International Women’s Day : अपने अधिकार से वंचित आधी आबादी
International Women’s Day : दुनिया की आधी आबादी जो महिलाओं की है वे आज भी अपने अधिकारों से वंचित है। हर साल विश्व में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है और इस दिन महिलाओं के उत्थान की बड़ी-बड़ी बातें की जाती है किन्तु महिला दिवस निपटते ही उन बातों को फिर एक साल के लिए भूला दिया जाता है। भारत में तो महिलाओं की स्थिति और भी दयनीय है। पुरूष प्रधान समाज में महिलाओं के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार किया जा रहा है। आज भी भारतीय महिलाएं अपने वाजिब अधिकारों से वंचित है। खासतौर पर ग्रामीण महिलाओं की स्थिति बेहद खराब है।
उन्हे न तो समूचित शिक्षा मिल पाती है और न ही उचित स्वास्थ्य सुविधाएं (International Women’s Day) उनतक पहुंच पा रही है। पुरूषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम करने वाली महिलाओं की यह दुर्दशा देखकर आज भी प्रासंगिक है यह पंक्तियां- अबला जीवन हाए तेरी कहानी, आंचल में दूध और आंखों में पानी। महिलाओं के हितों की रक्षा के लिए अनेक समाजिक संगठन बने है महिला आयोग बना है और राज्य व केन्द्र सरकार ने कई कानून भी बना रखे है। इसके बावजूद आज भी महिलाएं अन्याय, अत्याचार, अनाचार और शोषण का शिकार बन रही है। महिलाओं के प्रति अपराध की घटनाओं में कमी नहीं आ रही है।
दरअसल महिलाओं के उत्थान के लिए महिलाओं को ज्यादा से ज्यादा राजनीति में भागीदारी मिलनी चाहिए लेकिन वह भी नहीं हो पा रहा है। संसद और विधानसभाओं में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण देने के लिए पेश किया गया विधेयक पिछले कर्ई सालों से अधर में लटका हुआ है। जबकि कायदे से आधी आबादी को संसद और विधानसभाओं में 50 प्रतिशत आरक्षण मिलना चाहिए लेकिन उन्हे 33 प्रतिशत आरक्षण भी नहीं दिया जा रहा है।
अलबत्ता तृीस्तरीय पंचायती राज और नगरीय निकायों में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण दिया जा रहा है जिससे पंचायतों और नगरीय निकायों में महिलाओं की भागीदारी बढऩे से महिलाओं के जीवन स्तर में सुधार हो रहा है और उनके उत्थान की राह भी निकल रही है लेकिन विधानसभाओं और संसद में महिलाओं को अब तक उनके हित वाजिब अधिकार से वंचित रखा गया है।
सभी राजनीतिक पार्टियां महिलाओं के हितों (International Women’s Day) की रक्षा करने का बढ़-चढ़कर दावा करती है लेकिन महिला आरक्षण विधेयक को पारित कराने के लिए उनमें आज तक मतेग्य स्थापित नहीं हो पाया है। यही वजह है कि महिलाओं के सर्वागिंण विकास और महिलाओं की सुरक्षा के लिए संसद और विधानसभाओं से कड़े कानून नहीं बन पा रहे है। नतीजतन महिलाओं की स्थिति में जिस तेजी से सुधार होना चाहिए वह नहीं हा पा रहा है।