Incidents of Rape : बलात्कार के बढ़ती घटनाएं और लचर व्यवस्था
डॉ. सुरभि सहाय। Incidents of Rape : देश में बलात्कार की घटनाएं निरन्तर बढ़ रही हैं। अबोध बालिका से लेकर वृद्ध महिलाएं तक वहशीपन का शिकार हो रही हैं। समस्या का दुखद पहलू यह है कि बलात्कार जैसे अपराधों में पीडि़त महिलाओं को ही बदनाम होने का डर रहता है। उन्हें लगता है कि अगर वे शिकायत करेंगी, तो समाज उन्हें ही कलंकित करेगा।
दरअसल, हमारे कुछ नेताओं ने विवादास्पद बयानों को लेकर इस डर को बढ़ा भी दिया है। ऐसे में ज्यादातर महिलाएं अपने साथ हुए यौन दुव्र्यवहार के बारे में किसी को नहीं बताती। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट में कहा गया था कि 2001 से 2017 के बीच यानी 17 वर्षो में देश में रेप के मामले दोगुने से भी ज्यादा बढ़ गए हैं। वर्ष 2001 में देश में जहां ऐसे 16,075 मामले दर्ज किए गए थे वहीं वर्ष 2017 में यह तादाद बढ़ कर 32,559 तक पहुंच गई।
अहम प्रश्न यह है कि आखिर महिलाओं के खिलाफ ऐसे बर्बर मामलों पर अंकुश क्यों नहीं लग पा रहा है? इस सवाल पर सरकारों और समाजशास्त्रियों के नजरिए में अंतर है। मुश्किल यह है कि सरकारें या पुलिस प्रशासन ऐसे मामलों में कभी अपनी खामी कबूल नहीं करते। इसके अलावा इन घटनाओं के बाद होने वाली राजनीति और लीपापोती की कोशिशों से भी समस्या की मूल वजह हाशिए पर चली जाती है। यही वजह है कि कुछ दिनों बाद सब कुछ जस का तस हो जाता है। वर्ष 2018 में हुए थॉम्पसन रॉयटर्स फाउंडेशन के सर्वेक्षण के मुताबिक, लैंगिक हिंसा के भारी खतरे की वजह से भारत पूरे विश्व में महिलाओं के लिए सबसे खतरनाक देशों के मामले में पहले स्थान पर था।
अब तक इस मुद्दे पर हुए तमाम शोधों से साफ है कि बलात्कार (Incidents of Rape) के बढ़ते हुए इन मामलों के पीछे कई वजहें हैं। मिसाल के तौर पर ढीली न्यायिक प्रणाली, कम सजा दर, महिला पुलिस की कमी, फास्ट ट्रैक अदालतों का अभाव और दोषियों को सजा नहीं मिल पाना जैसी वजहें इसमें शामिल हैं। इन सबके बीच महिलाओं के प्रति सामाजिक नजरिया भी एक अहम वजह है। समाज में मौजूदा दौर में भी लड़कियों को लड़कों से कम समझा जाता है। विशेषज्ञों का कहना है कि देश में रेप महज कानून व्यवस्था की समस्या नहीं है। पितृसत्तात्मक समाज में पुरुषों को ज्यादा अहमियत दी जाती है और महिलाओं को दोयम दर्जे का नागरिक माना जाता है।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो ने 2020 में हुए अपराधों के जो आंकड़ें जारी किये हैं उनके अनुसार, पूरे देश में 2020 में बलात्कार के प्रतिदिन औसतन करीब 77 मामले दर्ज किए गए. पिछले साल दुष्कर्म के कुल 28,046 मामले दर्ज किए गए। देश में ऐसे सबसे अधिक मामले राजस्थान में और दूसरे नंबर पर उत्तर प्रदेश में दर्ज किए गए।
