Balod Train Mishap : नींद ने छीन ली ज़िंदगी…थककर पटरियों पर सोए मजदूर…सुबह की ट्रेन बन गई काल…

Balod Train Mishap : नींद ने छीन ली ज़िंदगी…थककर पटरियों पर सोए मजदूर…सुबह की ट्रेन बन गई काल…

बालोद, 10 जून। Balod Train Mishap :  झारखंड से छत्तीसगढ़ मजदूरी के लिए आए 11 युवकों में से 5 युवकों की थकावट इतनी भारी पड़ी कि उन्होंने रात को रेलवे पटरियों पर ही आराम करना चाहा — लेकिन यह आराम उनकी ज़िंदगी का आखिरी विश्राम साबित हुआ।

सुबह 4 बजे जब एक तेज़ रफ्तार ट्रेन दौड़ी, तो पटरियों पर लेटे युवकों में से चार युवक उसकी चपेट में आ गए। इनमें से दो की घटनास्थल पर ही मौत हो गई, जबकि दो गंभीर रूप से घायल हुए हैं। बाकी छह साथी जो आगे निकल चुके थे, वे इस भयावह मंजर से बाल-बाल बचे।

काम की तलाश में आए, पर लौटे कफन में

इन सभी युवकों का सपना था – अपने परिवारों के लिए दो वक़्त की रोटी कमाना। वे झारखंड से आए थे, मेहनत करने, ईंट-गारा उठाने, छत (Balod Train Mishap)ढालने… लेकिन नियति उन्हें दल्लीराजहरा-कुसुमकसा रेलवे लाइन तक खींच लाई, जहाँ ज़मीन पर थोड़ी देर सुस्ताना उनकी अंतिम भूल बन गई।

मजदूरों के नाम पर नीतियाँ तो बहुत हैं, पर नींद के लिए ज़मीन नहीं

यह हादसा न केवल प्रशासनिक व्यवस्थाओं की पोल खोलता है, बल्कि यह भी बताता है कि देश के विकास के नाम पर काम कर रहे मजदूरों की सुरक्षा और आधारभूत जरूरतें कितनी उपेक्षित हैं। जिस पटरी पर रेलें दौड़ती हैं, उस पर कोई थका हुआ इंसान सो (Balod Train Mishap)जाए — इससे बड़ा सामाजिक संकट क्या होगा?

घटना की जांच जारी, पर जवाबदेही कौन तय करेगा?

पुलिस ने घटना की पुष्टि कर दी है और जांच भी शुरू कर दी है, लेकिन सवाल यह है कि क्या इस जांच से उन परिवारों को राहत मिलेगी, जिनके बेटे अब कभी लौटकर नहीं आएंगे? या फिर ये नाम भी उन हजारों-लाखों गुमनाम मजदूरों में शामिल हो (Balod Train Mishap)जाएंगे, जिनकी त्रासदी पर सिर्फ अफसोस रह जाता है?

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