नीतीश के महागठबंधन छोड़ने का वाकया याद दिलाने जनता के बीच उतरेंगे तेजस्वी
- बिहार का महाभारत। जनादेश के अपमान का गड़ा मुर्दा उखाड़ जनता के बीच नीतीश के खिलाफ माहौल बनाएगा विपक्ष
शिशिर सिन्हा/ पटना। बिहार (bihar election 2020) की राजनीति में ‘यू-टर्न’ टर्म एक बार फिर गूंजेगी। किसी बड़े नेता के यू-टर्न लेने की उम्मीद अब नहीं बची है, लेकिन विपक्ष (opposition) मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (nitish kumar ) को पिछले विधानसभा चुनाव में मिले जनादेश का अपमान करने के दोषी के रूप में प्रचारित करने की तैयारी में है।
बिहार (bihar election 2020) में 2015 के विधानसभा चुनाव में नीतीश की पार्टी जनता दल यूनाइटेड (जदयू) ने लालू प्रसाद यादव के राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) को करारी शिकस्त देने के साथ महागठबंधन के विधायकों ने पहले से तय नीतीश कुमार (nitish kumar) को मुख्यमंत्री बनाया था, लेकिन जुलाई 2017 में उन्होंने राजग में वापसी करते हुए अपनी कुर्सी तो कायम रखी, लेकिन एक झटके में सत्तापक्ष से विपक्ष में गए महागठबंधन को बैठे-बिठाए जनादेश के अपमान का मुद्दा दे दिया।
झटके के बाद कुछ महीनों तक महागठबंधन के प्रमुख दलों- राजद और कांग्रेस ने नीतीश को इस मुद्दे पर जमकर घेरा। धोखेबाज, यू-टर्न मास्टर जैसे विशेषण सजाए, लेकिन फिर धीरे-धीरे यह मुद्दा शांत पड़ गया।
अब चुनाव की आहट के साथ ही माना जा रहा है कि नीतीश को आहत करने के लिए विपक्ष (opposition) ने उसी गड़े मुर्दे को जिंदा करने की तैयारी कर ली है। ऐसी तैयारी, जिसमें जनता को हर जगह याद दिलाया जाएगा कि नीतीश कुमार ने पिछले विधानसभा चुनाव में महागठबंधन के लिए जनादेश लिया और बीच में राजग के साथ जाकर जन-मन का अपमान किया।
गतिरोध के बावजूद कायम रही सरकार
243 सदस्यों वाली बिहार विधानसभा में राजद अब भी सबसे बड़ा दल है, लेकिन सरकार से बाहर है। जुलाई 2017 में नीतीश राजग में गए तो उनके पास कुर्सी बचाने के लिए जादुई आंकड़े 122 का जुगाड़ था। तब जदयू के 71 के साथ भाजपा के 53 विधायकों का साथ मिलते ही संख्या पूरी हो गई। रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) के पास राजग के हिस्से के दो विधायक थे ही।
विश्वासमत हासिल करने के बाद से कई बार नीतीश कुमार के राजग में गतिरोध की खबर आई। खासकर, लोकसभा चुनाव के पहले सीट बंटवारे और फिर जीत के बाद केंद्र में एक मंत्रीपद मिलने को लेकर। लेकिन, तमाम गतिरोधों के बीच राज्य में राजग की सरकार कायम रही। विधानसभा चुनाव की आहट के साथ रणनीतिकार से जदयू के दूसरे नंबर के पदाधिकारी बने प्रशांत किशोर राजग को डगमगाने की कोशिश में खुद पार्टी से बाहर हो गए।
…अब जुलाई 2017 की घटना याद दिलाएंगे तेजस्वी
