अदूरदर्शी नीतियों का खामियाजा भुगत रहे शहरवासी

अदूरदर्शी नीतियों का खामियाजा भुगत रहे शहरवासी

0 अरपा नदी के उन्नयन की बात 15 साल में बहुतों ने की, मगर सूखी अरपा बारहों महीने लबालब कैसे रहे इस पर किसी ने ध्यान नहीं दिया
0 रेत माफियाओं ने अरपा की छाती चीर बेहिसाब रेत निकाल लिया
0 लाखों की संख्या में पेड़ कटाई और शहर से लेकर गांव तक सिर्फ सीसी रोड बनाए जाने से भू- जल स्तर रसातल में चला गया
नवप्रदेश संवाददाता
बिलासपुर। राज्य निर्माण के बाद से ही सीमेंट कंपनियों को लाभ पहुंचाने शहरों से लेकर गांवों तक बेहिसाब सीसी रोड निर्माण और लाखों की संख्या में विकास के नाम पर बेदर्दीपूर्वक पेड़ों की कटाई का असर अब दिख रहा है। नवतपा से भी ज्यादा और भीषण गर्मी से लोग हलाकान है। पानी और बिजली की भारी किल्लत से आमजन को जूझना पड़़ रहा है। सीसी रोड और पेड़ों की ेअंधाधुंध कटाई से जल स्तर इतना नीचे जा चुका है कि बोर सूखते जा रहे हैं। मोहल्लों में गरीब तबकों को पीने के लिए पानी नहीं मिल रहा है। नगर निगम की टेंकर सुविधा अपर्याप्त है। भरी दोपहरी में अकारण घंटों बिजली बंद से लोग घरों में रहकर बेचैन हैं।

