संपादकीय: भाजपा के लिए अग्नि परिक्षा की घड़ी
A time of testing for BJP: हरियाणा और जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनाव की घोषणा हो चुकी है। इसके बाद महाराष्ट्र और झारखंड़ में भी विधानसभा चुनाव होने जा रहे है।
इन चार राज्यों के विधानसभा चुनाव भाजपा के लिए अग्नि परिक्षा की घड़ी लेकर आये है। गौरतलब है कि हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा अकेले अपने बल बुते पर बहुमत का आंकड़ा नहीं छु पाई थी जबकि भाजपा ने 370 से ज्यादा सीटें हासिल करने का लक्ष्य रखा था और अबकी बार 400 पार का नारा उछाला था।
किन्तु एनडीए भी 400 के आसपास भी नहीं पुहंच पाई। यह अलग बात है कि प्रधानमंंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में लगातार तीसरी बार एनडीए की सरकार बनने का नया कीर्तिमान स्थापित हो गया।
किन्तु 2024 के जनादेश ने भाजपा कार्यकर्ताओं को हताश और निराश कर दिया है। भाजपा के प्रर्दशन ने यह साबित कर दिया है कि अब भाजपा का जनाधार कमजोर पडऩे लगा है। इसके कारणों की कई स्तर पर समीक्षा की गई।
और भाजपा को अपेक्षित सफलता न मिल पाने के कारणों की पड़ताल भी की गई। इसके बाद यह उम्मीद की जा रही थी की भाजपा अपनी गलतियों से सबक लेगी किन्तु उसने कोई सबक लिया है ऐसा नहीं लगता।
हरियाणा में केपीपी नामक क्षेत्रीय पार्टी के विधायकों को एन चुनाव के पूर्व तोड़ा गया है। ये दोनों ही विधायक भाजपा में शामिल हो गए है। इसी तरह झारखंड़ में भी वहां के पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन को भाजपा में शामिल कर लिया गया है जो सत्तारूढ़ झारखंड मुक्ति मोर्चा के वरिष्ठ नेता रहे है।
उनके साथ झामुमो के कुछ और विधायकों के टूट कर भाजपा में शामिल होने की अटकलें लगाई जा रही है। इस जोड़तोड़ की राजनीति का भाजपा को दुष्परिणाम भुगतना पड़ सकता है। क्योंकि दलबदलूओं को भाजपा में महत्व मिलने से भाजपा के समर्पित और निष्ठावान कार्यकर्ताओं में असंतोष फैलना स्वाभाविक है।
लोकसभा चुनाव के दौरान उत्तरप्रदेश में भी इसी तरह दलबदलूओं को तरजीह दी गई थी। नतीजतन उत्तरप्रदेश में भाजपा की सीटें आधी रह गई थी।
इसके पूर्व महाराष्ट्र में भी पहले शिवसेना दो फाड़ हुई और उसके बाद राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के भी दो टुकड़े हुए और एकनाथ शिंदे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बना दिए गए।
जबकि अजीत पवार को उपमुख्यमंत्री पद से नवाजा गया। इससे महाराष्ट्र की राजनीति में बवाल खड़ा हो गया और भाजपा पर शिवसेना और राकांपा को तोडऩे का आरोप लगा। लोकसभा चुनाव में एकनाथ शिंदे और अजीत पवार गुट को सिटें देनी पडी।
इससे वहां के भाजपा कार्यकर्ताओं में असंतोष फैला नतीजतन लोकसभा चुनाव में भाजपा को महाराष्ट्र में करारा झटका लगा। अब महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में भी भाजपा को सीटों के बटवारे को लेकर बड़ी चुनौती का समाना करना पड़ेगा।
महाराष्ट्र की घटना से भाजपा यदि सबक लेती तो वह हरियाणा और झारखंड़ में भी ऐसे अवसरवादियों के लिए अपने दरवाजे नहीं खोलती।
देखना दिलचस्प होगा कि जोडतोड़ की यह राजनीति भाजपा को 4 राज्यों के होने जा रहे विधानसभा चुनाव में कितनी सफलता दिलाती है या उसे झटका लगाती है।