जदयू से बाहर होने के बाद दिल्ली में आम आदमी पार्टी (आप) के लिए कैंपेन करने गए प्रशांत किशोर अब दिल्ली की जीत के साथ बिहार में विपक्ष को नीतीश-भाजपा के खिलाफ कुछ खास मंत्र दें तो आश्चर्य नहीं होगा। लेकिन, अभी सबसे खास बात यही निकल कर सामने आ रही है कि बिहार के मुख्य विपक्षी दल राजद के प्रमुख लालू प्रसाद के जेल में रहने के कारण पूरी तरह कमान संभाल रहे तेजस्वी यादव (tejaswi yadav) जुलाई 2017 के नीतीश के स्टैंड को लेकर जनता के बीच जाने की तैयारी कर रहे हैं। बड़े भाई तेज प्रताप यादव भी तेजस्वी (tejaswi yadav) की इस मुहिम में साथ देने के लिए एक बार फिर राजनीति में सक्रिय हो गए हैं।
बिहार विधानसभा में फिलहाल दलगत स्थिति
जदयू- 70
भाजपा- 54
लोजपा- 02
राजद- 80
कांग्रेस- 26
हम (से) 01
सीपीआई एमएल 03
एआईएमएआईएम 01
स्वतंत्र 05
राजद विधायक के निधन से खाली- 01
प्रशांत किशोर के जाते ही सीटों का बवाल हो गया शांत
प्रशांत किशोर जब तक जदयू में रहे, भाजपा के लिए परेशानी का सबब बने रहे। लोकसभा चुनाव में भाजपा-जदयू को बराबरी की 17-17 सीटें बांटने और छह सीटें लोजपा को देने का फॉर्मूला भी प्रशांत किशोर के कारण ही तय हुआ था। भाजपा और लोजपा की सारी सीटों पर जीत के साथ ही नमो की लहर में जदयू ने भी 17 में से 16 सीटें जीत ली थीं। जदयू ने लोकसभा चुनाव में अपने कई
विधायकों और सांसद उम्मीदवार से काफी नीचे के प्रोफाइल के नेताओं को उतारा, लेकिन नमो लहर में एक को छोड़ सारे निकल गए। तब भी प्रशांत किशोर ने जदयू को बड़ा भाई बताने का शिगूफा छोड़ भाजपा को परेशान किया था और पिछले दिनों हटाए जाने तक इसी नाम पर देश की सरकार चला रही पार्टी को परेशान किए रखा था।
अब सीटों का बवाल शांत है। दिल्ली चुनाव में भाजपा ने तीन से बढ़कर आठ सीटें जीती हैं, इसे वह अच्छा परफॉर्मेंस बताने से नहीं चूक रही। जबकि दूसरी ओर जदयू-लोजपा भी आप के सामने दिल्ली में राजग के लिए ताकत आजमाकर शांत है। दिल्ली के हालात के बाद राजग का कोई भी दल बड़बोलापन की स्थिति में नहीं है। ऐसे में बिहार विधानसभा चुनाव के लिए सीटों पर औपचारिक हल्के गतिरोध से ज्यादा बवाल की स्थिति फिलहाल नहीं बची दिख रही है।
बड़ा भाई मानकर जदयू को ज्यादा सीटें दे सकती है भाजपा
भाजपा बोल भले कुछ भी ले, लेकिन दिल्ली के प्रदर्शन के बाद बिहार में जदयू से टकराव लेकर उतरने की स्थिति में नहीं है। ऐसे भी उसके पास फिलहाल 54 विधायक हैं, जबकि जदयू के पास 70 हैं। इसलिए माना जा रहा हैै कि वह नीतीश को बड़ा भाई मानकर ज्यादा सीटें देगी ही। लोजपा के दो ही विधायक हैं और रामविलास पासवान का पूरा परिवार संसद में ही है, इसलिए इधर से भी ज्यादा दबाव की उम्मीद नहीं है।
इस लिहाज से चर्चा यह भी है कि महागठबंधन में बैठे पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी अपनी पार्टी हिन्दुस्तानी आवामी मोर्चा (हम) सेक्युलर के लिए राजग का दरवाजा खटखटाएं तो भी आश्चर्य नहीं होगा। हम से फिलहाल अकेले मांझी ही विधायक हैं। यानी, कुल मिलाकर राजग के अंदर सीट पर बवाल नहीं होगा हालांकि उसके सीएम फेस नीतीश कुमार को विपक्ष जुलाई 2017 के वाकये को लेकर घेरे जाने से भाजपा को भी थोड़ी मुश्किल जनता के बीच जरूर होगी।