Democracy : हंगामे की भेंट चढ़ती देशवासियों की उम्मीदें

Democracy : हंगामे की भेंट चढ़ती देशवासियों की उम्मीदें

Democracy: The hopes of the countrymen rising due to the uproar

Democracy

Democracy : संसद के मानसून सत्र की शुरूआत हंगामे के साथ हुई है। विपक्ष संसद की कार्यवाही मे लगातार अवरोध पैदा कर रहा है। विपक्ष के चरित्र से इस बात की पूरी उम्मीद है कि आम जनमानस का कुछ भी भला इस सत्र में होने वाला नहीं है। जनता खाली हाथ थी और खाली हाथ ही रहेगी। हंगामा करके जनता की गाढ़ी कमाई से चलने वाली संसद में बड़ी निर्दयता और निर्लज्जता से देश का धन अपव्यय किया जा रहा है।

संसद लोकतंत्र का वह मंदिर जिस की तरफ पूरे देश और देशवासियों को उम्मीदें, आशाएं और विश्वास होता है। पूरे देश की दृष्टि इस पर लगी रहती है। यही बैठकर हमारे द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधि हमारे लिये कल्याणकारी नीतियां, कानून और भालाई के कार्य करते हैं। लेकिन कोरोना महामारी के समय मानसून सत्र में जो दृश्य दिखाई दे रहे हैं, वो कोरोना महामारी के कहर के कारण निराश और टूट चुके समाज को एक और बड़ी निराशा की ओर धकेल रहा है।

सरकार और विपक्ष में आरोप-प्रत्यारोप की प्रथा कोई नयी नहीं है। इसमें दोनों को ही खूब आंनद भी आता है। लेकिन कोरोना महामारी का संकट सिर पर मंडरा रहा है। तीसरी लहर की आंशका जताई जा रही है। ऐसे में हंगामे और राजनीति के मध्य आम जनमानस की भलाई से जुड़े गंभीर और अति महत्व के विषयों की घोर अनदेखी हो रही है।

संसद का मानसून सत्र चल रहा है। संसद सत्र वह समय होता है जब देश भर के चुने हुए सांसद देश की राजधानी दिल्ली की ओर रुख करते हैं। रुख किया जाता है सत्र मे शामिल होने के लिए। रुख किया जाता है कि दिल्ली पहुंच कर अपने प्रदेश की जनता के लिए जितना हो सके किया जाए। यही कारण होता है वोट देकर सांसदों को संसद मे भेजने का भी। ताकि साल मे तीन बार जब-जब संसद का सत्र शुरू हो तब-तब आपके संसद जी वहां जाकर अपने संसदीय क्षेत्र की समस्याओं का समाधान करें। लेकिन सांसद जी ऐसा क्यूं करेंगे ?

क्योंकि वो ऐसा करने के लिए मोटा पैसा लेते हैं। लेकिन इतना पैसा लेने के बाद भी आजकल यह देखना आम हो गया है कि संसद फलाना समय के लिए स्थगित, तो ढिमकाना समय के लिए स्थगित। यहां से सांसद जी जाते हैं काम करने, वहां धरना, प्रदर्शन और हो-हल्ले में मशगूल हो जाते हैं। अब वो पैसा जो उनके वहां जाने से खर्च हुआ वह किसका होता है? वह पैसा आपका और हमारा होता है।

एक रिपोर्ट के अनुसार 29 जनवरी से 9 फरवरी और 5 मार्च से 6 अप्रैल 2018 तक दो चरणों में चले बजट सत्र में 190 करोड़ से ज्यादा रुपए खर्च हुए। यानी प्रति मिनट संसद की कार्यवाही पर तीन लाख रुपए से ज्यादा का खर्च आया। संसदीय आंकड़ों की बात करें तो 2016 के शीतकालीन सत्र के दौरान 92 घंटे व्यवधान की वजह से बर्बाद हो गए थे। इस दौरान 144 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ। जिसमें 138 करोड़ संसद चलाने पर और 6 करोड़ सांसदों के वेतन, भत्ते और आवास पर खर्च हुए।

एक साल के दौरान संसद (Democracy) के तीन सत्र होते हैं। इसमें से भी अगर साप्ताहांत और अवकाश को निकाल दिया जाए तो यह समय लगभग तीन महीने का रह जाता है। यानी केवल 70-80 दिन कामकाज होता है जिसमें भी संसद ठीक तरह से चल नहीं पाती है। इसे ऐसे समझिए कि संसद के एक घंटे की कार्यवाही पर 1.2 करोड़ रुपए खर्च होते हैं। यानि हर मिनट करीब 2.5 लाख रुपए। ये संसद मे होने वाले काम तीन सत्रों मे बटे होते हैं।

