CG: राज्य में आचार संहिता लागू होते हुए भी जारी हुआ आदेश..!

CG: राज्य में आचार संहिता लागू होते हुए भी जारी हुआ आदेश..!

CG: The order was issued despite the code of conduct being implemented in the state..!

paddy milling

क्या कभी बंद होगा धान मिलिंग में अवैध उगाही का खेल?

प्रमोद अग्रवाल
रायपुर/नवप्रदेश। paddy milling: धान के कटोरे में सब कुछ बदल सकता है लेकिन धान और चांवल को लेकर होने वाला भ्रष्टाचार नहीं बदलता है। चाहे सरकार बदले चाहे सिस्टम बदल जाए लेकिन धान के जरिए किया जाने वाला वारा-न्यारा कभी नहीं बदलेगा। राज्य में डबल इंजन की सरकार बन गई है और चुनाव पूर्व धान और चांवल को लेकर प्रारंभ हुई ईडी की जांच शांत हो गई है। इसी व्यवस्था का लाभ उठाकर धान का प्रबंधन देखने वाली एजेंसी मार्कफेड राज्य में चुनाव आचार संहिता लागू होते हुए भी धान और चावल को लेकर ऐसे आदेश प्रसारित कर रही है कि जिससे साफ जाहिर होता है कि इस कार्य में बड़े पैमाने पर वारा-न्यारा किया जा रहा है।


राज्य शासन ने एफसीआई के लिए 1 लाख 54 हजार टन धान मिलिंग (paddy milling) कर उसना चावल बनाने का आदेश प्रसारित किया है और इसके बदले 20 रुपए प्रति क्विंटल यानी 200 रुपए टन राशि की मांग की गई है। 29 मार्च को जारी इस आदेश में कहा गया है कि यह धान सिर्फ दुर्ग, राजनांदगांव और रायपुर जिले के ही राईस मिलर्स को जारी किया जाएगा। जबकि यह धान जशपुर, बलरामपुर, कोरिया, मुंगेली और बेमेतरा में रखा हुआ है।

शासन इसके पूर्व भी 15 मार्च को राज्य में बचे हुए धान का आवंटन कर चुका है। बताया जा रहा है कि उसके लिए भी 60 रुपए प्रति क्विंटल अवैध वसूली की गई है। 29 मार्च को जारी आदेश में यह कहा गया है कि जो भी दुर्ग, राजनांदगांव और रायपुर का राईस मिलर्स इस धान की मिलिंग करना चाहता है उसे एक लाट जशपुर से, एक लाट बलरामपुर से, एक लाट कोरिया से, तीन लाट मुंगेली से दो लॉट बेमेतरा से अनिवार्य रूप से उठाने होंगे। तभी उसे यह मिलिंग मिल पाएगी।


इस आदेश में उल्लेखनीय तत्थ यह है कि राज्य शासन 100 किलोमीटर तक की ढुलाई का भाड़ा स्वयं वहन करती है। उसके अतिरिक्त भाड़ा राईस मिलर्स को देना होता है। इसलिए व्यवस्था यह बनाई जाती है कि जहां धान रखा हो वहां से कम से कम दूरी के राईस मिलर्स को यह धान प्रदाय किया जाए ताकि शासन को धान की ढुलाई का भाड़ा ज्यादा ना देना पड़े। अब यदि इस आदेश को देखा जाए तो राजनांदगांव से जशपुर की दूरी 600 किलोमीटर है और करीब-करीब कोरिया और बलरामपुर की भी यही दूरी बनती है। ऐसे में केवल शासन को न केवल 100 किलोमीटर का भाड़ा देना पड़ेगा बल्कि जो राईस मिलर्स धान उठाएगा।

उसे भी 400 से 500 किलोमीटर का भाड़ा अतिरिक्त देना पड़ेगा। होना तो यह चाहिए था कि जहां धान पड़ा था उसके नजदीकी जिलों में या उसी जिले के राईस मिलर्स (paddy milling) को यह धान दे दिया जाता। या फिर पूरे राज्य के राईस मिलर्स के लिए यह आफर खुले तौर पर जारी किया जाता लेकिन नीजि स्वार्थ और भ्रष्टाचार के कारण ऐसा नहीं किया जा रहा है और यह धान सिर्फ राजनांदगांव, दुर्ग और रायपुर जिले के राईस मिलर्स के लिए दिया जा रहा है। सरकार के लिए दलाली करने वाले लोग मार्कफेड के नाम से 20 रुपए प्रति क्विंटल वसूली कर रहे हैं और जो राईस मिलर्स यह अतिरिक्त राशि प्रदान करेंगा उसे ही धान मिल पाएगा।

इस संदर्भ में दुर्ग राईस मिलर्स एसोशिएशन की एक बैठक 31 मार्च को भी हुई थी। जिसमें अनेक राईस मिलर्स ने 20 रुपए प्रति क्विंटल ज्यादा दिए जाने का विरोध किया है और कहां है कि इतने दूर से धान उठाने पर भाड़ा अधिक दिया जाएगा इसीलिए अतिरिक्त राशि क्यों दिया जाना चाहिए।

इसी बात को लेकर मिलर्स में तना-तनी भी बनी हुई है और इसी वजह से शासन का यह ऑफर तीन दिन हो जाने के बाद भी यह आफर कबुल नहीं किया गया और राईस मिलर्स ने यह धान उठाने से मना कर दिया है। ज्ञातव्य है कि उसना चावल बनाना राईस मिलर्स के लिए ज्यादा आसान होता है और ऐसा चावल बनाने के लिए हमेशा होड़ लगी रहती है। लेकिन सरकार बदलने के बाद से अवैध उगाही पहले से ज्यादा हो गई है इसीलिए राईस मिलर्स परेशान है।

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