chanakya neeti: आचार्य चाणक्य ने कहा-गुणहीन व्यक्ति को दान नहीं देना..
chanakya neeti: जिस प्रकार पानी से भरे तालाब को बदबू और कीचड़ से बचाने के लिए उसका पानी निकालना ही एकमात्र मानव मन का ध्येय होता है, ठीक उसी प्रकार उपार्जित संचित धन को दान दे देना ही उसका सही उपयोग एवं बचाव है।
लक्ष्मी चंचल है वह कभी स्थिर नहीं रह सकती, उपार्जित धन को नष्ट होना है, यह तो निश्चित ही है। (chanakya neeti) अतः नष्ट होने से पूर्व उसे दान में देकर मनुष्य को अपना लोक व परलोक सुधार लेना चाहिए।
यहां आचार्य चाणक्य (chanakya neeti) कहते हैं-बुद्धिमान पुरुषों को सर्दव चाहिए. कि व्यक्ति को ही दान के रुप में धन असहाय अन्य पदार्थ देना चाहिए, गुणहीन व्यक्ति को दान नहीं देना चाहिए।
अपने मन्तव्य को उन्होंने एक उदाहरण स्वरुप लिखा है-समुद्र द्वारा गुणी मेघ को दिया गया खारा जल मेघ के मुंह में जाते ही मीठा बन जाता है और मेघ उस जल की वर्षा करके भूमण्डल के सभी जड़चेतन को जीवन प्रदान करता है।
वर्षा के रुप में मेघ द्वारा बरसाया गया जल, समुद्र द्वारा मेघ को दिए गये जल की अपेक्षा करोड़ों गुणा बढ़ाकर फिर उसी समुद्र में पहुंच जाता है। (chanakya neeti) स्पष्ट है कि समुद्र ने गुणी मेघ को जल दान करके अपने खारे जल को मीठा बना लिया, जड़-चेतन को जीवन प्रदान करने का पुण्य अर्जित किया तथा दिये गये जल से अधिक मात्रा में पुनः जल प्राप्त कर लिया। अतः गुणी को दिया गया दान अति फलदायक होता है।