से मनाते हैं। लोक परम्परा के अनुसार सूर्यदेव और षष्ठी मैया का सम्बन्ध पुत्र और माता का है। लोक मातृका षष्ठी की पहली पुजा सूर्य ने ही की थी। छ्ठ पर्व की परम्परा में बहुत गहरा विज्ञान छिपा हुआ है। षष्ठी तिथि (छ्ठ) एक विशेष खगौलीय अवसर है । उस समय. सूर्य की परावैगनी किरणें पृथ्वी की सतह पर सामान्य से अधिक मात्रा में एकत्र हो जाती है। उसके संभावित कुप्रभावों से मानव की यथा संभव रक्षा करने का सामर्थ इस परम्परा में है।
छठ पर्व का धार्मिक महत्व
सूर्मषष्टी अथवा छ्ठ पूजा सूर्योपासना का महोत्सव है। सनातन घर्म के पांच प्रमुख देवताओ मैं से एक सूर्यनारायण हैं। वाल्मीकि रचित रामायण में आदित्य हृदय स्त्रोत ॥ के द्दारा सूर्यदेव का जो स्तवन किया गया है ,उससे उनके सर्वदेवमय सर्वशाक्तिमय स्वरूप का बोध होता है। सूर्य आत्मा जगतस्तस्युषश्च सूर्य सूक्त के इस वेद मंत्र के अनुसार भगवान सूर्य को सम्पूर्ण जगत का आत्मा कहा गया है।
सूर्य का अर्थ सरति आकाशे सुवति कर्माणि लोक प्रेरयति वा वतलाया गया है ,अर्थात आकाश में चलते हुए लोक में जो कर्म की प्रेरणा दे ,उसे सूर्य कहा गया है। पुराणों में सूर्य को प्रत्यक्ष देवता कहा गया है। मोदनी में सूर्य को ग्रह विशेष बतलाया गया है। सूर्य के व्युप्पत्ति लभ्य अर्थ के अनुसार आकाश मण्डल से संचार की प्रेरणा देते हुए जो ग्रहों के राजा है,वही सूर्य है। पौरोहित्य शास्त्र के अनुसार सूर्य का जन्मस्थान कलिन्ग देश,गोत्र-कथ्यप,रक्त-वर्ण है।
ग्रहराज होने के कारण ज्योतिष शास्त्र मानता है कि ग्रहों की अनुकूलता हेतु भगवान भाष्कर की पूजा करनी चाहिए । पूजन में अध्र्य का विघान मिलता है। कहा गया है कि सूयऱ् को अध्र्य.देने से पाप विनिष्ट हो जाते हैं। स्कन्दपुराण में तो स्पष्ट उल्लेख है कि सूर्य कि सूर्य को वगैर अध्र्य दिये भोजन तक नहीं करना चाहिए7पौरोहित्य शास्त्र के अनुसार अध्र्य में आठ बस्तुओं का समावेश अर्थात जल ,दूघ, कुश का अगला भाग, दघि , अक्षत, तिल, यव और सरसों को अध्र्य का अंग बतलाया है।
अध्र्य देने के लिए तांबे एंव पीतल की घातु के लोटे (जलपात्र) का प्रयोग करना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार उगते हुए सूर्य एंव डूबते हुए सूर्य के सामने अध्र्य देना चाहिए । पुराणों के अनुसार सूर्यदेव षष्ठ अर्थात छठवें दिन तेजोमय प्रकाश के साथ माता अदिति के समक्ष प्रकट हुए थे,इसीलिए माता अदिति को छ्ठी -मैइया के स्प में स्तुति की जाती है। ब्रती प्रसिद्ध छ्ठ पूजा के अवसर पर विशेष रन्य से सांय एव प्रात:कालीन सूर्य को अध्र्य देकर सूर्य षष्ठी (छठ) ब्रत का परंम्परागत स्प से अनुपालन कर पवित्रता एंव तपस्या को चरमोत्कर्ष पर पहुंचाते है।
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