Article : बस्तर में खेलों का विकास
शशांक श्रीधर शेंडे। Article : बस्तर संभाग के मुख्यालय जगदलपुर में नौकरी के लिए 1988 नवम्बर को जब मैं निकला तो माँ बोली वहां मत जा, आदिवासी लोग तीर मार देते हैं। देशभर के आम जनमानस में बस्तर की अमूमन यही तस्वीर थी । क्षेत्रफल में केरल से बड़ा होने के बावजूद और खनिज भंडारों के अकूत संपदा का मालिक होने के बाद भी बस्तर अत्यन्त पिछड़ों में गिना जाता था । जब तक बस्तर मध्यप्रदेश का हिस्सा था यहाँ विकास की चिड़िया को पंख भी नहीं लगे थे। सामान्य विकास का नामोनिशान नही था तो खेलों का विकास तो जैसे कल्पना के आकाश में उड़ने जैसा ही था।
वर्ष 2000 का नवम्बर महीना बस्तर के लिए सौगात लेकर आया जब अटल बिहारी जी की सरकार ने छतीसगढ़ राज्य बनाया मध्यप्रदेश से अलग करके । तब शनैः शनैः विकास की नदिया का पानी बस्तर की ओर भी बहने लगा कहूँ ,तो अतिशयोक्ति न होगी। वर्ष 1975 से आरम्भ हुई ठाकुर विजय बहादुर गोल्ड कप फ़ुटबाल प्रतियोगिता मानों यहाँ का विश्व कप फुटबाल था।
यही एकमात्र खेल (Article) था जिसके लिए पूरा जगदलपुर और आस पास के उड़ीसा के भी गावों के लोग मैच देखने आया करते थे और शहर का सिटी ग्राउंड खचाखच भर जाता था। लेकिन इसके अलावा कोई ऐसा उल्लेखनीय खेल और नहीं था, जो इतना अधिक लोकप्रिय हो । वैसे तो यहाँ वॉलीबाल, कबड्डी, हॉकी, क्रिकेट भी चलन में थे पर अत्यधिक लोकप्रिय फुटबाल ही रहा जिसमें पश्चिम बंगाल, पंजाब , केरल, आंध्रप्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार , ओड़िसा, गोवा, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश की नामी टीमें आया करती थीं।
लगभग 20 वर्ष पहले जगदलपुर शहर में महिलाओं के राष्ट्रिय खेल का आयोजन हुआ जिसमे विभिन्न खेल शामिल थे, खो खो, कबड्डी, फ़ुटबाल, लम्बी कूद, ऊँची कूद, बाल बैडमिंटन, हैंडबाल, वॉलीबाल इत्यादि, इसमें देश के लगभग सभी राज्यों से टीमों ने शिरकत की थी। उसकी वजह से बस्तर में खेल गतिविधियों की हलचल बढ़ गई और इस खेल के बाद नेशनल शालेय खेल प्रतियोगिता का आयोजन हुआ और मुझे लगता है, इस राष्ट्रीय खेल ने बस्तर में खेलों के विकास के लिए तड़के का काम किया, क्योंकि इससे बालिकाओं में खेल के प्रति जागरूकता बढ़ी और उनमें आत्मविश्वास जागृत हुआ और मैंने व्यक्तिगत रूप से बड़ा फ़र्क ये महसूस किया कि जगदलपुर में स्थित माता रुक्मणि बालिका आश्रम डिमरापाल में जबरदस्त उत्साह का वातावरण निर्मित हुआ और बालिकाओं को प्रोत्साहित करने ले लिए आश्रम के प्रबंधक पद्मश्री धर्मपाल सैनी जी का अत्यंत महत्वपूर्ण और अविस्मरनीय और अद्भुत योगदान रहा।
बस्तर संभाग में माता रुक्मणि संस्थान के लगभग 40 आश्रम हैं, जो पद्मश्री धर्मपाल सैनी जी की तपस्या का फल है, उन्होने बस्तर के गाँव गाँव से बीहड़ वन क्षेत्र से बच्चियों को शिक्षित करने के लिए अपने आश्रम में लाया उनको पढ़ाया लिखाया उनकी इसी समाज सेवा और विशिष्ट कार्य के लिए उनको पद्मश्री से नवाज़ा गया । समाज सेवा और बालिका शिक्षा के क्षेत्र में वे अग्रणी तो थे ही परन्तु खेल के लिए उनके योगदान को नकार नहीं सकते । वे स्वयं ही सुबह से बालिकाओं को लेकर मैदान में पहुँच जाते हैं और उनका उत्साहवर्धन करते हैं। उनके सान्निध्य में रहकर कई बच्चे निखर कर आगे आये । बालमति ने तो राज्य स्तरीय मैराथन में पहला स्थान पाया था।
बस्तर में खेलों के विकास में सैनी जी को कोई भूल नहीं सकता। आज भी 93 वर्ष की आयु में वे आपको खेल के मैदान में मिल जायेंगे। उनके जज़्बे को मेरा नमन है । वे हमारे लिए बस्तर का गौरव हैं एक धरोहर हैं और माता रुक्मिणी आश्रम खेलों में मील का पत्थर। आज स्थिति ये है की आश्रम की बालिकायें राज्य स्तर पर, राष्ट्र स्तर पर और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी परचम लहरा रहीं हैं। कई खेलों में आश्रम की बालिकाओं का अहम् योगदान साबित हो रहा है, चाहे मैराथन हो, तीरंदाजी हो, फ़ुटबाल हो, योग हो।
