chanakya neeti: मनुष्य का जीवन ऐसा है कि उसे किसी ना किसी की मदद..
chanakya neeti: ऐसे विवेकी पुरुष को पाकर गुण स्वतः ही विकसित हो जाते हैं, जिसे सच-झूठ, धर्म-अधर्म, कर्त्तव्य-अकर्त्तव्य का बोध होता है। इसी में गुणों को अपनी सार्थकता प्रतीत होती है। उदाहरण स्वरूप सोने में जड़ा गया रत्न ही अत्यन्त शोभायमान होता है।
जिस तरह से फूलों की सुगन्ध (chanakya neeti) स्वयं फैलती है, सोने में जड़ा रत्न चमचमाता है, उसी तरह से विचारवान् व्यक्ति के गुणों में स्वतः ही निखार आता है।
मनुष्य सामाजिक प्राणी है, वह समाज में रहना पसन्द करता है, अकेला जीवन वह जी नहीं सकता, जीवन के हर पड़ाव में उसे किसी न किसी के सहारे की जरूरत पड़ती रहती है।
गुणों में परमात्मा (chanakya neeti) के समान होने पर भी मनुष्य अकेला दुःख उठाता है, ठीक उसी प्रकार जैसे अत्यन्त मूल्यवान हीरा सोने के आभूषणों में जड़े जाने की आकांक्षा करता है।