Independence Day Special : छोटे से गांव का बालक अंग्रेजों की नाक में कर दिया था दम

Independence Day Special : छोटे से गांव का बालक अंग्रेजों की नाक में कर दिया था दम

Azadi Diwane Raipur Bemetara Navagarh Block Village Tenduwa Freedom Fighter Pt. Bhagwat Prasad Upadhyay

Azadi Diwane Raipur Bemetara Navagarh Block Village Tenduwa Freedom Fighter Pt. Bhagwat Prasad Upadhyay

बेमेतरा जिले के नवागढ़ ब्लॉक का ग्राम तेंन्दुवा में भी धधकी थी आजादी की ज्वाला, आजादी के दिवाने पं. भागवत प्रसाद उपाध्याय नन्हे कदमों से चल रायपुर में लगाए इंकलाब के नारे

नीरज उपाध्याय

रायपुर/नवप्रदेश। Azadi Diwane Raipur Bemetara Navagarh Block Village Tenduwa Freedom Fighter Pt. Bhagwat Prasad Upadhyay: बेमेतरा जिले में भी अंग्रोजों की गुलामी से आजादी के लिए ज्वाला फूटी थी। एक छोटे से गांव तेंन्दुवा से 15 साल की आयु में एक बालक के दिल में जज्बा जगा था। रायपुर में पढऩे के लिए गए बालक महात्मा गांधी के अंगे्रजों भारत छोड़ो के लिए अंादोलन से प्रेरित होकर स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़ा था। उन्होंने प्रदेश के बाहर भी अंगेजों के नाक में दम करते रहा।

समकालिन विद्यार्थियों को एकजुटकर आंदोलन की दिशा में साथ लाने वाले जिले के सपूत नवागढ़ ब्लॉक के ग्राम तेंदुवा के पं. भागवत प्रसाद उपाध्याय आजादी के ये दिवाने थे। जिले के नन्हे सपूत ने अपने प्राणों की परवाह किए बिना अपने सहपाठी साथियों को संगठित कर मातृभूमि के लिये मर मिटने की प्रतिज्ञा कर आजादी के आंदोलन में कूदने वालों में शामिल थे। नन्हे कदमों से चलकर रायपुर की गलियों में इंकलाब के नारे लगाए।

हमउम्र साथियों को किया एकजुट

रायपुर के स्कूलों व गली-कूचों में घूम-घूम कर अपनी ओजस्वी बातों से छात्रों व हमउम्र साथियों को इस आंदोलन में साथ लाने के लिए आव्हान कर सभी को एकजुट किया। तभी अंग्रेजों ने रायपुर में आंदोलन को कुचलने के लिए दमन चक्र चलाया और आंदोलन से जुड़े सभी बड़े नेताओं को गिरफ्तार कर जेल में बंद कर दिया।

कूट-कूट कर भरी थी बचपन से देशभक्ति की भावना

उसके बाद (Azadi Diwane Raipur Bemetara Navagarh Block Village Tenduwa Freedom Fighter Pt. Bhagwat Prasad Upadhyay) पं. भागवत प्रसाद उपाध्याय ने संस्कृत की शिक्षा ग्रहण करने दूधाधारी संस्कृत पाठ शाला रायपुर में प्रवेश लेकर संस्कृत की पढ़ाई शुरू की उसी समय राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी ने अंग्रेजों के गुलामी से देश को आजाद कराने अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन चलाया। श्री उपाध्याय जी के मन में देश प्रेम की भावना बचपन से ही कूट-कूट कर भरी हुई थी। महात्मा गांधी जी के आव्हान पर देश प्रेम की वह भावना छलक पड़ी। आजादी के ये दिवाने भारत माता के नन्हे सपूत अपने प्राणों की परवाह किये बिना अपने सहपाठी साथियों को संगठित कर मातृभूमि के लिये मर मिटने की प्रतिज्ञा कर आजादी के आंदोलन में कूद पड़े।

इनके साथ आंदोलनकारियों को 1942 में जेल में डाल दिया गया

महान देशभक्त केयूर भूषण मिश्रा, मोतीलाल त्रिपाठी जी के साथ मिलकर श्री उपाध्याय ने अपने सहपाठियों दीनबंधु, गजाधर प्रसाद, विसाहू राम, चेतन प्रसाद, हरप्रसाद द्विवेदी, विष्णु प्रसाद, चिन्ताराम द्विवेदी सहित सैकड़ो साथियों के साथ अंग्रेजों के खिलाफ जुलूस निकाल कर अंग्रेजों को भारत छोडऩे के लिए लगातार ललकारने लगे, जिससे परेशान होकर अंग्रेज शासकों ने सभी आंदोलनकारी छात्रों को गिरफ्तार कर जेल में डालना शुरू कर दिया। तब उपाध्याय के नेतृत्व में आंदोलन करनं वाले 22 छात्रों को रायपुर के कालीबाड़ी चौक के पास से 27 सितंबर, 1942 को गिरफ्तार कर वहां के सेन्ट्रल जेल में बंद कर दिया गया। यहां उन्हें छै माह की सजा सुनाई गई। जिसके बाद वे 20 मार्च , 1943 को रिहा हुए।

