chanakya neeti: गायत्री मन्त्र से बढ़कर दूसरा कोई मन्त्र नहीं..
chanakya neeti: गायत्री मन्त्र से बढ़कर जप, तप, ज्ञान और यज्ञ कुछ भी नहीं
chanakya neeti: सच्चा सुख न गृहस्थ में है और नहीं गृह परिवार के त्याग में, अपितु सच्चा सुख तो कर्तव्य पालन में है। अन्न और जल का दान सभी दानों में श्रेष्ठ माना जाता है। अन्न और जल ही जीवन के मूल आधार हैं।
अन्न, बल और सुख का साधन है इसलिए सद्पुरूष अन्न को अन्नदाता, प्राणदाता कहते हैं। जल भी जीवन है। इसी तरह तिथियों में द्वादशी तिथि को श्रेष्ठ माना गया है और गायत्री मन्त्र से बढ़कर दूसरा कोई मन्त्र नहीं माना गया। गायत्री मन्त्र से बढ़कर जप, तप, ज्ञान और यज्ञ कुछ भी नहीं है।
इसी प्रकार जन्म देने वाली माता के समान किसी देव को नहीं माना गया। मां का स्थान देवताओं से भी ऊंचा होता है। अतः इस जीवन को सफल व सुखद बनाने के लिए अन्न, जल का दान करते हुये, द्वादशी का व्रत धारण करना, गायत्री मन्त्र का जाप करना तथा मां की सेवा-सुश्रूषा करने का नियम हर बुद्धिमान पुरूष को अपनाना चाहिए, इसी में मुक्ति है। (chanakya neeti)
यदि ईश्वर की अनुकम्पा (कृपा) से मनुष्य को सुन्दर सच्चरित्र स्त्री, आवश्यकता भर की पूर्ति के लिए पर्याप्त लक्ष्मी, चरित्रवान और गुणवान पुत्र वंशवर्द्धक पोता प्राप्त हो गया है तो उसके लिए स्वर्ग इसी धरती पर है। स्वर्ग में इससे अधिक सुख और क्या मिलेगा?
सच्चरित्र, खूबसूरत स्त्री, धन-सम्पत्ति, गुणवान पुत्र तथा पोता आदि का मिलना अच्छे सौभाग्य का द्योतक है। प्रत्येक व्यक्ति को सब कुछ उपलब्ध नहीं होता, यदि ऐसा होता तो व्यक्ति के लिए पृथ्वी पर ही स्वर्ग हो जाता, ऐसा व्यक्ति के भाग्य से ही सम्भव होता है।(chanakya neeti)
आचार्य चाणक्य (chanakya neeti) कहते हैं कि जिस व्यक्ति की पत्नी पति-परायण होती है और उसके व्यवहारानुकूल होती है, जिसका पुत्र आज्ञाकारी होता है और पिता की आज्ञानुसार आचरण करता है, जो व्यक्ति उपलब्ध धन-सम्पदा में ही सन्तुष्टि पाता है, वही व्यक्ति पृथ्वी पर स्वर्ग का अधिकारी होता है।
इस पृथ्वी-लोक पर उपर्युक्त के अतिरिक्त बातें व्यक्ति को कष्ट देने वाली होती हैं। देखा जाये तो होता यह है कि जिस व्यक्ति की पत्नी पति के अनुकूल होती है तो उसकी सन्तान आज्ञा अवहेलना करने वाली होती है और जिसकी सन्तान अनुकूल होती है, उसकी पत्नी दुराचारिणी होती है।
अतः व्यक्ति का सबसे बड़ा गुण सन्तुष्टि स्वभाव होता है, जो व्यक्ति ऐसा नहीं करता है वह सब कुछ होते हुए भी कष्ट ही पाता है। (chanakya neeti)