Assembly Elections : नेताओं की तल्ख होती जुबान

Assembly Elections : नेताओं की तल्ख होती जुबान

Assembly Elections: Leaders were bitter

Assembly Elections

Assembly Elections : उत्तर प्रदेश सहित पांच राज्यों के लिए हो रहे विधानसभा चुनाव में नेताओं के बीच जुबान तल्ख होती जा रही है। सत्ता की लड़ाई अब मर्यादा की सारी सीमाएं लांघने लगी है। चुनाव में आरोप प्रत्यारोप तो लगते ही है लेकिन शालीनता का ध्यान रखा जाता है लेकिन इस बार चुनाव में अभद्र भाषा का इस्तेमाल ज्यादा हो रहा है।

खासतौर पर उत्तर प्रदेश में पहले और दूसरे चरण के मतदान (Assembly Elections) के दौरान राजनीतिक दलों के बयानवीर नेताओं में आपत्तिजनक बयानबाजी करने की होड़ शुरू हो गई है। असउद्दीन ओवैसी तो लगातार भड़काऊ बयानबाजी कर रहे है। समाजवादी पार्टी और उनके सहयोगी अन्य दलों के नेता भी विवादास्पद बयानबाजी करने में पीछे नहीं है। ओमप्रकाश राजधर ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर जमकर हमला बोला है।

गौरतलब है कि बनारस कोर्ट में ओम प्रकाश राजधर के साथ कुछ लोगो ने बदसलूकी की थी इसका ठीकरा वे योगी और मोदी के सिर पर फोड़ रहे है। उनके बयान का समर्थन करते हुए अखिलेश यादव ने भी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को अपरोक्क्ष रूप से गुंडा करार दे दिया है। अखिलेश यादव तो योगी पर गुंडा राज चलाने का आरोप लगा रहे है और यह दावा कर रहे है कि समाजवादी पार्टी की सरकार बनी तो वे गुंडों और माफियाओं के खिलाफ कई कार्यवाही करेंगे।

जबकि हकीकत यह है कि समजावादी पार्टी ने ही अपने शासनकाल में असमाजिक तत्वों को बढ़ावा दिया था और माफियाओं को संरक्षण दिया था। आज भी ऐसे आपराधिक पृष्ठ भूमि वाले सबसे ज्यादा लोगों को समाजवादी पार्टी और उसके सहयोगी दलों ने ही टिकट दी है।

दागी लोगों को टिकट देने में कांग्रेस और भाजपा ने भी कोई कमी नहीं छोड़ी है। ऐसे लोगों को टिकट दी जाएगी तो चुनाव के दौरान इस तरह की अमर्यादित टिका टिप्पणी होना तो स्वाभाविक है। बहरहाल उत्तर प्रदेश में दो चरणों का चुनाव (Assembly Elections) हो चुका है आगे के चरणों में मतदान के दौरान विवाद की स्थिति न बने और तनाव पैदा न हो इसके लिए चुनाव आयोग को कड़े कदम उठाने चाहिए।

जुबानी जंग के नाम पर जहर घोलना और आपत्तिजनक बयानबाजी करना कतई उचित नहीं है, इसपर रोक लगाने के लिए कारगर पहल करना निहायत जरूरी है। राजनीतिक पार्टियों के बड़े नेताओं को भी चाहिए कि वे अपने बयानवीर नेताओं को अपनी जुबान पर काबू रखने के निर्देश दें।

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