Bayanveer Neta : बद्जुबानी पर आखिर रोक कब?
Bayanveer Neta : जैसे ही कोई चुनाव निकट आता है राजनीतिक पार्टियों के बयानवीर नेताओं के बीच जुबानी जंग शुरू हो जाती है। जो बद्जुबानी करने से भी बाज नहीं आते। कर्नाटक विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े ने एक बार फिर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ जहर उगला है। उन्होंने पीएम मोदी को जहरीला सांप कहा है। उनके इस बयान के बाद भाजपा नेताओं ने भी जुबानी हमले तेज कर दिए है। मल्लिकर्जुन खडग़े जैसे वरिष्ठ नेता से यह उम्मीद नहीं की जा रही थी कि वे देश के प्रधानमंत्री के बारे में इस स्तर का बयान देंगे।
इसके पूर्व भी गुजरात विधानसभा चुनाव के दौरान पीएम मोदी के खिलाफ कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बड़बोले नेताओं ने इसी तरह का स्तरहीन बयान दिया था। इसका नतीजा यह निकला कि गुजरात में इन दोनों ही पाटियों को करारी शिकस्त झेलनी पड़ी और भाजपा को प्रचंड बहुमत मिल गया। जुबानी जंग से ही चुनाव नहंीं जीते जाते यह बात इन नेताओं को गांठ बांध कर रख लेनी चाहिए। रही बात प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तो वह विपक्षी नेताओं के ऐसे बयानों को गंभीरता से नहीं लेते है। उनका तो कहना है कि विपक्ष के नेता उन्हें चाहे जितनी गालिया दें वे उनको कोई फर्क नहीं पड़ता, वो तो गालियों को गहना बना लेते है।
दरअसल हर राजनीतिक पार्टी में ऐसे बड़बोले नेताओं की अच्छीखासी फौज है जो चुनाव के दौरान विवादास्पद बयानबाजी करने के लिए जाने जाते है। इस मामले में कोई भी पार्टी अछूती नहीं है।अपमानजनक टीकाटिप्पणी करने और अभद्र भाषा का इस्तेमाल करने वाले ऐसे बयानवीर नेताओं के खिलाफ उनकी पार्टी का आलाकमान कोई कड़ी कार्यवाही भी नहीं करता यही वजह है कि इनके हौसले बुलंद रहते है। यदि कभी कभार ऐसे किसी बड़बोले नेता के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही की भी जाती है तो जल्द ही उनका निलंबन वापस लेकर उन्हे फिर पार्टी में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दे दी जाती है।
पार्टी आलाकमान को यह बात समझनी चाहिए कि बयानवीर नेता अपमानजनक टीकाटिप्पणी कर अपनी ही पार्टी का नुकसान करते है। इसलिए उन्हे ऐसे नेताओं को जुबानदराजी करने से बाज आने की नसीहत देनी चाहिए। मानहानि मामले में राहुल गांधी को सजा और फिर संसद सदस्यता समाप्ति प्रकरण की अपील के बाद जो भी अंतिम कानूनी और राजनीतिक परिणति हो, राजनेताओं की भाषा के गिरते स्तर को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए। विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में भाषा का गिरता स्तर कभी विश्व गुरु कहे गए भारत की प्रतिष्ठा बढ़ाता तो हरगिज नहीं।
राहुल प्रकरण पर कानूनी और राजनीतिक बहस लंबी चलने वाली है लेकिन उसके मूल से सबक सीखने का कोई संकेत नहीं मिलता। राहुल प्रकरण के विरोध में आयोजित कांग्रेस के सत्याग्रह में उनकी बहन और पार्टी की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी ने जिस तरह देश के प्रधानमंत्री को कायर बताते हुए अपने विरुद्ध कार्रवाई की चुनौती दी उससे साफ है कि बदजुबानी को राजनेता अपना विशेषाधिकार समझने लगे हैं।