Bastar Dussehra : निभाई गई “डेरी गड़ाई रस्म”, रथ निर्माण के लिए माई दंतेश्वरी से ली गई आज्ञा
जगदलपुर/नवप्रदेश। बस्तर दशहरा (Bastar Dussehra) का महत्वपूर्ण कार्यक्रम “डेरी गड़ाई रस्म” रविवार को निभाई गई। जगदलपुर के सिरहासार भवन में बस्तर दशहरा समिति के अध्यक्ष व सांसद बस्तर दीपक बैज ने रस्म का निर्वहन किया। मंदिर के मुख्य पुजारी की माने तो बस्तर दशहरा पर्व 75 दिनों तक चलने वाला ऐसा पर्व है जो रस्मों से परिपूर्ण रहता है।
इस अवसर पर समिति के उपाध्यक्ष अर्जुन मांझी,संसदीय सचिव रेखचंद जैन,नारायणपुर विधायक चन्दन कश्यप,महापौर सफिरा साहू,मछुआ कल्याण बोर्ड के अध्यक्ष एम आर निषाद,निगम अध्यक्ष कविता साहू,साँसद प्रतिनिधि सुशील मौर्य,रोजविन दास,समस्त निगम के पार्षदगण,अनवर खान,हेमु उपाध्याय,एम वेंकट राव,महेश ठाकुर,अनुराग महतो,शंकर नाग,माहेश द्विवेदी,एस डी एम,तहसीलदार,नायब तहसीलदार, आर आई समेत मांझी चालकी,मेम्बरीन व पूजारी उपस्थित रहे।
रविवार को सम्पन्न हुई डेरी गड़ाई रस्म में सरई पेड़ की टहनियों को स्थापित कर विधि विधान से पूजा-अर्चना की गई। साल प्रजाति की दो शाखायुक्त डेरी, एक सतम्भनुमा लकड़ी जो लगभग 10 फीट ऊंची होती है। डेरी लाने का कार्य बिरिंगपाल के ग्रामीण के जिम्मे होता है। पवित्र लकड़ियों को गाड़ने से पहले अंडा और मोंगरी मछलियां डाली गई। उसके बाद मंत्रोच्चार मंत्रोच्चार के साथ पवित्र करते हुए हल्दी, चंदन, सिंदूर आदि लेप लगाकर सफेद कपड़ों में लपेटा और सिरहासार भवन के दो खंभों में बांधा और दो स्तंभों के नीचे जमीन खोदकर देरी स्थापित किया गया।
इसके साथ ही पुजारी ने रथ निर्माण के लिए माई दंतेश्वरी से आज्ञा भी ली। इसके बाद बेड़ाउमरगांव और झारउमरगांव के लगभग 150 कारीगर विशाल रथों का निर्माण करेंगे।रविवार को हुए डेरी गड़ाई के बाद काछनगादी की रस्म निभाई जाएगी, जिसमें मिरगान जाति की नाबालिक बच्ची पर काछन देवी सवार होती है। बस्तर के राजा देवी से दशहरा पर्व मनाने की अनुमति लेते हैं, ताकि बस्तर दशहरा पर्व निर्विघ्न मनाया जा सके।
हरेली अमावस्या यानी पाट जात्रा के दिन पहली लकड़ी लाई जाती है और उसके बाद बस्तर दशहरा की दूसरी रस्म डेरी गड़ाई पूजा विधान के बाद अन्य लकड़ियों को लाया जाता है। डेरी गड़ाई की रस्म के बाद माचकोट के जंगल से लाई गई लकड़ियों से माई दंतेश्वरी का रथ निर्माण कार्य शुरू होगा। बस्तर दशहरा में रथ निर्माण के लिए केवल साल और तिनसा प्रजाति की लकड़ियों का उपयोग किया जाता है। तिनसा प्रजाति की लकड़ियों से पहिए का एक्सल बनाया जाता है और रथ निर्माण के बाकी सारे कार्य साल की लकड़ियों से पूरा किया जाता है।
उल्लेखनीय है कि विश्व प्रसिध्द बस्तर दशहरा करीब 700 वर्ष पुराणी परम्परा है। रियासत कालीन परम्परा को आज के आधुनिक युग में भी पुरे रीती रिवाज के साथ मनाया जाता है। बस्तर दशहरा पर्व देखने देश विदेश से भी सैलानी जगदलपुर पहुँचते हैं। लेकिन बीते 2 सालों से कोरोना के चलते पर्व में सैलानियों को दूर रखा जा रहा है। इस बार भी बस्तर दशहरा पर्व में भक्तों की भीड़ नहीं होगी।
बस्तर सांसद दीपक बैज ने डेरी गड़ाई रस्म के बाद आम लोगों से अपील करते हुए कहा कि कोरोना का दंश अभी खत्म नहीं हुआ है इस कारण प्रशासन ने भीड़ को नियंत्रण कर दशहरा पर्व संपन्न करवाने का निर्देश जारी किया है। यही कारण है कि सभी रस्मों को निभाते हुए दशहरा पर्व सम्पन्न करवाया जाएगा,जिसमे भक्तों को घर में ही बैठकरऑनलाइन माता का दर्शन करवाया जायेगा।