Hidma Encounter Bastar : हिड़मा के खात्मे के बाद छत्तीसगढ़ में पापाराव–देवा की चुनौती
बस्तर के घने जंगलों में एक युग का अंत हो चुका है। 1.80 करोड़ के इनामी माड़वी हिड़मा का मुठभेड़ में खात्मा (Hidma Encounter Bastar) माओवादी नेटवर्क के लिए सबसे बड़ा झटका है। हिड़मा, जिसे देशभर में माओवादी हिंसा का सबसे ख़ौफ़नाक चेहरा माना जाता था, उसके मारे जाने से बस्तर में ‘लाल आतंक’ के खिलाफ निर्णायक लड़ाई की औपचारिक शुरुआत हो गई है।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं कि मार्च 2026 तक माओवादी हिंसा पूरी तरह समाप्त (Mission 2026 Anti-Naxal) करनी है—और अब सुरक्षा बल इसी लक्ष्य की सीधी दिशा में बढ़ रहे हैं।
इस वर्ष माओवादी संगठन को कई बड़े झटके लगे हैं। बसवा राजू, गुडसा उसेंडी, कोसा और सुधाकर जैसे शीर्ष कमांडर ढेर किए जा चुके हैं। इसके अलावा भूपति, सुजाता, रूपेश समेत 300 से अधिक माओवादी आत्मसमर्पण (Bastar Security Forces Offensive) कर चुके हैं।
उप मुख्यमंत्री विजय शर्मा ने हिड़मा के खात्मे को ऐतिहासिक उपलब्धि बताते हुए कहा कि जब तक एक भी बंदूकधारी जंगल में है, अभियान जारी रहेगा। उन्होंने साफ कहा—अगर माओवादी हथियार नहीं छोड़ेंगे, तो अंजाम हिड़मा जैसा ही होगा।
सुरक्षा एजेंसियों के मुताबिक, अब बस्तर में माओवाद की यह अंतिम लड़ाई कुछ गिने–चुने शीर्ष कमांडरों (Chhattisgarh Maoist Top Leaders) के हाथों में सीमित रह गई है। हिड़मा के बाद कमान अब बारसे देवा के पास है, जबकि पश्चिम बस्तर की गतिविधियों को पापाराव संचालित कर रहा है। ये सभी दंडकारण्य के कोर ज़ोन में सक्रिय हैं, जहाँ चार दशक से गुरिल्ला रणनीति लागू की जा रही है।
सुरक्षा बलों की नई सूची में शीर्ष 10 माओवादी शामिल हैं जिसमें मल्लाजी रेड्डी, रामदेर, बारसे देवा, पापाराव, मुचाकी एर्रा, सुजाता, जी. पावनंदम रेड्डी, रवि, नुने नरसिम्हा रेड्डी और मंगतु। पिछले दो वर्षों में 2,000 से अधिक माओवादी समर्पण कर चुके हैं और 450 से अधिक मारे गए हैं, जिससे सुरक्षा बल अब अंतिम निर्णायक चरण की लड़ाई में प्रवेश कर चुके हैं।
