Judicial Delay : सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी…. जब हाईकोर्ट आधी क्षमता पर काम कर रहे हैं तो उनसे तुरंत निपटारे की उम्मीद गलत

Supreme Court's decision on infiltration
Judicial Delay : सर्वोच्च न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि यदि उच्च न्यायालय केवल आधी क्षमता पर कार्य कर रहे हैं तो उनसे सभी मामलों का शीघ्र निपटारा करने की आशा नहीं की जा सकती है। यह टिप्पणी इलाहाबाद उच्च न्यायालय में 13 वर्ष से लंबित एक अपील के शीघ्र निपटान की मांग करने वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान की गई।
विधि मंत्रालय की वेबसाइट के अनुसार, उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की स्वीकृत संख्या 1,122 है। मगर एक सितंबर तक वे केवल 792 न्यायाधीशों के साथ ही सक्रिय थे, जबकि 330 पद रिक्त हैं।
न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय को एक अपील का शीघ्र निपटारा करने का निर्देश देने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई करने से यह कहते हुए इन्कार कर दिया कि उच्च न्यायालय (Judicial Delay) उसके पर्यवेक्षी नियंत्रण (Supervisory Control) में नहीं आते और अगर वे अपनी आधी क्षमता में कार्य कर रहे हैं तो उनसे सभी मामलों का तुरंत निपटारा करने की अपेक्षा नहीं की जा सकती। याचिकाकर्ता की ओर से उपस्थित वकील ने कहा कि यह मामला 13 वर्ष से भी अधिक समय से उच्च न्यायालय में लंबित है।
न्यायमूर्ति विक्रम नाथ ने कहा, “उच्च न्यायालय इस न्यायालय के पर्यवेक्षी नियंत्रण (Judicial Delay) में नहीं आते।” वकील ने कहा कि याचिकाकर्ता ने मामले के शीघ्र निपटारे के लिए उच्च न्यायालय में पहले ही दो आवेदन दाखिल कर दिए हैं। पीठ ने कहा, “प्रयास जारी रखें…अगर उच्च न्यायालय आधी क्षमता पर कार्य कर रहे हैं तो आप उनसे कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि वे सभी मामलों का निपटारा उतनी ही तेजी से करें जितनी आप चाहते हैं? अनेक मामले पहले से ही लंबित हैं। जाइए और आवेदन प्रस्तुत कीजिए।”
याचिका पर विचार करने से इंकार करते हुए पीठ ने याचिकाकर्ता को लंबित मामले को शीघ्र सूचीबद्ध करने और निपटारे के लिए उच्च न्यायालय में याचिका दाखिल करने की अनुमति प्रदान कर दी। पीठ ने कहा कि ऐसा आवेदन दायर होने पर उस पर तदनुसार विचार किया जाएगा। न्यायमूर्ति विक्रम नाथ ने वकील से कहा कि उन्होंने वकालत के दौरान कई वर्षों तक इलाहाबाद उच्च न्यायालय (Judicial Delay) में प्रैक्टिस की है और वह जानते हैं कि मामलों को सूचीबद्ध कराने के लिए कितनी कठिनाई करनी पड़ती है। उन्होंने कहा, “दो आवेदन तो कुछ भी नहीं हैं। आपको अपना मामला सूचीबद्ध कराने के लिए सैकड़ों आवेदन दायर करने पड़ सकते हैं।”