यहाँ पर मैं नारायणपुर स्थित रामकृष्ण मिशन का उल्लेख करना भी महत्पूर्ण समझता हूँ। यहाँ के बालकों ने देश की स्कूल स्तर की प्रतिष्ठित फुटबाल प्रतियोगिता संतोष ट्राफी जीतकर बस्तर को गौवान्वित किया और न सिर्फ बस्तर का, राज्य का डंका फ़ुटबाल में बजा दिया। वहां के बच्चों ने भी कई खेलों में राष्ट्रीय स्तर पर बस्तर का नाम ऊँचा किया है, बीजापुर बचेली के बच्चे बैडमिंटन में काफी अच्छा कर रहे हैं। शतरंज के खेल में जगदलपुर के लव्यज्योति ने बालक वर्ग में 2021 में अन्डर 12 में राष्ट्र स्तर पर धमक पैदा की राष्ट्रीय स्तर पर हुई ऑलाइन प्रतियोगिता में उसने प्रथम स्थान प्राप्त कर बस्तर और पूरे छतीसगढ़ का मान बढ़ाया यह बस्तर के लिए एक बड़ी उपलब्धि है । मुझे उसमे भविष्य का ग्रैंडमास्टर नज़र आ रहा है।
बस्तर की पर्वतारोही नैना धाकड़ ने हिमालय की सबसे ऊंची चोटी माऊंट एवरेस्ट पर विजय प्राप्त की। नैना धाकड़ की यह उपलब्धि अद्भुत और लाजवाब है। वह बस्तर के खिलाड़ियों की प्रेरणा है नैना छत्तीसगढ़ की प्रथम महिला है जिसने माऊंट एवरेस्ट पर तिरंगा लहराया है। बस्तर में कई खेलों में अनेक संभावनाएं हैं क्योंकि यहाँ प्रतिभाओं की कमी नहीं है, फ़ुटबाल जुडो कराटे, किक बॉक्सिंग, क्रिकेट, एथलेटिक्स, बैडमिंटन, नौका दौड़ में खेल प्रतिभाएं सामने आ रही हैं तथा राष्ट्रीय स्तर पर दस्तक दे रही हैं । ग्रामीण खेलों का भी माहौल जिला प्रशासन और पुलिस प्रशासन के सहयोग से बहुत बढ़िया बन रहा है। खो खो, कबड्डी, योग, मलखम्ब इत्यादि में बस्तर के बच्चे आगे निकल रहे हैं।
मार्च 2022 हरियाणा के पंचकुला में सम्पन्न हुई राष्ट्रिय सिविल सर्विसेस की बैडमिंटन प्रतियोगिता में भी बस्तर के मनोज लकड़ा, नेगी , जगत साव, बी एस ध्रुव , एस। एस। शेंडे, डॉ। बी प्रकाश मूर्ती , राबर्टसन, नितेश महंत, हलीम और नेताम ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराकर और पदक जीतकर बस्तर में खेलों के विकास की ओर बढ़ते क़दमों की आहट से ध्यान आकर्षित किया है।
कोचिंग व्यवथा के कमी की वजह से खिलाड़ियों को उचित मार्गदर्शन नहीं मिल पाता लेकिन अब बस्तर में एनआई एस कोच भी उभरने लगे हैं जो बस्तर के आने वाले भविष्य की ओर इंगित करते हैं । साथ ही कुछ अच्छे पुराने खिलाड़ी भी बालक और बालिकाओं के लिए पसीना बहा रहे हैं जो सराहनीय है। क्रिकेट में आनंद मोहन मिश्रा, राजकुमार महतो, जोगेन्द्र ठाकुर, अनुराग शुक्ला, करनदीप सग्गू एथलेटिक्स में अजय व संजय मूर्ती, हाकी में पिल्ले, जुडो में मोईन अली, मकसूदा हुसैन, ठाकुर मास्टर्स एथलेटिक्स में नबी मोहम्मद, अशोक राव, बास्केटबाल में संगीता तिवारी, फ़ुटबाल में रूपक मुखर्जी ,गौतम कुंडू, विश्वजीत भट्टाचार्य इत्यादि। रूपक मुखर्जी तो फ़ुटबाल के राष्ट्रीय रेफरी भी बने, शतरंज में राजेश जेना और रविन्द्रनाथ कुलगुरु बस्तर से पहले आर्बिटर बने।
इन सबके (Article) अलावा 2018 से लागू हुई भारत सरकार की महत्वकांक्षी योजना “खेलो इंडिया” के अंतर्गत बस्तर की खेल प्रतिभाओं को निखारने, उनकी खोज करने, कम्युनिटी कोचिंग क्लास, खेल के मैदानों का विकास, खेलों का स्तर उठाने के लिए मुलभूत ढांचा तैयार करने, खेल अकादमी का निर्माण इत्यादि पर प्रशंसनीय कार्य बस्तर में भी हो रहे हैं, इसके अंतर्गत अंतर्राष्ट्रीय स्तर का फ़ुटबाल स्टेडियम बस्तर में बन कर तैयार है, सिंथेटिक ट्रैक बन कर जगदलपुर में तैयार है, सभी खेल मैदानों को बेहतरीन उच्च क्वालिटी का बनाया जा रहा है, बस्तर के हर जिले का प्रशासनिक अमला जोर शोर से विशेष रूचि लेकर कार्य कर रहा है। राज्य शासन भी खेलों के विकास के लिए बस्तर में बेहतर काम कर रही है। इन सबको देखते हुए मुझे लग रहा है, बस्तर का खेलों के क्षेत्र में बहुत उज्जवल भविष्य है । वह दिन अब दूर नहीं है जब बस्तर का नाम खेल दुनिया में सुनहरे अक्षरों से लिखा जाएगा।