एक सत्र 2-4 महीने का हो सकता है। लेकिन कुल महीनो मे से 5-7 महीने हीं काम के होते हैं। उनमे से कम से कम 2 महीने निकल जाते हैं सप्ताहांत अवकाशों मे। बाकी महीने सांसदों के हंगामे और बहिष्कार मे निकल जाते हैं। तो साल मे 60-70 दिन हीं वैसे बचते हैं जिनमे संसद काम कर पता हो।

यह पैसा कई चीजों पर खर्च होता है। जैसे सांसदों के वेतन पर, उनको मिलने वाले भत्तों पर, संसद सचिवालय पर आने वाले खर्चो पर, उनके कर्मचारियों के वेतन के रूप मे, सत्र के दौरान सांसदों की सुविधाओं के ऊपर। पिछले कुछ आंकड़ों की तुलना करें तो आप यह देखेंगे कि बजट सत्र मे बजट पर चर्चा के लिए निर्धारित घंटों के 20 फीसदी या 33 घंटे बहस होती है। लेकिन पिछले कुछ सालों से इस आंकड़े मे भारी गिरावट है। साल 2010 प्रोडक्टिविटी के नजरिए से सबसे खराब साल रहा।

वर्ष 2014 के बाद सबसे कम काम 2016 शीतकालीन सत्र में हुआ था।इस सत्र में सांसदों ने लगभग 92 घंटे के काम में व्यवधान डाला, जिसके कुल खर्च का अनुमान लगाया जाये, तो वो 144 करोड़ रुपयों का होगा। सबसे हैरानी की बात ये है कि पिछले कई सालों की तुलना में 2016 में संसद की कार्यवाही सबसे ज्यादा बार स्थगित हुई है। हर सत्र में लगभग 18 या 20 दिन संसद की कार्यवाही चलती है। राज्यसभा में हर दिन पांच घंटे का और लोकसभा में छह घंटे का काम होता है। वर्ष 2016 में पहले सत्र में हंगामे की वजह से 16 मिनट बर्बाद हुए, जिसकी वजह से 40 लाख का नुकसान हुआ, दूसरे सत्र में 13 घंटे 51 में 20 करोड़ 7 लाख का नुकसान, तीसरे सत्र में 3 घंटे, 28 मिनट कार्यवाही ठप्प में 5 करोड़ 20 लाख का नुकसान हुआ।

चौथे सत्र में 7 घंटे, 4 मिनट की बर्बादी में 10 करोड़ 60 लाख रुपये का नुकसान, पांचवें सत्र में 119 घंटे बर्बाद यानि 178 करोड़ 50 लाख का नुकसान हुआ। एक अनुमान के अनुसार साल 2010 से 2014 के बीच संसद के 900 घंटे बर्बाद हुए। अब आप अंदाजा लगा सकते हैं कि कितना पैसा बर्बाद हुआ होगा। पिछले रिकार्ड की तुलना में संसद का इस वर्ष का बजट सत्र काफी बेहतर रहा। इस वर्ष संसद का बजट सत्र 29 जनवरी से 25 तक दो चरणों में सम्पन्न हुआ।

सत्र के दौरान एक फरवरी को वित्त मंत्री ने कोविड के बाद का बजट पेश किया और सदन में कई अहम बिल पारित हुए। बजट सत्र (Democracy) के दौरान लोकसभा ने करीब 132 घंटे कामकाज किया। इस दौरान सदन में कुल 17 बिल पेश किए गए और सदन ने 18 बिलों को पास किया। सदन में राष्ट्रपति के के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव की चर्चा करीब 17 घंटे चली और लगभग 150 सांसदों ने इस पर अपने विचार रखे।

इस तरह सदन की उत्पादकता करीब 114 प्रतिशत रही। राज्यसभा की कार्यवाही भी बजट सत्र में 104 घंटे से अधिक समय तक चली। सदन की कुल 23 बैठकें हुईं. इस दौरान राज्यसभा ने 19 बिलों को पास किया। बजट सत्र के पहले चरण में राज्यसभा की प्रोडक्टिविटी 99.6 प्रतिशत और दूसरे चरण में 85 प्रतिशत रही। इस तरह राज्यसभा ने 90 फीसदी की उत्पादकता के साथ काम किया।

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