chanakya neeti: आचार्य चाणक्य ने कहा यदि आप- परमात्मा की कृपा से अनन्त गुना अधिक मिलता..
chanakya neeti: जो दयालु व्यक्ति दीन-दुखियों को दान देता है, अभाव पीड़ित ब्राहमणों पर दया भाव करके उन्हें श्रद्धापूर्वक दान करता है, और उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति करता है उसे परमपिता परमात्मा की कृपा से अनन्त गुना अधिक मिलता है। उसके जीवन में कभी भी अर्थाभाव नहीं होता।
कहने का अर्थ यह है कि जो व्यक्ति अभाव पीड़ित ब्राहमणों (chanakya neeti) का तथा दीन-दुखियों का यथा सम्भव दान देकर सम्मान करते हैं, ईश्वर उन्हें उससे कई गुना देता है। अतः ब्राहमणों को उदारतापूर्वक दान देने में ही मनुष्य का लाभ है।
इस भू-लोक पर सभी प्रकार के दान, यज्ञ, होम तथा बलि-कर्म नष्ट हो जाते हैं, परन्तु सुपात्र को दिया गया दान तथा सभी जीवों को दिया गया अभयदान न कभी व्यर्थ जाता है न नष्ट होता है। अर्थ यह है कि आत्म-कल्याण के आकांक्षी को जीवनमात्र को अभय दान देने के लिए तत्पर रहना चाहिए। इसी में कल्याण है।
जन्म-जन्मान्तर में प्राणी (chanakya neeti) ने दान देने तथा शास्त्रों के अध्ययन करने का जो अभ्यास किया होता है, नया शरीर मिलने पर उसी अभ्यास के कारण वह सत्कर्मों के अनुष्ठान का अभ्यास करता है।
अग्नि, जल, स्त्री, मूर्ख पुरूष, सर्प और राजकुल से व्यवहार में बड़ी सावधानी रखनी चाहिए, क्योंकि जहां ये मनुष्य के अनुकूल होने पर अभीष्ट मनोरथ प्रदान करते हैं, वहां थोड़ी सी असावधानी होने पर तत्क्षण प्राण भी ले लेते हैं।
अर्थ यह है कि अग्नि, जल, स्त्री, मूर्ख पुरूष, सर्प और राजवंश के प्रति उपेक्षा दिखाना स्वयं मौत को निमन्त्रण देना है। इनके सम्पर्क में आने पर सदैव सावधानी रखनी चाहिए।