chanakya neeti: आचार्य चाणक्य का यही कहना है कि मनुष्य को हंसों के समान..
chanakya neeti: जलाशय में जल भरा होने पर ही हंस वहां निवास करते हैं। जल सूख जाने पर वे उस जलाशय को छोड़कर अन्यत्र किसी जलाशय पर चले जाते हैं। फिर वर्षाकाल में जल भर जाने पर उसी जलाशय पर लौट आते हैं।
इस प्रकार वे जलाशय को छोड़ते व पुनः उसका आश्रय ग्रहण करते रहते हैं। यहां आचार्य चाणक्य (chanakya neeti) का यही कहना है कि मनुष्य को हंसों के समान इतना स्वार्थी नहीं होना चाहिए कि वह केवल स्वार्थ-सिद्ध होने पर ही उस स्थान पर निवास करें, बाद में छोड़ दें।
यदि एक बार किसी स्थान को छोड़ भी दिया तो कभी वहां नहीं लौटना चाहिए। अपने आश्रयदाता को छोड़ना वह छोड़कर फिर अपनाना मानवता के लक्षण नहीं।
औषधि, धर्म, धन, धान्य और गुरू के मार्गदर्शन (chanakya neeti) वाक्य-इन पांच वस्तुओं का संग्रह अवश्य करें, जो व्यक्ति इन पांचों का संचय नहीं करता वह अपने जीवन को सार्थक नहीं बना सकता। लेकिन उक्त पांचों वस्तुओं का उपयोग सोच-समझकर करना चाहिए, अन्यथा इनके गलत उपयोग से प्राण-हानि तक भी हो सकती है।