NVPRADESH SPECIAL: छत्तीसगढ़ व महाराष्ट्र का पोला एक सरीखा, अंतर बस इतना सा…
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महाराष्ट्र के विदर्भ में पोले के दूसरे दिन निकाली जाती है मारबत
रायपुर/ नवप्रदेश। छत्तीसगढ़ (chhattisgarh) व महाराष्ट्र (maharashtra) के विदर्भ में पोला (pola) का उत्सव धूमधाम से मनाया जाता है। इस पर्व पर दोनों राज्यों में किसानों के साथ ही आम लोग भी बैलों (bullock) की पूजा करते हैं। बैलों की दौड़ का भी आयोजन होता है। विदर्भ के गांवों के मैदानों पर बैलों का पोला (मेला) भरता है, जिसमें किसान बैलों को सजाकर ले जाते हैं। यहां उनकी पूजा होती है। मैदान से छूटने के बाद किसान बैलों (bullock) को घर-घर ले जाते हैं, जहां बैलों को खाना दिया जाता है। बैल ले जाने वाले किसानों को लोग तिलक लगाकर शुभकामना देते हैं, साथ ही कुछ पैसे भी।
छत्तीसगढ़ में भी इस तरह बैलों का मेला लगता है। बैल (bullock) दौड़ का भी आयोजन होता है। लेकिन विदर्भ में पोला पर्व का दूसरा दिन होता है मारबत (बीमारी, बुराइयों का प्रतिकात्मक पुतला) निकालने का। दरअसल इस माह में वर्षा जनित बीमारियां- सर्दी, खांसी, मलेरिया आदि फैलती हंै। मारबत को इन बीमारियों व समाज में व्याप्त बुराइयों का प्रतीक मानकर लोग इसे अपने घर से निकालते हैं। सामूहिक तौर पर भी विशालकाय पुतला बनाकर निकाला जाता है, जिसे गांवों व शहरों के बाहर ले जाकर जलाया जाता है। महाराष्ट्र की उपराजधानी नागपुर में भी ऐसे दो विशालकाय पुतले (काली व पीली मारबत) निकाले जाते हैं।
छग के जैसे ही विदर्भ में लगती है बच्चों के लिए दुकानें
पोले के लिए जिस तरह छत्तीसगढ़ में छोटे बच्चों के लिए मिट्टी से बने बैलों (bullock) की दुकानें सजती हैं, वैसे ही विदर्भ में भी लकड़ी से बने नंदी (बैलों) की दुकानें लगती हैं। हालांकि मारबत वाले दिन विदर्भ में बच्चे मिट्टी के बैल (bullock) व लकड़ी के नंदी लेकर घर-घर जाकर जाते हैं।
लोग उन्हें मिठाइयां या पैसे देते हैं। कहीं-कहीं शाम को बच्चों के लिए लकड़ी के बने बैलों (bullock) का भी पोला (छोटा पोला)भरता है। जिसका बैल (bullock) जितना ज्यादा आकर्षक होता है उसे इनाम दिया जाता है।