Typhoid fever: अन्दरूनी बुखार के लक्षण और इसके घरेलू उपचार

Typhoid fever: अन्दरूनी बुखार के लक्षण और इसके घरेलू उपचार

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Typhoid fever: इस रोग का जीवाणु मुंह के रास्ते पेट में चला जाता है और छोटी आंत में गुच्छों के रूप में जम जाता है, जिससे लम्बे समय तक ज्वर का बना रहता है। इसे मियादी बुखार भी कहते हैं। आंतों में विकार के कारण बुखार लगातार रहता है। तिल्ली बढ़ जाती है। छोटी आंत की झिल्ली में सूजन एवं घाव हो जाता है।

आन्त्रिक ज्वर का उपचार

Typhoid fever: रोगी के लिए दूध सर्वोत्तम आहार है। यदि दूध न पच पाये तो फटे दूध का पानी देना चाहिए। रोगी को समय-समय उबालकर ठण्डा किया हुआ जल ग्लूकोज में देना चाहिए।

 – एक दो बार उबला हुआ पका जल रात्रि में पीने से कफ, वात और अजीर्ण नष्ट होते हैं।

– दुर्बल व्यक्तियों को प्रोटीन तथा विटामिन का आहार देना चाहिए। ज्वर उतारने के लिए शीघ्रता न करें।

– रोगी के लिए सन्तरे का सेवन लाभकारी है।

Typhoid fever: जिन ऋतुओं में इनका प्रकोप अधिक होता है, उनमें नियमित रूप से भोजन के पूर्व नींबू का सेवन करने से रोग से बचाव हो जाता है।

– प्यास तथा दाह अधिक होने पर मौसमी का रस पीने को दिन में एक दो बार देना चाहिए।

– तुलसी की हरी पत्तियां ग्यारह, काली मिर्च सात दोनों को 50 ग्राम पानी में रगड़कर सुबह-शाम रोगी को पिलाये।

रोग के अन्त में दुर्बलता की ओर विशेष ध्यान रखना चाहिए। जो पौष्टिक आहार सरलता से पच सके, वही खाने को दें।

रोगमुक्त हो जाने के बाद मूंग की दाल का पानी देना चाहिए। साथ में परवल भी दिया जा सकता है।

यदि मलावरोध हो तो औषधियों का उपयोग करना चाहिए।

रोगी का बिस्तर आरामदायक होना चाहिए।

चतुर्थ सप्ताह में धीरे-धीरे दूध की मात्रा बढ़ानी चाहिए। साबूदाना आदि का सेवन किया जा सकता है।

रोगी को थोड़ा-थोड़ा जल अवश्य पिलाते रहना चाहिए।

 रोगी के कमरे मे पूर्ण शान्ति रहनी चाहिए। अधिक तेज प्रकाश से उसे बचाना चाहिए।

रोगी को पूर्ण विश्राम करना चाहिए।

छेने का पानी पिलाने से भी मल की गांठ साफ हो जाती है।

औषधि के साथ-साथ इस रोग में उचित सेवा-परिचर्या की आवश्यकता है।

रोगी को प्रतिदिन स्पंज करना चाहिए तथा उसके कपड़े बदलते रहते चाहिए और ऐसा उपाय करना चाहिए जिससे शैया-व्रण (Bed Sares) न होने पायें।

 जब तक आंत में शोथ और क्षय रहता है, तब तक रोगी को मल-मूत्र त्याग के लिए उठने नहीं देना चाहिए। लेटे हुए ही मल-मूत्र करना चाहिए।

नियमित रूप से प्रातःकाल गुनगुने पानी में कपड़ा भिगोकर रोगी का सारा शरीर धीरे-धीरे पोंछकर साफ करना चाहिए अथवा मुलायम कपड़े से हल्के से रगड़ते हुए सफाई करनी चाहिए।

 दस्त हो रहे हों तो उन्हें रोकने के लिए चिकित्सा करें ताकि कमजोरी न हो।

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