आत्मनिर्भर खिलौना उद्योग के लिए लोगों की आदतों में बदलाव लाएं

आत्मनिर्भर खिलौना उद्योग के लिए लोगों की आदतों में बदलाव लाएं

atm nirbhar bharat, indian toys, import of toys from china, navpradesh,

atm nirbhar bharat, indian toy industry,

संजना कादयान और तुलसीप्रिया राजकुमारी

चीन से सस्ते आयात की भरमार ने भारतीय खिलौना उद्योग का चैन भी छीन रखा है। कटु सच्चाई तो यह है कि इस वजह से भारतीय खिलौना उद्योग का विकास पिछले एक दशक से भी अधिक समय से तेज रफ्तार नहीं पकड़ पा रहा है।

हाल ही में सरकार ने स्वदेशी खिलौना उद्योग में नई जान फूंकने के लिए खिलौनों पर आयात शुल्क में 200 प्रतिशत की भारी वृद्धि कर दी है और इसके साथ ही खिलौना गुणवत्ता प्रमाणीकरण को पूरी सख्ती के साथ अनिवार्य कर दिया है। हालांकि, चीनी खिलौनों के अभ्यस्त हो चुके भारतीय उपभोक्ताओं की प्राथमिकताएं जब तक नए सिरे से नहीं बदलेंगी, तब तक संभवत: उच्च आयात शुल्क भी स्थानीय खिलौनों की मांग बढ़ाने में कारगर साबित नहीं होगा।

संजना कादयान और तुलसीप्रिया राजकुमारी

बहरहाल, कोविड-19 संकट ने वैश्वीकरण के प्रति अपनी धारणाओं पर फिर से गंभीरतापूर्वक चिंतन-मनन करने का अनुकूल माहौल हमारे देश में बना दिया है। सच तो यह है कि इससे पहले कभी भी हमारे नजरिए में नए सिरे से यह बदलाव उतना प्रासंगिक नहीं हुआ जितना चालू वर्ष यानी 2020 में हुआ है। व्यवहार विज्ञान अनुसंधान से यह पता चला है कि विभिन्नन नीतिगत उपायों या कदमों से लोगों की आदतों में बिल्कुल सही ढंग से बदलाव तभी संभव हो पाते हैं जब उनके आसपास के माहौल में स्वाभाविक रूप से सहायक अनुकूल परिवर्तन निरंतर होने लगते हैं।

बेशक, कोविड-19 के मौजूदा माहौल में उपभोक्ताओं की आदतों में बदलाव देखने को मिल रहे हैं क्योंकि ज्यादा सुरक्षित और बेहतरीन उत्पाद उनकी पहली पसंद बनते जा रहे हैं। सरकार का ध्यान भी इस बदलाव की ओर गया है, तभी तो उसने ‘गो-लोकल’ यानी स्वादेशी को अपनाओ का स्पलष्टत आह्वान किया है। खिलौना बाजार इस बदलते रुझान का अपवाद नहीं है। जब ठीक इसी तरह का माहौल या परिदृश्य बन जाता है, तभी व्यवहार अर्थशास्त्र की भूमिका आत्मखनिर्भर खिलौना उद्योग के विकास के लिए मंशा-परिणाम की खाई को पाटने में अत्यंत विशिष्टत हो जाती है।

इस दिशा में पहला ठोस उपाय यह होना चाहिए कि सस्ते एवं घटिया आयातित खिलौनों के बजाय सुरक्षित एवं बेहतरीन मेड-इन-इंडिया खिलौने ही खरीदने का एक नया मानक बनाया जाए। सरकार मेड-इन-इंडिया खिलौनों की ब्रांडिंग में इस संदेश को स्पष्ट रूप से समाहित कर सकती है और क्षेत्र-वार ब्रांड लोगो के साथ समर्पित या विशेष खिलौना दुकानों को लोकप्रिय बना सकती है।

मेड-इन-इंडिया ब्रांड के प्रति सच्ची निष्ठा सुनिश्चित करने के लिए असरदार लोगों के रूप में बच्चों और माता-पिता को लक्षित करते हुए विशिष्ट विज्ञापन तैयार किए जा सकते हैं, जैसा कि अमूल और मैगी ने अपने मार्केटिंग अभियानों में किया है। इसी तरह स्कूलों में किसी विशेष दिन को च्सुरक्षित मेड-इन-इंडिया खिलौना दिवस के रूप में मनाया जा सकता है और इसके साथ ही स्कूल सरकार की विभिन्न शैक्षणिक योजनाओं के तहत निर्माताओं से स्वरदेशी खिलौनों को खरीद कर इस मानक को मजबूती प्रदान कर सकते हैं।

