chanakya neeti: क्यो आचार्य चाणक्य ने विद्या को गुप्त धन और मां के समान बताया?
chanakya neeti: किंशुक के रक्तवर्ण के पुष्प देखने में तो खूबसूरत लगते हैं, परन्तु उनमें गन्ध नहीं होती इसलिए अच्छे व आकर्षक रंग को लिये रहने पर भी गन्ध रहित होने के कारण उपेक्षित होते हैं। लोगों का ध्यान उनकी ओर आकृष्ट नहीं होता तथा देवताओं के ऊपर चढ़ने से भी वंचित रहते हैं।
इसी तरह उच्च कुल में जन्म लने के पश्चात् रूपवान युवक भी विद्याहीन होने पर समाज में उचित आदर-सम्मान प्राप्त नहीं कर पाते। (chanakya neeti) विद्या के अभाव में उनका ऊंचा वंश, रूप-सौन्दर्य, यौवन सबके सब उपेक्षित हो जाते हैं।
अभिप्राय यह है कि उच्च वंश, सुन्दर रूप और सशक्त यौवन की शोभा विद्या से ही होती है। विद्या के अभाव में ये सब गुण किंशुक के पुष्पों के समान निरर्थक हो जाते हैं।
आचार्य चाणक्य (chanakya neeti) के मुताबिक विद्या समस्त फल देने वाली कामधेनु गाय के समान होती है, कामधेनु के बारे में चर्चित है कि वह सभी इच्छाएं पूर्ण करने वाली व सभी फलों की दाता थी। आज के युग में विद्या ही कामधेनु के समान है।
आचार्य चाणक्य (chanakya neeti) विद्या को गुप्त धन बताते हैं, जो न दिखाई पड़ती हैं, न ही उसका कोई विभाजन कर सकता है और उसके हरण भी सम्भव नहीं है। प्रवास के समय यही विद्या व्यक्ति की सहायक होती है, जो कि मां के समान होती है।
वह कहते हैं कि विद्या सा आभूषण इस सम्पूर्ण पृथ्वी पर और कोई सा नहीं हो सकता, इसलिए व्यक्ति को सर्वप्रथम विद्यार्जन पर ही बल देना चाहिए।