जेल से बाहर आते ही फिर कूद पड़े आजादी के रण में

जेल से रिहा (Azadi Diwane Raipur Bemetara Navagarh Block Village Tenduwa Freedom Fighter Pt. Bhagwat Prasad Upadhyay) होने पर उपाध्याय और अधिक उत्साह के साथ आजादी के आंदोलन में पुन: सक्रिय हो गये और फिर महात्मा गांधी जी के विचारों से प्रभावित होकर अपने साथियों के प्रेरणा स्त्रोत बन गए। इसी बीच सन 1945 में आगे पढ़ाई के लिए नागपुर में रहे, जहां अपने कर्म के तौर पर स्वतंत्रता के लिए गोरों को भारत छोडऩे के लिए ललकारते रहे, वे यह काम लगातार जारी रखा। तब एक बार फिर अंग्रेजी शासन ने उनके साथ सभी आंदोलनकारी छात्रों को गिरफ्तार कर दोबारा जेल में डाल दिया। लगातार अपने देश की आजादी के लिए कायम होकर आंदोलन करने वाले सपूतों के त्याग, तपस्या और बलिदान का फल देशवासियों को मिला और देश 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्र हो गया।

आजादी के बाद प्रधानमंत्री ने दिया ताम्रपत्र

आजादी के बाद महाकौशल प्रातीय कांग्रेस कमेटी के समापति गोविन्द दास जी ने स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भाग लेने के लिये पं. भागवत प्रसाद उपाध्याय को प्रशस्ति पत्र के रूप में ताम्रपत्र भेंट किया। 15 अगस्त, 1972 को तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने स्वतंत्रता आंदोलन में उनके स्मरणीय योगदान के लिये राष्ट्र की ओर से ताम्रपत्र भेंट कर सम्मानित किया। जिले के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी की सूची में उनका नाम 21वें क्रम पर दर्ज है। स्व. उपाध्याय नवागढ़ क्षेत्र के प्रथम पंक्ति के आंदोलनकारी व समाजसेवियों में से एक रहे हैं।

आज भी उनका संघर्ष लोगों में देशभक्ति का जज्बा जगा रहा

आजादी मिलने के बाद अपने क्षेत्र के विकास व शिक्षा के लिए जनप्रतिनिधि के तौर पर पं. भागवत प्रसाद उपाध्याय सेवा देते रहे। 23 अगस्त, 1992 को उनके गृह ग्राम तेन्दुवा में हृदयगति रूक जाने से उनका निधन होने के बाद भी लोगों के दिलों में वे जीवित हैं। जिले के महान् देश भक्त स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्व. भागवत प्रसाद द्वारा देश की आजादी के लिये दिये गये योगदान को चिर स्मरणीय बनाने सन 2002 में शासकीय हायर सेकेण्डरी स्कूल संबलपुर का नामकरण स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के नाम पर पं. भागवत प्रसाद उपाध्याय शासकीय हायर सेकेण्डरी स्कूल’ किया गया। 2020 में जन्मस्थली ग्राम तेंन्दुवा के हाई स्कूल का नामकरण भी पं. भागवत प्रसाद उपाध्याय शासकीय हाई स्कूल किया गया। सेनानी के पुत्र विजय उपाध्याय ने शासन स्तर पर उनके पिता के लिए किये गये कार्यों को लेकर संतुष्टि जाहिर की है।

इकलौती संतान भागवत जी का जीव वृत्तांत

स्वंतंत्रता संग्राम सेनानी पंडित स्व. भागवत प्रसाद उपाध्याय का जन्म 23 जून, 1927 को जिले के ग्राम तेंन्दुवा तहसील नवागढ़ में ब्राम्हण परिवार में हुआ था। वे गोपाल प्रसाद जी उपाध्याय व माता श्रीमती ललिता देवी के एकलौते संतान थे। उपाध्याय जी बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के मेधावी बालक थे, जिनका प्राथमिक शिक्षा ग्राम पुरान, तहसील मुंगेली, जिला बिलासपुर में हुई थी। जिसके बाद संस्कृत की शिक्षा पाने के लिए दूधाधारी संस्कृत पाठशाला रायपुर में प्रवेश लेकर संस्कृत का अध्ययन किया, इसी दौरान आजादी के आंदोलन से जुड़ गए।

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