Railway Group-D Recruitment Case : सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला, अभ्यर्थियों ने हाई कोर्ट से नौकरी की मांग
Railway Group-D Recruitment Case
रेलवे के ग्रुप-डी पदों पर भर्ती से संबंधित लंबे समय से लंबित प्रकरण में रिव्यू याचिका दायर करने वाले अभ्यर्थियों ने सुप्रीम कोर्ट के एक पूर्व आदेश का हवाला देते हुए हाई कोर्ट से नौकरी देने की मांग की है।
अभ्यर्थियों का कहना है कि सर्वोच्च न्यायालय ने कैट (Central Administrative Tribunal) में याचिका दायर करने वाले उम्मीदवारों को नियुक्ति देने का स्पष्ट निर्देश दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे को दिया था, जिसके अनुपालन में रेलवे प्रशासन ने 197 अभ्यर्थियों को नौकरी भी प्रदान की थी। इसी आदेश को आधार बनाते हुए वर्तमान याचिकाकर्ताओं ने समानता के सिद्धांत के तहत नियुक्ति की मांग की है।
दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे द्वारा वर्ष 2010 में कुल 5,540 ग्रुप-डी पदों के लिए विज्ञापन जारी किया गया था। चयन प्रक्रिया पूरी होने के बाद लिखित परीक्षा की मेरिट सूची के आधार पर अभ्यर्थियों को नियुक्ति पत्र जारी किए गए। हालांकि इनमें से 624 चयनित अभ्यर्थियों ने नौकरी ज्वाइन नहीं की, जिससे बड़ी संख्या में पद रिक्त रह गए। नियमानुसार इन रिक्त पदों पर प्रतीक्षा सूची के अभ्यर्थियों को नियुक्ति दी जानी थी, लेकिन रेलवे प्रशासन ने ऐसा नहीं किया।
इस निर्णय के खिलाफ वर्ष 2014 से 2019 के बीच 197 प्रतीक्षा सूची के अभ्यर्थियों ने कैट में याचिका दायर की, जिसे खारिज कर दिया गया। इसके बाद 110 अभ्यर्थियों ने हाई कोर्ट में रिट याचिका दायर की, लेकिन वहां भी उन्हें राहत नहीं मिली।
हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, जहां वर्ष 2018 में सर्वोच्च न्यायालय ने महत्वपूर्ण आदेश पारित करते हुए कहा कि कैट में आवेदन करने वाले अभ्यर्थियों को नौकरी दी जाए। इस आदेश के अनुपालन में रेलवे प्रशासन ने 197 अभ्यर्थियों को नियुक्ति प्रदान की।
इसके बाद वर्ष 2019 से 2023 के बीच करीब 300 अन्य प्रतीक्षा सूची के अभ्यर्थियों ने पुनः कैट में याचिका दायर की। कैट ने रेलवे को नियुक्ति देने का आदेश दिया, जिसे रेलवे प्रशासन ने हाई कोर्ट में चुनौती दी।
हाई कोर्ट ने 5 दिसंबर 2025 को रेलवे की याचिका खारिज कर दी। इसके बाद 2010 के विज्ञापन के अनुसार शेष 427 रिक्त पदों को भरने के लिए 1,138 प्रतीक्षा सूची के अभ्यर्थियों को मेरिट के आधार पर बुलाने का आदेश पारित किया गया।
इसी क्रम में एक अभ्यर्थी द्वारा रिव्यू याचिका दायर की गई है, जो वर्तमान में लंबित है। सुनवाई के दौरान डिवीजन बेंच ने यह भी कहा कि सार्वजनिक भर्ती की आवश्यकता और योग्य उम्मीदवारों के अधिकारों के संरक्षण के बीच संतुलन बनाए रखना अत्यंत आवश्यक है।
