Corruption Department : कौन है जो आदिवासियों का हक छीन रहा है...? |

Corruption Department : कौन है जो आदिवासियों का हक छीन रहा है…?

Corruption Department: Who is taking away the rights of tribals...

Corruption Department

केशकल विधानसभा के पूर्व आदिवासी विधायक ने लगाए गंभीर आरोप

केशकाल/नवप्रदेश। Corruption Department : केशकल विधानसभा के पूर्व आदिवासी विधायक कृष्ण कुमार ध्रुव ने राजस्व विभाग और प्रशासनिक अधिकारियों पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उन्होंने कहा कि आदिवासियों के अधिकारों और हितों पर हमला करते हुए उन्हें उनके अधिकारों से वंचित किया जा रहा है।

उन्होंने कहा कि प्रशासनिक अधिकार से लैस कार्यपालक दंडाधिकारी एवं राजस्व अधिकारियों द्वारा सुनियोजित तरीके से षडयंत्र कर आदिवासियों को उनके संवैधानिक एवं प्राकृतिक हक से वंचित करते रहे हैं। उनका कहना है कि राज्य सरकार के स्पष्ट आदेशों और कड़े नियम-कायदों के बाद भी आज तक बड़ी संख्या में 170ख मामलों को जानबूझकर उलझाकर लंबित रखा गया है।

आदिवासी अपनी जमीन पाने के लिए कर रहे हैं संघर्ष

आदिवासी अपने बड़े बुजुर्गों के द्वारा सहेजे गये जमीन को जल प्रपंच षडयंत्र पूर्वक हड़पे गये जमीन का हक पाने वर्षों से चक्कर काट काटकर त्रस्त हो चुके हैं। आदिवासी बाहुल्य बस्तर संभाग में ही बहुसंख्यक आदिवासी समाज को अपने वंशानुगत भूमि से और गांव के सार्वजनिक उपयोग के शासकिय भूमि से बेदखल किया जा रहा है।

जब गैर आदिवासी के नाम बना दिया पट्टा

पूर्व विधायक ने उदाहरण बतौर केशकाल तहसील के ग्राम पीपरा चिखलाडिह के मामले की तरफ ध्यान आकर्षित करते हुए बताया कि, आदिवासी बाहुल्य गांव में पहले असत्य जानकारी दर्ज कर कुछ गैर आदिवासी के नाम से गांव वालों के निस्तार में उपयोग आने वाली सरकारी जमीन का पट्टा बना दिया गया।

उसके बाद महज उन्हीं गैर आदिवासियों के जमीन का नक्शा काटकर भूमि राजस्व रिकार्ड में चढ़ा दिया गया, ताकि शहर के नामी गिरामी नेता एवं धनाढ्य भूमाफिया उस जमीन की खरीद-फरोख्त करके भू स्वामी बन सके।

ध्रुव ने बताया की 2006 में पटवारी ने गांव में रहने वाले आदिवासियों (Corruption Department) को दिये गये पट्टों को दरकिनार रखते गांव के बाहर के उन गैर आदिवासियों के पट्टों के जमीन भर का कूटरचित नक्शा कांट छांटकर दस्तावेज तैयार कर दिया गया, जिसका 9 अगस्त 2007 को रजिष्ट्री कर लिया गया।

एक ही जमीन को बेचा दो बार

कूटरचित दस्तावेज तैयार करने से लेकर जमीन खरीद फरोख्त की अनुमति लेने-देने का और रजिष्ट्री नामांतरण होने का काम बहुत ही योजनाबद्ध से राजस्व विभाग के पटवारी से लेकर जिला मुख्यालय में बैठे वरिष्ठ अधिकारी तक ने कर दिया।

जिसके बाद उक्त क्रेता को काबिज कराने में राजस्व विभाग के लोगों ने और कृषकों को लाभान्वित करने वाली योजना का नाजायज लाभ दिलाने में कृषि विभाग (Corruption Department) एवं मत्स्य पालन विभाग ने बड़ी प्राथमिकता और उदारतापूर्वक कार्य कर लाभान्वित किया गया। 9 अगस्त 2007 को जिस खसरा नम्बर 1097/8 एवं खसरा नम्बर 1097/9 का रजिष्ट्री बैनामा हुआ वह जमीन 5 जून 2012 को फिर दूसरे को रजिष्ट्री बैनामा कर दिया गया, परन्तु जानकार बताते हैं कि दोनों रजिष्ट्री के नक्शे में बहुत अंतर है।

वास्तविकता तो यह है कि गांव में बांटे गये पट्टों में से किसी भी हितग्राही किसान के जमीन का न नक्शा काटा गया था न रिकार्ड दुरूस्त किया गया था। गांव के लोग उस जमीन का उपयोग चारागाह के लिए करते आ रहे थे।

Corruption Department: Who is taking away the rights of tribals...

रतनजोत पौधरोपण में खेला बड़ा खेल

तात्कालिन मुख्यमंत्री डां रमनसिंह की सरकार ने रतनजोत लगवाने की योजना क्रियान्वित किया तो वंहा पर लाखों रूपया खर्च करके वन विभाग के द्वारा पूरे क्षेत्र में बहुत बड़ी संख्या में रतनजोत का पौधारोपण करवा दिया गया था। रतनजोत का पौधारोपण होने के बाद कूटरचित दस्तावेज तैयार करके सरकारी जमीन का खरीद फरोख्त किया गया। फर्जी अभिलेख के सहारे रजिष्ट्री बैनामा नामांतरण होने के बाद सरकारी धनराशि से लगाये गये रतनजोत को तहस नहस कर क्रेता द्वारा उक्त जमीन पर कब्जा किया गया।

रतनजोत का पौधारोपण होने के बाद कूटरचित दस्तावेज तैयार करके सरकारी जमीन का खरीद फरोख्त किया गया। फर्जी अभिलेख के सहारे रजिष्ट्री बैनामा नामांतरण होने के बाद सरकारी धनराशि से लगाये गये रतनजोत को तहस नहस कर क्रेता द्वारा उक्त जमीन पर कब्जा किया गया।

काबिज होने के बाद कृषि विभाग से सिंचाई हेतु अनुदान वाला ट्यूबेल भी हो गया। हद तो तब हुई जब बोर कराने और मशीन लगाने का काम भी कृषि विभाग ने भूस्वामी को ही दे दिया था। इसके बाद 5 जून को यह जमीन बिक्री बैनामा कर दिया गया। जिसके बाद कृषि विभाग से और मत्स्य पालन विभाग द्वारा तालाब खोदने व मछली पालन करने बड़ी उदारता से अनुदान दें दिया गया।

मछली पालन के नाम पर लिया अनुदान पर किया नहीं

कृषि कार्य और मछली पालन में अनुदान लेने के बाद उसी भूमि का व्यवसायिक प्रयोजन हेतु मद परिवर्तन भी करा लिया गया। इस बीच गांव के आदिवासी तहसीलदार एस डी एम कलेक्टर से जमीन के बारे में हकिकत से वाकिफ कराया, तो उस जमीन का रजिष्ट्री बैनामा निरस्त कर गांव वालों के निस्तार सुविधा एवं पशुओं के चारागाह हेतु आरक्षित रखने का आवेदन दिया गया। दुखद पहलू ये है कि अधिकारी इंसाफ करने की बजाय अप्रत्यक्ष तौर पर गलत लोगों को संरक्षण दिया।

पूर्व विधायक ने यह आरोप भी लगाया, जिसमें राजस्व विभाग के अधिकारी आदिवासियों के सड़क किनारे की बहुकिमती जमीनों का गैर आदिवासी भूमाफियाओं को अघोषित भूस्वामी बनाने में लगे हुए हैं।

गरीबी रेखा के नीचे रहकर जीवन गुजर बसर करने और गैर आदिवासी के पास काम करने वाले मजदूरों के नाम पर लाखों की बेनामी खरिदी बिक्री करने में सहभागी बनकर राजस्व अधिकारी अपना स्वार्थ साध रहे हैं।

आदिवासी के जमीन के बेनामी खरिदी बिक्री की लिखीत सप्रमांण शिकायत बस्तर कमीश्नर कलेक्टर तक हुई पर जांच के नाम पर जानबूझकर लेट-लतिफ किया जा रहा है।

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