आसमान से आग बरस रहा है। तापमान 46, 47 से नीचे उतरने का नाम नहीं ले रहा। राजनैतिक इच्छा शक्ति की कमी और प्रशासन की असफलता से अंत: सलिला अरपा नदी पिछले 15 वर्षों से सूखी पड़ी है और रेत माफिया अरपा का सीना चीरकर बेहिसाब रेत की खुदाई कर रहे हैं। आने वाला समय और भी गंभीर होने वाला है।
छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के बाद सरकार ने प्रदेश के विकास के लिए जितने भी कार्य किए हों मगर एक बात अब स्पष्ट से परिलक्षित हो रहा है कि व्यापक पैमाने पर सीसी रोड बनाने और इसके लिए लाखों पेड़ों की बलि के पीछे मूल उद्देश्य किसी न किसी रुप में सीमेंट कंपनियों को लाभ पहुंचाना रहा है। नतीजन 15 वर्ष बाद जगह-जगह पानी की भयंकर किल्लत और तापमान 44 से 48 और 49 तक भी जा पहुंचा अब तो नवतपा समाप्ति के बाद नवतपा से ज्यादा गर्मी पड़ रही है।
दरअसल सीमेंट कांक्रीटीकरण सड़क के चलते और सड़क के दोनों किनारे जगह नहीं छोडऩे से बारिश का पानी जमीन अंदर जाने के बजाए व्यर्थ बहता गया और जमीन अंदर सूखा रह गया। नतीजन भूजल स्तर तेजी से नीचे जाते गया। सीसी रोड बनाने सड़क चौड़ीकरण के नाम पर सड़क किनारे के बड़े-बड़े छायादार पेड़ लाखों की संख्या में बेरहमी पूर्वक काट दिए गए। पर्यावरण प्रेमियों की आवाज दबा दी गई। पेड़ों के कटने से हरियाली गायब हो गई। तापमान में लगातार वृद्धि इसका प्रमुख कारण है। गांव-गांव में सीसी रोड बन गए। शहरों की गलियों को भी सीसी रोड से पाट दिया गया। बरसात का पानी ऐसे में कहां रुकता। सब नदी में व्यर्थ चला गया। इन 15 वर्षों में एक प्रमुख काम और हुआ। नदी के पानी के बहाव को रोकने जगह-जगह एनीकट तो बना दिया गया, मगर नदी में पानी कैसे आएगा और पर्याप्त बारिश कैसे होगी तथा नदियों की संरक्षा के लिए कारगर कदम नहीं उठाए गए। अरपा नदी में बारहो माह पानी का ढिढोरा पीटते हुए सिर्फ ढकोसला किया गया। अब तो अरपा नदी में पानी तो क्या रेत तक नहीं है। वर्ष 1994 में अरपा नदी बौराई थी उसके बाद 25 वर्ष के भीतर लोग बाढ़ देखने तरस गए। अरपा नदी का उद्गम स्थल बेजार पड़ा है। रेत माफियाओं ने बेधड़क अरपा से रेत निकाल उसका सीना छलनी कर दिया है। सीवरेज जैसे असफल योजना के लिए मुफ्त में अरपा नदी की रेत निकालने की सुविधा देना भी भारी भूल थी।
गलत नीतियों और सीमेंट कंपनियों, बड़े ठेकेदारों को लाभ पहुंचाने की नियत से किए गए कार्यों का खामियाजा आम नागरिक अब भुगत रहे हैं। बिलासपुर जैसे शहर में कमी कभी नहीं रहती थी, मगर आज यही शहर में आधा से ज्यादा आबादी पेयजल संकट से जूझ रहा है। ऐसा संकट इसके पहले कभी नहीं आया। यह चेतावनी है कि अब भी सुधर जाओ अन्यथा यह शहर पानी के बूंद बंूद को तरस जाएगी। अरपा नदी के किनारे रहने वाले संपन्न लोग जिन्होंने अपने घरों में वर्षों पूर्व बोर कराया था उसमें अधिकांश सूख चुके हैं, क्योंकि भूजल स्तर पहली बार इतना नीचे जा चुका कि बोर से पानी नहीं बल्कि हवा निकलती है। शहर के अधिकांश वार्डों के निजी बोर या तो सूखने की स्थिति में हैं या फिर पानी कम आ रहा है। नगर निगम ेके अधिकांश पम्प हाउस के बोर जवाब दे चुके हैं। शहर में ज्यादातर मोहल्लों में टैंकर से पानी की आपूर्ति की जा रही है, मगर वह अपर्याप्त है। सर्वाधिक परेशानी उन गरीब परिवारों को हो रही है जो निगम के पेयजल आपूर्ति पर निर्भर है किराए के मकानों में रहने वाले कमजोर वर्ग के लोगों को पानी मुहैया कराने मकान मालिकों ने हाथ खड़े कर दिए हैं। सुबह-शाम इन परिवारों की महिलाओं और युवतियों को बाल्टी धड़े लेकर पानी के लिए भटकना पड़ रहा है। कुछ लोग मानवीय दृष्टि से और पुण्य का कार्य समझ इन महिलाओं को पानी मुहैया करा रहे हैं, मगर ऐसा कब तक चलेगा? शहर विधायक और पार्षदों की पहल से ज्यादा समस्याग्रस्त वार्डों में नए बोर खुदवाने पहल जरुर किया गया है। अब बात करें बिजली आपूर्ति की तो लोग महसूस कर रहे हैं कि भले ही बिजली बिल हाफ नहीं हुआ था, लेकिन बिजली बंद भी इतना ज्यादा नहीं होता था। बिजली विभाग के अमले पर सरकार के प्रतिनिधियों का नियंत्रण नहीं है। भीषण गर्मी में जहां 5 मिनट भी बिजली बंद हो जाए तो असहज स्थिति हो जाती है मगर यहां तो शहर के कई इलाकों में अकारण बिजली घंटों बंद रहती है। ग्रामीण क्षेत्रों में तो कई-कई दिनों तक बिजली के दर्शन नहीं होते। आखिर सरप्लस राज्य में बिजली का संकट आखिर इतना क्यों है? कही यह सुनियोजित साजिश तो नहीं? मुख्यमंत्री द्वारा बिजली विभाग के कुछ इंजीनियरों पर निलंबन की कार्रवाई के बाद भी स्थिति में सुधार नहीं आया है।

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