chanakya neeti: आचार्य चाणक्य ने कहा- उत्तम बुद्धि से अज्ञान का तथा सद्भावना से भय का नाश…
chanakya neeti: दान से दरिद्रता का, सदारचार से दुर्गति का, उत्तम बुद्धि से अज्ञान का तथा सद्भावना से भय का नाश होता है। समान्न व्यक्ति द्वारा किये गये दान की अपेक्षा अभावग्रस्त व्यक्ति द्वारा स्वयं अभावों को झेलते हुए दूसरों के सुख के लिए दान करना अधिक महत्वपूर्ण है। जो व्यक्ति स्वयं कष्ट सहन करके दूसरों के कष्टों को दूर करने में संलग्न रहता है, उसका त्याग वास्तव में ही उल्लेखनीय होता है।
ऐसे उदार दरिद्र के प्रति भगवान सहज ही द्रवित होकर उसका दारिद्रय यथाशीघ्र दूर करते हैं। सदाचार का परीक्षाकाल संकट होता है, संकट के उपस्थित होने पर अपने सदाचार की सुरक्षा में तत्पर व्यक्ति दूसरों की दृष्टि में निश्चित रूप से ही बहुत ऊंचा उठ जाता है।
उसका महत्व अत्यधिक बढ़ जाता है, लोग उसका विशेष आदर करने लगते हैं और उसे इष्ट मित्रों का सहयोग सुलभ हो जाता है, इससे उसका संकट अधिक दिनों तक स्थिर नहीं रह पाता।
जिस प्रकार प्रकाश और अन्धकार एक साथ नहीं रह सकते उसी प्रकार से ज्ञान एवं अज्ञान का भी एक साथ रहना असम्भव है। यदि कोई बुद्धिमान अज्ञानी-सा व्यवहार करे तो वह बुद्धिमान नहीं रह जाता, तात्पर्य यह हुआ कि श्रेष्ठ बुद्धिजीवी का दायित्व अज्ञान का विनाश करना है, किन्तु यदि ऐसा नहीं हो पाता तो बुद्धिजीवी की सात्त्विकता संदिग्ध हो जाती है।