Ambikapur Waste Management Model :अंबिकापुर बना भारत का पहला ज़ीरो डंपसाइट शहर...वायु प्रदूषण नियंत्रण में पेश की नई मिसाल...

Ambikapur Waste Management Model :अंबिकापुर बना भारत का पहला ज़ीरो डंपसाइट शहर…वायु प्रदूषण नियंत्रण में पेश की नई मिसाल…

अम्बिकापुर, नवप्रदेश, 3 जून। Ambikapur Waste Management Model : राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP) के तहत सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (CSE) द्वारा की गई ताज़ा समीक्षा रिपोर्ट में अंबिकापुर शहर को एक बेहतरीन उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जिसने ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के जरिए न केवल पर्यावरणीय बल्कि सामाजिक और आर्थिक सुधार भी हासिल किए हैं।

छत्तीसगढ़ के सरगुजा ज़िले का मुख्यालय अंबिकापुर, जिसकी आबादी 2.25 लाख से अधिक है, आज देश का पहला “ज़ीरो डंपसाइट” शहर बन गया (Ambikapur Waste Management Model)है। कभी कचरे के ढेर, जलते डंपसाइट और खुले में कचरा फेंकने की समस्याओं से जूझने वाला यह शहर, अब अपने सुदृढ़ और समुदाय-आधारित अपशिष्ट प्रबंधन मॉडल के लिए पूरे देश में जाना जाता है।

SLRM मॉडल: विकेन्द्रित और समावेशी व्यवस्था की मिसाल

2015 में अंबिकापुर नगर निगम (AMC) और जिला प्रशासन ने मिलकर Solid and Liquid Resource Management (SLRM) मॉडल को अपनाया। इसके तहत शहर को छोटे-छोटे 20 SLRM केंद्रों में बांटा गया, जहां प्रतिदिन लगभग 70 टन कचरे का पृथक्करण, कंपोस्टिंग और पुनर्चक्रण किया जाता है। प्रत्येक केंद्र 5 टन कचरे को प्रोसेस करने में सक्षम है।

इस विकेन्द्रित मॉडल के जरिए न केवल डंपसाइट को खत्म किया गया, बल्कि कचरे के खुले में जलने और फेंके जाने की प्रवृत्ति पर भी प्रभावी नियंत्रण पाया (Ambikapur Waste Management Model)गया, जिससे पीएम 2.5 और पीएम 10 जैसे हानिकारक कणों में उल्लेखनीय कमी आई।

महिला स्व-सहायता समूहों की भूमिका: समावेशी और आत्मनिर्भरता की राह

अंबिकापुर मॉडल की एक अनूठी विशेषता इसमें महिला स्व-सहायता समूहों (SHGs) की भागीदारी है। 480 से अधिक महिलाओं को कचरा संग्रहण, पृथक्करण, शुल्क संग्रह और जन-जागरूकता जैसे कार्यों में नियमित रोजगार मिला है। ये महिलाएं ‘दीदी’ के नाम से पहचानी जाती हैं और राज्य सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम वेतन प्राप्त करती हैं। त्योहारों पर बोनस और सरकारी योजनाओं का लाभ भी इन्हें मिलता है।

कोविड-19 महामारी के दौरान इन SHGs ने फेस मास्क और सैनिटाइज़र निर्माण जैसे नवाचार कर आत्मनिर्भरता और सामाजिक प्रतिबद्धता का परिचय दिया।

कचरे से कमाई: आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर मॉडल

शहर के हर घर से ₹50 और हर व्यावसायिक इकाई से ₹100 मासिक शुल्क वसूला जाता है, जिससे अधिकांश परिचालन लागत निकल आती है। इसके अतिरिक्त, सूखे कचरे और कंपोस्ट की बिक्री से भी आमदनी होती है। कई क्षेत्रीय फेडरेशनों ने अपने अधिशेष से ₹2 लाख तक की सावधि जमा भी बनाई (Ambikapur Waste Management Model)है।

2019 में गठित स्वच्छ अंबिकापुर मिशन सिटी लेवल फेडरेशन (SAMCLAF) पूरे तंत्र की निगरानी, वित्त प्रबंधन, कर्मचारियों की तैनाती और शिकायत निवारण का काम करता है।

वायु गुणवत्ता में सुधार: डंपसाइट बंद होने से प्रदूषण में गिरावट

2015 से पहले शहर में कचरे का जलाया जाना आम था, जिससे हवा में सूक्ष्म कण, डाइऑक्सिन, कार्बन मोनोऑक्साइड और मीथेन जैसे विषैले तत्वों की मात्रा बढ़ रही थी। अब, 100% संग्रहण, पृथक्करण और कंपोस्टिंग से यह समस्या लगभग समाप्त हो चुकी है। पुराने 15 एकड़ डंपसाइट को पुनर्वासित कर ‘सैनिटेशन पार्क’ में बदला गया है, जिसमें हरियाली, शौचालय और प्रदर्शनी केंद्र बनाए गए हैं।

कम उत्सर्जन वाला परिवहन: बैटरी रिक्शा और हाथगाड़ी

अंबिकापुर में अब डीजल वाहनों की जगह बैटरी चालित रिक्शा और हाथगाड़ियों से कचरा एकत्र किया जाता है। इससे न केवल जीवाश्म ईंधन की खपत कम हुई है, बल्कि पड़ोसों में प्रदूषण भी घटा है। यह सुनिश्चित करता है कि कचरा समय पर एकत्र होकर सही तरीके से निपटाया जाए।

राज्य और देश भर में मॉडल का विस्तार

अंबिकापुर की सफलता को देखते हुए छत्तीसगढ़ सरकार ने “मिशन क्लीन सिटी” के तहत राज्य के 168 में से 166 शहरों में यह मॉडल लागू किया है। उत्तर प्रदेश, केरल, हरियाणा और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों ने भी इस मॉडल में रुचि दिखाई है।

CSE की सिफारिश: अन्य शहर अपनाएं यह मॉडल

CSE ने अपनी रिपोर्ट में अंबिकापुर को एक प्रेरणादायक उदाहरण बताते हुए कहा है कि यह मॉडल तकनीक पर कम, नागरिकों की भागीदारी और संस्थागत सुधारों पर अधिक निर्भर है। इससे पर्यावरणीय लाभ के साथ-साथ सामाजिक न्याय और आर्थिक आत्मनिर्भरता को भी बढ़ावा मिलता है।

अंबिकापुर की सफलता यह साबित करती है कि यदि राजनीतिक इच्छाशक्ति, सामुदायिक भागीदारी और पारदर्शी प्रशासन साथ हों, तो कोई भी शहर आधुनिक, टिकाऊ और प्रदूषण मुक्त बन सकता है। NCAP जैसे राष्ट्रीय कार्यक्रमों के तहत इस मॉडल को देशभर में अपनाया जाना न केवल वायु प्रदूषण को नियंत्रित कर सकता है, बल्कि एक समावेशी और हरित शहरी भविष्य की नींव भी रख सकता है।

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