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Bilaspur में खेमों में बंटी नजर आ रही कांग्रेस, सबके अपने-अपने नेता!

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विधानसभा चुनाव के बाद संगठन और शीर्ष नेता अपने में मस्त

निर्मल माणिक/ बिलासपुर। न्यायधानी बिलासपुर (bilaspur) के कांग्रेस (congress) नेता खेमे में बंटे हुए (divided) दिखाई दे रहे हैं। ये आलम तब है जब करीब डेढ़ दशक बाद कांग्रेस (congress) राज्य की सत्ता में काबिज हुई है। यहीं नहीं राजनीतिक विषकों का मानना है कि स्थानीय नेता (bilaspur) नेता एक दूसरे के काम में मौका पाते ही अड़ंगा लगाने से भी नहीं चूकते दिखाई दे रहे हैं। संगठन खेमा भी एक गुट विशेष के ही साथ है।

विधानसभा चुनाव में अप्रत्याशित रूप से बिलासपुर से टिकट पाने वाले शैलेष पांडेय भाजपा के कद्दावर मंत्री अमर अग्रवाल को हराकर विधायक तो बन गए, लेकिन क्षेत्र के राजनीतिक हल्कों में अब ये चर्चा है कि कई कांग्रेस नेताओं को उनका विधायक बनना रास नहीं आ रहा है। लिहाजा पार्टी यहां खेमे में बंटी हुई (divided) नजर आ रही है।

श्रीवास्तव को मौका नहीं मिलने की भरपाई के प्रयास में विफलता

विधानसभा चुनाव में टिकट से अप्रत्याशित रूप से वंचित कर दिए गए प्रदेश कांग्रेस के वर्तमान उपाध्यक्ष अटल श्रीवास्तव को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने लोकसभा का टिकट दिलाकर विधानसभा में उन्हें मौका न मिलने की भरपाई करने का प्रयास किया और अटल श्रीवास्तव के पक्ष में जमकर प्रचार भी किया लेकिन देश में मोदी लहर के चलते भाजपा का अनजान चेहरे अरुण साव ने बाजी मार ली। अटल श्रीवास्तव चुनाव हार गए।

पांडेय की जीत का ये माना जा रहा कारण


यहीं नहीं बिलासपुर विधानसभा क्षेत्र से 12 हजार वोट से जीतने वाली कांग्रेस लोकसभा चुनाव में 50 हजार वोटों से पिछड़ गई। तब अटल श्रीवास्तव को हराने के आरोप भी लगे। विधानसभा चुनाव में शहर की जनता ने कांग्रेस को जिताया था, जिसको लेकर कहा जाता है कि इसमें स्थानीय कांग्रेस नेताओं का योगदान बहुत ज्यादा नहीं था। मंत्री अमर अग्रवाल को हराने और सबक सिखाने की शहर की जनता ने ठान ली थी। इस कारण नए चेहरे के रूप में शैलेश पांडेय को जनता ने पसंद किया।

जीत का श्रेय लेने की मची होड़

लेकिन कांग्रेस संगठन के कई नेताओं में इसका श्रेय लेने होड़ सी मच गई थी। यहां तक कि निगम चुनाव के दौरान प्रदेश कांग्रेस प्रभारी पीएल पुनिया तक ने विधानसभा चुनाव में जीत के लिए कांग्रेस संगठन की भूमिका को महत्वपूर्ण बताते हुए संगठन के पदाधिकारी को पार्षद के लिए टिकट दिला दी। हालांकि वे चुनाव हार गए । उन्होंने विधायक समर्थक पार्षद का टिकट कटवाकर टिकट हासिल की थी।

निगम चुनाव में ऐसी चली गुटाबजी

स्थानीय राजनीति के जानकार मानते हैं कि बिलासपुर (bilaspur) निगम चुनाव में भी कांग्रेस में जमकर गुटबाजी चली। विधायक खेमा और संगठन खेमा अपने-अपने प्रत्याशियों को जिताने और दूसरों को हराने में लगे रहे। इसके बाद भी निगम में कांग्रेस बहुमत में आ गई। महापौर और सभापति के चुनाव में भी गुटीय राजनीति हावी रही। हालांकि भाजपा ने दोनों पदों के लिए प्रत्याशी खड़े नहीं किए।

