अवैध क्लीनिक, पैथोलेब व नर्सिंग होम्स की भरमार

अवैध क्लीनिक, पैथोलेब व नर्सिंग होम्स की भरमार

कमीशनखोरी के चक्कर में मापदंडों को ताक पर रख जारी कर रहे लाइसेंस, स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी उदासीन
नवप्रदेश संवाददाता
बिलासपुर। निजी नर्सिंग होम संचालक नियमों को ताक में रखकर धड़ल्ले से अपनी दुकान चला रहे हैं। कमीशनखोरी के चक्कर में जिम्मेदार स्वास्थ्य विभाग अधिकारी चुप्पी साध रखे हैं। शासन ने लोगों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध कराने नर्सिंग होम एक्ट लागू किया है। इस एक्ट में अवैध रूप से संचालित क्लीनिकों पर कार्रवाई का प्रावधान है, मगर इसके बाद भी जिले में बड़ी संख्या में अवैध रूप से क्लीनिक, पैथोलेब व नर्सिंग होम संचालित किए जा रहे हैं। नर्सिंग होम एक्ट अंतर्गत निर्धारित मापदण्डों को खरा उतरने वाले निजी अस्पताल संचालकों को लाइसेंस जारी किया जाता है। जिले में 100 से अधिक संस्थान बिना इसके संचालित हैं। इनमें कइयों ने प्रक्रिया भी बढ़ई है पर अभी तक सब यथावत है। जिले में स्वास्थ्य विभाग मरीजों के स्वास्थ्य के प्रति गंभीर नहीं हैं। सात साल पहले शासन ने नर्सिंग होम एक्ट लागू किया है, जिसमें ऐसे डॉक्टर ही क्लीनिक संचालन कर सकेंगे जो शासन के गाईड लाइन का पालन करते हों। एक्ट के मापदण्डों के अनुसार जिले में मात्र एमबीबीएस डॉक्टर ही नियम व शर्तो के अनुसार क्लीनिक का संचालन कर सकते हैं। बावजूद इसके एक और दो साल का लैब टेक्निशियन का डिम्लोमा करने वाले भी पैथोलैब चला रहे हैं। वहीं कई लोग पैरामेडिकल कोर्स कर ग्रामीण क्षेत्रों में धड़ल्ले से क्लीनिकों का संचालन भी कर रहे हैं जबकि इसके लिए वे अधिकृत नहीं है। बावजूद इसके स्वास्थ्य विभाग द्वारा अवैध रूप से संचालित अस्पताल संचालकों पर कार्रवाई नहीं की जाती। इस एक्ट के तहत सैकड़ों आवदेकों ने आवेदन विभाग को प्रस्तुत किया था। इनमें गिनती के नर्सिंग होम को मान्यता दी गई है, जबकि आंकड़ों के अनुसार अभी भी कई ऐसे क्लीनिक बिना मान्यता के ही संचालित हो रहे हैं बाजूवद इसके स्वास्थ्य विभाग द्वारा अवैध रूप से संचालित निजी अस्पताल संचालकों के खिलाफ कार्रवाई नहीं की जाती है। इसके अलावा जिले में कई ऐसे क्लिनिक है जहां मरीजों के बैठने तक जगह नहीं रहता। नर्सिंग होम एक्ट के तहत अस्पताल संचालन के लिए निर्धारित जगह, मरीजों के उपचार के लिए पर्याप्त उपकरण सहित विभिन्न सुविधाएं दिया जाना है बावजूद इसके अधिकांश अस्पताल एक ही कमरे में चल रहे हैं। वहीं स्वास्थ्य विभाग अधिकारी बेखबर हैं कई नर्सिंग होम और पैथोलैब सेंटर ऐसे भी हैं, जिन्होंने कार्रवाई के डर से आवश्यक कागजात के लिए विभाग के समक्ष आवदेन किया है। उनसे फाइन के रूप में राशि लेकर संचालन की अनुमति दी गई है। उनके कागजात पूरे होने के बाद वे नर्सिंग होम एक्ट के मापदंड के दायरे में आ जाएंगे। इसमें भी कई क्लीनिक संचालक ने बाद में आवेदन किया है और बिना अनुमति के ही क्लीनिक चला रहे हैं।
सूचना पटल नहीं
क्लीनिक हो या नर्सिंग होम यहां इलाज कराने आए मरीजों को डॉक्टर की परामर्श शुल्क, इलाज से संबन्धित विस्तारपूर्वक जानकरी का सूचना पटल लगाना अनिवार्य है परंतु किसी भी नर्सिंग होम हो या क्लीनिकों में इसे अमल में नहीं लाया जा रहा है।
कई सेंटरों में ट्रेकर मशीनें नहीं
शहर में 14 से अधिक सोनोग्राफी सिटी स्केन सेंटर संचालित हैं। ज्ञात हो की चिरायु योजना के तहत तत्कालीन जिले के तत्कालीन संभाग आयुक्त सोनमणी बोरा ने सभी सेंटरों में ट्रेकर मशीन लगाने के निर्देश दिये थे ताकि भूर्ण हत्याएं न हो इस ट्रेकर के जरिये यह मालूम होगा की किस सोनोग्राफी सेंटर में कितने मरीजों की सोनोग्राफी कौन सी बीमारी के लिए की गई। इसकी मॉनिटरिंग की जिम्मेदारी स्वास्थ्य विभाग के नोडल अधिकारी की होती है, मगर कल नोडल अधिकारी डॉ। अविनाश खरे के रिश्वतखोरी वाले मामले के बाद यह बात साफ है सोंनोग्राफी सेंटर संचालकों को खुली छूट रही न ही कभी सोनोग्राफी मशीन में लगे ट्रेकर की जांच की गई।
डॉ. मधुलिका को दो-दो जिम्मेदारी
स्वास्थ्य विभाग के ज्वाइंट डायरेक्ट डॉ. मधुलिका सिंह से इस बात की जानकारी लेने सम्पर्क किया गया तो उन्होंने फोन रिसीव नहीं किया, जो स्वास्थ्य विभाग में सीएमओ पद भी काबिज है दोहरी जवाबदारियों का बोझ होने से उन्हें फुर्सत ही नहीं मिल पा रहा है या फिर दो-दो जिम्मेदार पद उनके पास होने विभाग के कार्य संभाल नहीं पा रहे हैं।

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