दूसरी अहम बात यह है कि मेड-इन-इंडिया खिलौनों के निर्माण, बिक्री और खरीद को अत्यंहत आसान बना दिया जाए। वर्गीकरण संबंधी किसी भी अस्पष्टता के बिना ही एचएस 95 के तहत समस्त उत्पाद श्रेणियों पर आयात शुल्क और जीएसटी दरें एकसमान रखने से खिलौना निर्माताओं को काफी सहूलियत होगी।

इसके साथ ही खिलौना उद्योग पर एक सरल व्याापार गाइड भी सुनिश्चित करें जिसमें आपूर्ति श्रृंखला के अंतर्गत सरकार द्वारा पेशकश किए जा रहे सभी प्रोत्साहनों का उल्लेख हो। इससे भी खिलौना कारोबारियों को काफी मदद मिलेगी। उपभोक्ताओं को मेड-इन-इंडिया खिलौने खरीदने में और भी आसानी तब होगी, जब इन्हें दुकानों, एम्पोरियम, स्थानीय बाजारों, मेलों, चिड़ियाघरों और संग्रहालयों में आकर्षक कोनों में इस तरह से रखा जाएगा कि उन पर लोगों की नजर आसानी से पड़ सके।

यदि उत्पाद डिजाइन के साथ-साथ खिलौनों की पैकेजिंग में स्थानीय सांस्कृतिक लोकाचार या मूल्यों को भी अंकित कर दिया जाए तो उसे देखकर उपभोक्ता और भी अधिक उत्साहित होंगे। उदाहरण के लिए, शिक्षा प्रौद्योगिकी से संबंधित स्टार्टअप्स अपनी तरफ से बिल्डिंग ब्लॉक सेटों में भारतीय मंदिर वास्तुकला, शतरंज के गेम सेटों में चतुरंगा, लूडो गेम सेटों में पचीसी और अन्य सामान्य गेम सेटों में अमर-चित्र कथा एवं पंचतंत्र थीम को अंकित कर सकते हैं।

साक्ष्य बताते हैं कि युवा-काल में विरासत व संस्कृति आधारित उपभोक्ता प्राथमिकताएं अधिक मजबूत होती हैं। इसलिए यह आवश्यक है कि मेड-इन-इंडिया खिलौनों के प्रति युवाओं की पसंद को प्रोत्साहित करने के लिए संदेशों को बार-बार प्रसारित किया जाये। उत्पाद के मूल देश (कंट्री ऑफ ओरिजिन) से सम्बंधित संदेश प्रभावी होते हैं, जैसे मेड-इन-इंडिया खिलौने की प्रत्येक 1 रुपये की खरीद 5 भारतीय युवाओं को रोजगार प्रदान करती है।

ऐसे संदशों को बिलबोर्ड, ऑनलाइन रिटेल, दुकानों और अन्य सार्वजनिक स्थानों पर दिखाया जाना चाहिए। मेड-इन-इंडिया खिलौना खरीदने के लिए उपभोक्ताओं को व्यक्तिगत धन्यवाद संदेश भेजे जा सकते हैं और उन्हें उन शिल्पकारों की तस्वीरों को दिखाया जा सकता है, जिन्हें आपके दोबारा खिलौने खरीदने से लाभ होगा।


खिलौना-बाजार की विशेषता है – उत्पादों में व्यापक अंतर और यह अंतर और अधिक स्पष्ट होता है, जब चीन से आयात किये गए खिलौनों की भारतीय खिलौनों से प्रतिस्पर्धा होती है। उत्पाद अंतर को भारत के पक्ष में किया जा सकता है, जब मेड-इन-इंडिया खिलौनों की सकारात्मक मूल्यांकन रिपोर्ट और उपभोक्ताओं की समीक्षा के बारे में लोगों को जानकारी दी जाए और इन्हें लोकप्रिय बनाया जाए, ताकि लोग ऑनलाइन और ऑफ-लाइन इसकी विशेषताओं से एक-दूसरे को अवगत कराएँ। इसके अलावा, स्थानीय उत्पादकों को प्रोत्साहित करने के सन्दर्भ में सुरक्षित और टिकाऊ पारंपरिक खिलौनों के लिए पुरस्कार भी स्थापित किए जा सकते हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may have missed