जिला पंचायत चुनाव में भी गुटीय राजनीति


इसके बाद जिला पंचायत के चुनाव में सदस्य बनने के लिए खड़े कांग्रेस नेताओं को समर्थन के मुद्दे पर कांग्रेस बंटी नजर आयी। जिला पंचायत अध्यक्ष ,उपाध्यक्ष व समितियों के अध्यक्ष पद को भी लेकर जमकर गुटीय राजनीति हुई। संगठन से जुड़े नेताओं ने भारी रुचि लेकर जिस तरह लोगों का चयन किया उससे नाराजगी खुलकर सामने आ गई। शहर में अटल श्रीवास्तव को मुख्यमंत्री का समर्थक माना जाता है और विधायक शैलेष पांडेय स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव के नजदीकी हैं। हालांकि वे मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से भी अपनी नजदीकी को यदा- कदा प्रगट करने की कोशिश जरूर करते हैं।

श्रीवास्तव का प्रमोशन पर दो धुरियां बरकरार


प्रदेश कांग्रेस कमेटी की कार्यकारिणी का पुनर्गठन किया गया तो अटल श्रीवास्तव को महामंत्री से प्रदेश उपाध्यक्ष और गौरेला पेंड्रा जिले का प्रभारी बना दिया गया। फिर भी विश्लेषक ये मानते हैं कि बिलासपुर में कांग्रेस की राजनीति दो धुरियां हैं। एक का नेतृव अटल श्रीवास्तव कर रहे हैं, कांग्रेस संगठन उनके साथ है। जबकि दूसरी का नेतृत्व विधायक शैलेश पांडेय के हाथों में है, जिनके साथ शहर के युवाओं की टीम है। दोनों नेताओं की कार्यशैली भी अलग-अलग है।

लॉकडाउन में बढ़ी विधायक पांडेय की लोकप्रियता


अब बात आई कोरोना संक्रमण और लॉकडाउन में बिलासपुर (bilaspur) में जनता के बीच सर्वाधिक सक्रिय रहने और जरूरतमंदों तथा गरीबों को राहत पहुचाने का तो इसमें निश्चित ही शहर विधायक शैलेष पांडेय ने बाजी मार ली है। वे लगातार ऐसे सक्रिय रहे हैं मानों पूरे शहर के लिए एकमात्र जिम्मेदार वे ही हैं। कांग्रेस संगठन खेमा नदारद रहा। हालांकि शहर विधायक की लॉकडाउन के दौरान बढ़ती लोकप्रियता के चलते संगठन के नेता भी कुछ दिन के लिए सक्रिय हुए।

राहत पहुंचाने में दूसरे नंबर पर पार्षद रविंद्र सिंह

लॉक डाउन के दौरान राहत पहुंचाने के कार्य में शहर विधायक के बाद दूसरे नम्बर पर कांग्रेस पार्षद रविन्द्र सिंह रहे। शहर विधायक और पार्षद रविन्द्र सिंह दोनों आज भी सक्रिय हैं। शहर के तमाम वार्डों में स्वास्थ्य विभाग का अमला भेज लोगो के स्वास्थ्य की व ट्रेवल टूर की जानकारी लेने में शहर विधायक की भूमिका काफी महत्वपूर्ण रही।

राज्य के बाहर शिक्षा के लिए गए बच्चों को वापस लाने का मामला हो या एसईसीएल सहित अन्य संस्थाओं से मदद लेने का मामला हो शहर विधायक काफी सक्रिय रहे हैं । कुल मिलाकर लॉक डाउन का पालन कराने और सावधानी बरतने का नतीजा यह रहा कि बिलासपुर जिला आज ग्रीन जोन में है लेकिन जिले व जिला मुख्यालय में कांग्रेस खेमा ‘रेड तो नहीं लेकिन ऑरेंज जोन में जरूर है’।

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