Tribal Dance Festival : एक मंच पर दिखेगी 8 देशों की कला और संस्कृति
28 से 30 अक्टूबर तक प्रस्तावित महोत्सव के लिए साइंस कॉलेज का मैदान तैयार
रायपुर/नवप्रदेश। Tribal Dance Festival : नृत्य और सरगम का अद्भूत संगम 28 से 30 अक्टूबर तक प्रस्तावित राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव में देखने को मिलेगा। इस बार उत्सव का उत्साह का आलम कुछ और ही होगा, क्योंकि इसमें 8 देशों की कला-संस्कृति देखने का अवसर मिलेगा। हालांकि इन देशों की सैद्धांतिक सहमति के बाद से ही साइंस कालेज मैदान में महोत्सव की तैयारियां देखी जा सकती है।
संस्कृति विभाग ने विभिन्न देशों के दूतावासों और उच्चायोगों के जरिए आदिवासी नृत्य महोत्सव का न्योता भेजा था। इनमें से नाइजीरिया, स्वाजीलैंड, युगांडा, माले, श्रीलंका, उज्बेकिस्तान, फिलिस्तीन और सीरिया ने महोत्सव में शामिल होने की सैद्धांतिक सहमति दे दी है। इन देशों के लोक नर्तक अगले कुछ दिनों में रायपुर पहुंचने वाले हैं। विभाग ने इसकी तैयारियां भी शुरू कर दी हैं।
विभाग ने इन विदेशी नर्तक दलों के रहने, आने-जाने और अन्य सुविधाओं की व्यवस्था के लिए वरिष्ठ अधिकारियों को जिम्मेदारी बांटी है। भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी डी. राहुल वेंकट को युगांडा, नाइजीरिया, और स्वाजीलैण्ड के कलाकारों और प्रतिनिधियों के लिए प्रभारी बनाया गया है। भारतीय प्रशासनिक सेवा के अभिजीत सिंह को माले, उज्बेकिस्तान और श्रीलंका के प्रतिभागियों का जिम्मा मिला है।
भारतीय प्रशासनिक सेवा की ही इफ्फत आरा को फिलिस्तीन और सीरिया के कलाकारों की व्यवस्था का जिम्मा मिला है। वहीं राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारी मनीष मिश्रा और शशांक पाण्डेय को नृत्य महोत्सव की जूरी के साथ समन्वय के लिए प्रभारी अधिकारी नियुक्त किया गया है।
वाद्ययंत्रों में सुनेंगे सूखे पत्तों की सरसराहट
छत्तीसगढ़ (Tribal Dance Festival) की भी अपनी अलग संस्कृति और पहचान है। सरगुजा से लेकर बस्तर तक, वहां की प्रकृति में समाई नदी-नालों, झरनों,जलप्रपातों की अविरल बहती धाराओं की कलकल, झरझर की गूंज हो या बारिश में टिप-टिप गिरती पानी की बूंदे या उफान में रौद्र बहती नदियों की धारा, शांत जंगल में पंछियों का कलरव हो या छोटी-छोटी चिडिय़ों की चहचहाहट, पर्वतों, घने जंगलों से आती सरसराती हवाएं हो या फिर वन्य जीवों की खौफनाक आवाजें, भौरों की गुंजन, कीड़े-मकौड़े, झींगुरों की आवाज से लेकर पेड़ो से गिरते हुए पत्तों और जरा सी हवा चलने पर दूर-दूर सरकते सूखे पत्तों की सरसराहट सहित कई ऐसी धुने हैं जो सरगुजा से लेकर बस्तर के बीच जंगलों में नैसर्गिक और खूबसूरत दृश्यों के साथ समाई है।
भले ही हम इन प्रकृति और प्रकृति के बीच से उठती धुनों की भाषाओं को समझ नहीं पाते, लेकिन इनके बीच कुछ पल वक्त गुजारने से ऐसा महसूस होता है कि जंगलों, नदी, पर्वतों, वन्य जीवों की भी सुख-दुख से जुड़ी अनगिनत कहानियां है जो अपनी भाषाओं, अपनी शैलियों में गीत गाते हैं, नृत्य करते हैं और इनका यह गीत और नृत्य इनके आसपास रहने वाले जनजातियों की संस्कृति में घुल-मिलकर वाद्य यंत्रों के सहारे हमें नृत्य के साथ देखने और समझने को मिलता है।
2019 में पहली बार हुआ था आयोजन
आपको ज्ञात हो कि, रायपुर में राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव की शुरुआत दिसंबर 2019 से हुई। पहली बार इसमें छह देशों बांग्लादेश, श्रीलंका, थाईलैंड, यूगांडा, बेलारूस और मालदीव के कलाकार शामिल हुए थे। उस साल तय हुआ था कि यह महोत्सव अब राज्योत्सव के साथ ही होगा। 2020 में कोरोना संकट की वजह से आयोजन नहीं हो पाया।
न्योता देने सभी प्रदेशों में गए थे विधायक
रायपुर के आदिवासी नृत्य महोत्सव (Tribal Dance Festival) का न्योता लेकर छत्तीसगढ़ के विधायक और संसदीय सचिव अलग-अलग प्रदेशों में गए थे। वहां मुख्यमंत्रियों, राज्यपाल और संस्कृति मंत्रियों से मिलकर न्योता दिया।