संपादकीय: जनता की अदालत में अरविंद केजरीवाल
Arvind Kejriwal in public court: नई दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल ने नई दिल्ली स्थित जंतर मंतर पर जनता की अदालत लगाकर अपनी बेगुनाही की दुहाई दी है।
उन्होंने कहा है कि उन्हें कुर्सी या सत्ता का कोई लालच नहीं है वे कट्टर ईमानदार हैं लेकिन भाजपा ने उन्हें षडयंत्रपूर्वक शिकार बनाया है। अरविंद केजरीवाल ने भाजपा पर आरोप लगाया है कि उसने उन्हें झूठे केस में फंसाया है।
अरविंद केजरीवाल ने नैतिकता की बात करते हुए कहा है कि जब तक जनता उन्हें निर्दोष करार देते हुए क्लीनचिट नहीं दे देती तब तक वे मुख्यमंत्री की कुर्सी से दूर रहेंगे। इस जनता की अदालत में उन्होंने नई दिल्ली विधानसभा चुनाव का भी अभी से शंखनाद कर दिया है।
जबकि अभी चुनाव में छह माह का समय बाकी है। अपने संबोधन के दौरान आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं को जिन्हें उन्होंने आम जनता बताया हैै उसके सामने उन्होंने यह बात कही है कि यदि लोग उन्हें ईमानदार समझते हैं तभी उन्हें वोट दें अन्यथा वोट न दें।
ऐसा कहकर अरविंद केजरीवाल ने एक बार फिर विक्टिम कार्ड खेला है। जबकि पूर्व में उनका ऐसा ही विक्टिम कार्ड फेल हो चुका है। लोकसभा चुनाव के दौरान अरविंद केजरीवाल की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें चुनाव प्रचार के लिए अंतरिम जमानत पर रिहा किया था।
इस दौरान उन्होंने नई दिल्ली और पंजाब में जहां आम आदमी पार्टी की सरकार है धुआंधार चुनाव प्रचार किया था और जेल का जवाब वोट से देने का मतदाताओं से आव्हान किया था।
उन्हें उम्मीद थी कि नई दिल्ली और पंजाब के मतदाताओं की उन्हें सहानुभूति मिलेगी और इन दोनोंं ही राज्यों में आम आदमी पार्टी पहले के मुकाबले अधिक लोकसभा सीटें जीतने में सफल होगी। किन्तु ऐसा नहीं हुआ नई दिल्ली की सातों लोकसभा सीटों में कांग्रेस पार्टी के साथ गठबंधन करने के बावजूद उन्हें एक भी सीट नहीं मिली।
इसका मतलब साफ है कि नई दिल्ली के मतदाताओं पर उनकी भावुक अपील का कोई प्रभाव नहीं पड़ा। पंजाब में भी जहां 2014 के लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को चार सीटें मिली थी। वहां भी उन्हें तीन सीटों पर ही संतोष करना पड़ा। इसका आशय स्पष्ट है कि अरविंद केजरीवाल की राष्ट्रीय राजनीति में पहचान बननी मुश्किल है।
बहरहाल अब मुख्यमंत्री पद से मजबूरी के कारण इस्तीफा देने वाले अरविंद केजरीवाल अब नई दिल्ली में छह माह बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में एक बार फिर अपनी पार्टी को जीत दिलाने के लिए पूरी ताकत झोंकने जा रहे हैं। और इसके लिए वे मतदाताओं की सहानुभूति हासिल करने के लिए हर संभव हथकंडा जरूर अपनाएंगे।
जनता की अदालत इसी का एक हिस्सा है। किन्तु अरविंद केजरीवाल के लिए अब आगे की राह आसान नहीं दिखती। वे अभी भी भ्रम फैलाने की कोशिश कर रहे हैं। वे भाजपा को और केन्द्र सरकार को चुनौती दे रहे हंै कि वे जल्द से जल्द नई दिल्ली विधानसभा का चुनाव कराकर देख लें।
यदि वे वाकई जल्द से जल्द चुनाव मैदान में जाने के इच्छुक हैं तो उन्हें चाहिए था कि वे अपनी जगह आतिशी को मुख्यमंत्री बनाने के बदले नई दिल्ली विधानसभा को ही भंग कर देते। ऐसी स्थिति में चुनाव आयोग नई दिल्ली में तत्काल विधानसभा चुनाव कराने के लिए बाध्य हो जाता।
जाहिर है केजरीवाल नई दिल्ली में जल्द चुनाव कराने की मांग का शिगूफा छोड़ रहे हैं। उनकी ऐसी कोई मंशा नहीं है। दरअसल छह माह के दौरान उन्हें मतदाताओं को और प्रलोभन परोसना है।
भले ही उन्होंने आतिशी को मुख्यमंत्री बनवाया है लेकिन सुपर सीएम तो अरविंद केजरीवाल ही रहेंगे और अभी इस तरह के और कई विक्टिम कार्ड खेलेंंगे जिसका उन्हें कितना लाभ मिलेगा यह आने वाला वक्त ही बताएगा।