भूपेश उवाच संयोग या प्रयोग
यशवंत धोटे
रायपुर/नवप्रदेश। bhupesh baghel: राजनांदगांव लोकसभा के कांग्रेस प्रत्याशी पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के बैलेट पेपर से चुनाव वाले बयान से कांग्रेस में किसका नफा या नुकसान हुआ या हो रहा है इस पर राजनीतिक प्रेक्षकों की रायशुमारी चल रही है। इस बयान को लेकर भाजपा की शिकायत के बाद रायपुर से लेकर दिल्ली तक चुनाव आयोग सतर्क हो चुका है।
संवैधानिक तौर पर यह तो सही है कि 384 से अधिक प्रत्याशी हो जाने से आयोग को बैलेट पेपर से चुनाव कराना होगा, लेकिन ठीक चलते चुनाव में इस तरह की कवायद व्यवहारिक तौर पर असंभव सी लगती है। वह भी तब जब कांग्रेस के बैंक खाते सीज हो रहे हों। अर्थाभाव के चलते बड़े-बड़े नेता चुनाव लडऩे से डर रहे हों।
वैसे भी पांच साल में कार्यकर्ताओं को आर्थिक तौर पर इतना सक्षम ही नहीं होने दिया कि निर्दलीय चुनाव लडऩे के लिए वह पैसे खर्च कर सके। राजनांदगांव के कार्यकर्ता सुरेन्द्र दाउ ने सबकी ओर से बता ही दिया कि पांच साल क्या हाल रहा। बघेल के इस बयान या कथित कवायद से राजनीतिक तौर पर कांग्रेस के प्रत्याशियों का कितना नफा या नुकसान हो रहा है यह देखने वाली बात है।
दरअसल मीडिया की हेडलाइन यह तो अच्छी लगती है कि दुर्ग से बाहर जाकर लोग चुनाव लड़ रहे हैं तो दुर्ग का दबदबा है, लेकिन इसके स्याह पक्ष को कितने लोग देख या समझ रहे हैं कि पांच साल सरकार चलाने के बाद राज्य की 11 लोकसभा सीटों पर ऐसे कायकर्ता क्यों नही तैयार किए गये जो वहां के हों और वहीं चुनाव लडऩे की ताकत रखते हों।
यह लिखने या दिखाने वाले को गोदी मीडिया और बोलने वाले को भाजपा स्लीपर सेल कह देने से क्या जिम्मेदारी से बचा जा सकता है। दरअसल अपने विधानसभा क्षेत्र पाटन में कांग्रेस प्रत्याशी राजेन्द्र्र साहू के लिए चुनाव प्रचार में दिए गए इस भाषण से दुर्ग लोकसभा के कांग्रेस प्रत्याशी आहत हैं, लेकिन बोल पाने की स्थिति में नहीं हैं। किसी राष्ट्रीय पार्टी के सिम्बाल से पहली बार चुनाव लड़ रहे राजेन्द्र साहू इससे पहले कांग्रेस को हराने के लिए ही चुनाव लड़ते या काम करते रहे हैं। यह कोई नई बात इसलिए नहीं है कि दुर्ग की कांग्रेस की राजनीति की यही नियति है।
कंाग्रेस को दफन करने के सारे नारे यहीं से निकले और पूरे देश में छा गए, लेकिन 2018 में भूपेश बघेल के मुख्यमंत्री बनने के बाद से कांग्रेस की सत्ता व संगठन में राजेन्द्र इतने खास रहे कि अब लोकसभा के प्रत्याशी हैं। अब यह महज संयोग है या प्रयोग यह समझ से परे है कि आज उनके लिए कार्यकर्ताओं के लाले पड़ गये हैं। भिलाई विधानसभा के विधायक देवेन्द्र यादव बिलासपुर लोकसभा के प्रत्याशी बनते ही अपनी पूरी फौज को लेकर बिलासपुर चले गए हैं।
दुर्ग ग्रामीण से विधायक व मंत्री रहे ताम्रध्वज साहू अपनी पूरी टीम के साथ महासमुन्द में हैं। स्वंय पूर्व मुख्यमंत्री व राजनांदगांव लोकसभा प्रत्याशी भूपेश बघेल के लिए पाटन और वैशाली के कार्यकर्ता राजनांदगांव में डटे हैं। वैशालीनगर से मुकेश चन्द्राकर चुनाव लड़े थे वे हार गए, लेकिन उनकी टीम है और वह अभी राजनांदगांव में हैं।
9 विधानसभा क्षेत्रों वाले इस लोकसभा में पाटन से भूपेश बघेल और भिलाई से देेवेन्द्र यादव सिर्फ दो कांग्रेस के विधायक हैं और दोनों अपने क्षेत्रों से बाहर जाकर चुनाव लड़ रहे हैं। ऐसी स्थिति में लोकसभा चुनाव को लेकर कांग्रेस कितनी गंभीर है इससे अंदाजा लगाया जा सकता है। जब सारे पेड़ ही बबूल के बो दिए हों तो आम की उम्मीद करना बेकार है।