Article : चेन से बंधा बेचैन गिलास...

Article : चेन से बंधा बेचैन गिलास…

Article : Restless glass tied with chain...

Article

Article : सैर-सपाटा के महत्व को अनेक विद्वानों ने सिद्ध किया है। इसी संदर्भ में गालिब ने भी लिखा है कि- सैर कर दुनिया की गालिब, जिंदगानी फिर कहां, जिंदगानी गर रही, तो नौजवानी फिर कहां। इसका अनुपालन करते हुये बच्चों के ग्रीष्मावकाष का लाभ लेकर सपरिवार तीर्थाटन पर हम निकले हुये थे।

हमारा परिवार एक बड़े प्रसिद्ध मंदिर में देवदर्षन के लिये पहुंचा। पहाड़ों की खड़ी चढ़ाई करके देवालय तक पहुंचते पहुंचते मेरे छोटे बेटे ”विरासत’ (Article) को प्यास लग आई थी। उसकी प्यास बुझाने के लिये देवालय के प्रागंण में स्थापित वॉटर कूलर तक उसे मैं लेकर गया। वॉटर कूलर से पानी पीने के लिये स्टील के अनेक गिलास वहां चैन से बंधे हुये थे।

उन गिलासों को देखते ही जिज्ञासा भरे लहजे में विरासत पूछ पड़ा- पापा जी ये गिलास क्या चोर हैं? उसका यह सवाल मुझे बड़ा अटपटा लगा। प्रत्युत्तर में मैने पूछा- क्या मतलब। तब वह बोला – मेरा मतलब है कि इन गिलासों को चोरों के जैसे हथकडिय़ों से क्यों जकड़ा गया है। उसकी बात मुझे समझ में आ गई और मैंने उसे समझाया कि चोरों से बचाने के लिये गिलासों को चोर की तरह चैन से बांधकर रखा गया है।

विरासत का यह छोटा सा सवाल मुझे यह सोचने को मजबूर कर गया कि चैन से बंधा बेचैन गिलास परोपकार के काम में संलग्न होने के बावजूद कैद की जिंदगी गुजर बसर करने को क्यों विवश हैं? चैन से बिंधना और बंधना बेचारे गिलास के आजादी के छिन जाने का भी सूचक है। प्यासे को पानी पिलाना भारतीयता की पहचान है, पर चैन से बंधे गिलास सवाल उठा रहे हैं कि पानी पीने के लिये रखे गिलासों की चोरी भी क्या भारतीयता की पहचान बनेगी?

दया,परोपकार, सहिष्णुता जैसे मानवीय गुण अनादिकाल से भारतीयों की विशिष्ठ पहचान रही है। ऐसे संस्कारिक देश के देवालय,विद्यालय,चिकित्सालय एवं प्रतीक्षालयों में शीतल पेय जल (Article) हेतु समुचित प्रबंध देखने को मिलता है। पर पेयजल हेतु स्थापित वॉटर कूलर से पानी पीने के लिये रखे गये गिलासों का चैन से बंधा होना मानव मन मे निहित ”चोर प्रवृत्ति” एवं ”स्वार्थ” जैसी अजीबों गरीब मानसिकता को उजागर करती है।

विचित्र तथ्य यह भी है कि पापकर्मों को मिटाने के लिये देवालय पहुंचे दर्शनार्थी भी ऐसी विकृत मानसिकता से मुक्त नहीं हो पाते हैं। गिलासों को चैन से बांधने का एक बड़ा कारण संभवत: लोगों की लापरवाही भी है। अनेक उपयोगकर्ता ऐसे गिलासों को मनचाही जगह पर लेजाकर उपयोग करने के उपरांत वापस निर्धारित स्थान पर रखने के बजाय यहॉ-वहॉ छोड़ जाते हैं।

यह सर्वविदित है कि विद्यालयों में ईमानदारी का पाठ पढ़ाया जाता है। चिकित्सालयों में सेवा की भावना संचारित होती है। प्रतीक्षालय भाई बंधुत्व की भावना को बढ़ावा देते हैं, फिर भी ऐसे स्थानों पर गिलासों को लोहे निर्मित चैन से बंधाकर रखना पड़े यह मानव जाति के चरित्र के दोयम दर्जे तक गिर रहे स्तर को शतप्रतिशत प्रदर्शित करता है। सेवाभावना और परोपकारिता की दृष्टि से पवित्र संस्थानों में चैन से बंधे हुये गिलासों को देखकर ”होम करते हाथ जला” कहावत चरितार्थ होती दिखती है।

इन गिलासों की व्यथा कथा तो यही कहती है कि अपने जीवनकाल में हजारों की प्यास बूझाने वाले ये गिलास अपनी आजादी की प्यास बुझाने छटपटा रहे हैं। ये गिलास उन तमाम लालची-स्वार्थी इंसानों को कोसते श्राप देते होंगे जो कि पवित्र स्थलों पर भी अपवित्र-अनैतिक चरित्रों का प्रदर्शन करने में नहीं हिचकते हैं।

स्टील-पीतल निर्मित बेचारे इन गिलासों से अच्छा तो भाग्य कांच-प्लास्टिक से निर्मित उन गिलासों का है, जो सड़क किनारे संचालित ठेले-ढाबे वालों के यहॉ शराब सेवन के काम आ रहे हैं। धोखे से ही सही ये यदाकदा गिरकर (Article) टूट जाते हैं और अपने नारकीय जीवन से मुक्ति पा जाते हैं। पवित्र स्थानों में पवित्र उद्देश्य से रखे गये स्टील-पीतल के गिलास जंजीरों में बंधकर लोगों की प्यास बुझाते बुझाते स्वयं प्यासे ही रह जाते हैं।

दूसरों को सुख देने के लिए तार से बींधे-बंधे इन गिलासों से बातचीत हो पाती और जब उनसे पूछते कि ”यहॉ बंधे-बंधे हजारों के मुंह लगते तुम्हें दुख तो होता होगा” तो शायद वे यही उत्तर देगें कि दुख तो होता है, पर प्यासे व्यक्ति के चेहरे पर पानी पीने के बाद जो सुख-तृप्ति दिखाई देती है, उससे सारे दुख दूर हो जाते हैं।

विजय मिश्रा ‘‘अमित’’
पूर्वअति. महाप्रबंधक (जनसंपर्क),
छत्तीसगढ़ स्टेट पावर कम्पनीज

JOIN OUR WHATS APP GROUP

डाउनलोड करने के लिए यहाँ क्लिक करें

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *