chanakya neeti: वासना से प्रेरित होकर नहीं, अपितु केवल सन्तान को जन्म देने..
chanakya neeti: एक समय के भोजन से सन्तुष्ट रहकर छह कर्तव्य कर्मों-प्रतिदिन यज्ञ करना-करवाना, वेदों का अध्ययन और अध्यापन करना तथा दान देना और लेना का नियमित पालन करने वाला तथा केवल ऋतुकाल में स्त्री से विषय भोग करने वाला।
अर्थात्-विषय वासना से प्रेरित होकर नहीं, अपितु केवल सन्तान को जन्म देने के लिए ही रति-भोग में ही प्रवृत्त होने वाला ब्राह्मण द्विज (ग्रहस्थ ब्राह्मण) कहलाता है। (chanakya neeti) जो ब्राह्मण सांसारिक कर्मों में लीन रहकर पशु पालता हो, व्यापार और खेती करता हो वह वैश्य कहलाता है।
कहने का अर्थ यह है कि निरन्तर लौकिक कार्यों में व्यस्त रहने वाला, पशुओं का पालन व व्यापार तथा कृषि कार्य से अपनी तथा अपने परिवार की आजीविका चलाने वाला ब्राह्मण, ब्राह्मण न रहकर वैश्य (व्यापारी) ही कहलाता है।
घी का, लाख आदि पदार्थ के तेल का, नील का, कुंकुम का, मधु का, मदिरा और मांस का, कपड़ों को रंगने वाले नील का व्यापार करने वाला ब्राह्मण भी ब्राह्मण न कहलवाकर शूद्र ही कहलाता है।
दूसरों के कार्यों को बिगाड़ने वाला, ढोंगी, अपने ही कार्य साधने में तत्पर, छली, द्वेषी, ऊपर से नर्म और अन्दर से क्रूर ब्राह्मण को ‘विलार’ (बिलाऊ) कहते हैं।
यानी (chanakya neeti) दूसरों के कार्य बिगाड़ना, असत्य भाषण करना, अपनी स्वार्थ सिद्धि करना, अकारण ही दूसरों से शत्रुता करना, कायरता अर्थात् सिद्धान्तों का दृढ़ता से पालन न करना और हृदयहीन ब्राह्मण, ब्राह्मण कहलाने का अधिकारी नहीं होता। उसे ब्राह्मण के स्थान पर बिलार कहना ही उचित है।
जो व्यक्ति ब्राह्मण कुल में जन्म लेकर बावड़ी, कुओं, तालाब, बाग-बगीचे, देवों अथवा देव-मंदिरों के लिए दी गयी भूमि, कोष, रत्न आभूषण आदि को तथा गुरू की सम्पत्ति को हड़प जाने वाला।
दूसरों के छल-कपट, दूसरों की स्त्रियों से व्यभिचार करने वाला, धोखा और मिथ्या भाषण करके अपने जीवन को व्यतीत करता है, वह ब्राह्मण न कहलाकर चाण्डाल, मलेच्छ कहलाता है ।