केंद्रीय गृह मंत्रालय के तहत आने वाले एनसीआरबी ने कहा कि पिछले साल पूरे देश में महिलाओं के विरूद्ध अपराध के कुल 3,71,503 मामले दर्ज किए गए जो 2019 में 4,05,326 थे और 2018 में 3,78,236 थे। एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार, 2020 में महिलाओं के विरूद्ध अपराध के मामलों में से 28,046 बलात्कार की घटनाएं थी जिनमें 28,153 पीडि़ताएं हैं। पिछले साल कोविड-19 के कारण लॉकडाउन लगाया गया था। उसने बताया कि कुल पीडि़ताओं में से 25,498 वयस्क और 2,655 नाबालिग हैं। एनसीआरबी के गत वर्षों के आंकड़ों के मुताबिक, 2019 में बलात्कार के 32,033, 2018 में 33,356, 2017 में 32,559 और 2016 में 38,947 मामले थे।
वर्ष 2020 में बलात्कार के सबसे ज्यादा 5,310 मामले राजस्थान में दर्ज किए गए. इसके बाद 2,769 मामले उत्तर प्रदेश में, 2,339 मामले मध्य प्रदेश में, 2,061 मामले महाराष्ट्र में और 1,657 मामले असम में दर्ज किए गए। आंकड़ों के मुताबिक, राष्ट्रीय राजधानी में बलात्कार के 997 मामले दर्ज किए गए हैं। वर्ष 2020 में महिलाओं के खिलाफ अपराध के कुल मामलों में से, सबसे ज्यादा 1,11,549 ‘पति या रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता’ की श्रेणी के थे जबकि 62,300 मामले अपहरण के थे।
एनसीआरबी के आंकड़े बताते हैं कि 85,392 मामले ‘शील भंग करने के लिए हमलाÓ करने के थे तथा 3,741 मामले बलात्कार की कोशिश के थे। उसमें बताया गया है कि 2020 के दौरान पूरे देश में तेजाब हमले के 105 मामले दर्ज किए गए। आंकड़ों के मुताबिक, भारत में साल 2020 में दहेज की वजह से मौत के 6,966 मामले दर्ज किए गए जिनमें 7,045 पीडि़ताएं शामिल थीं। इसमें कोई दो राय नहीं है कि बलात्कार समाज और देश की असफलता भी है।
एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2019 में 33,658 बलात्कार किए गए। करीब 94 फीसदी मामले ऐसे थे, जिनमें बलात्कारी और बेटी या महिला एक-दूसरे को जानते थे। बीते 10 सालों के दौरान बलात्कार और सामूहिक दुष्कर्म के 2.75 लाख से अधिक मामले दर्ज किए गए। जो किसी भी वजह से दर्ज नहीं कराए गए, यदि उन हादसों और यौन हमलों को भी शामिल कर लिया जाए, तो हमारे गांव, शहर, समाज और देश का एक और वीभत्स और विकृत चेहरा सामने आएगा। यह अपराध हमारे समाज और देश की निरंतरता भी बन चुका है।
महिला और बाल कल्याण विभाग की रिपोर्ट में ये बात साफ हुई है कि समाज में महिलाओं की सुरक्षा के लिए उचित इंतजाम नहीं किए गए हैं। बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन, पब और गलियां हर जगह महिलाएं खुद को असुरक्षित महसूस करती हैं। सार्वजनिक जगहों पर भी महिलाओं के साथ छेड़छाड़ की घटनाएं होती रहती हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि अपराधों को (Incidents of Rape) कम कर दिखाने की पुलिसिया प्रवृत्ति भी काफी हद तक ऐसे मामलों के लिए जिम्मेदार हैं। निर्भया केस के बाद देश में बलात्कार के मामलों पर व्यापक आंदोलन और बहस की शुरूआत हुई थी। केंद्र सरकार ने कानून में भी जरूरी बदलाव किये थे। ये भी जमीनी सच्चाई है कि देश में 600 से अधिक फास्ट ट्रैक अदालतें सक्रिय हैं।