Acquittal After 40 Years : 40 साल बाद मिला न्याय…100 रुपए रिश्वत मामले में हाईकोर्ट ने कर्मचारी को किया बरी….

Acquittal After 40 Years : 40 साल बाद मिला न्याय…100 रुपए रिश्वत मामले में हाईकोर्ट ने कर्मचारी को किया बरी….

Acquittal After 40 Years

Acquittal After 40 Years

Acquittal After 40 Years : चार दशक पुराने एक भ्रष्टाचार मामले में आखिरकार न्याय हुआ है। वर्ष 1986 में महज 100 रुपए रिश्वत लेने के आरोप में फंसे वित्त विभाग के एक सहायक को हाईकोर्ट ने दोषमुक्त करार दिया। निचली अदालत की ओर से सुनाई गई सजा को कोर्ट ने निरस्त कर दिया है।

मामला उस समय का है जब परिवहन निगम में बिल भुगतान को लेकर विवाद खड़ा हुआ था। रायपुर निवासी रामेश्वर प्रसाद अवधिया, जो एमपीएसआरटीसी में बिल सहायक के पद पर कार्यरत थे, पर आरोप था कि उन्होंने शिकायतकर्ता से लंबित बिल पास करने के बदले 100 रुपए की मांग (Acquittal After 40 Years) की। शिकायत लोकायुक्त तक पहुंची, जिसके बाद ट्रेप टीम गठित हुई। टीम ने शिकायतकर्ता को 50-50 रुपए के केमिकल लगे नोट थमाए और अवधिया को रंगे हाथों पकड़ लिया गया। इसी आधार पर भ्रष्ट्राचार निवारण अधिनियम के तहत कार्रवाई शुरू की गई।

लंबी सुनवाई के बाद दिसंबर 2004 में निचली अदालत ने उन्हें एक वर्ष की कैद और 1000 रुपए अर्थदंड की सजा सुनाई थी। यह फैसला चुनौती दी गई और अंततः हाईकोर्ट की एकल पीठ के समक्ष अपील पर सुनवाई हुई।

हाईकोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष ठोस साक्ष्य पेश करने में असफल रहा। मौखिक, दस्तावेजी और परिस्थितिजन्य प्रमाणों में कहीं भी यह साबित नहीं हो पाया कि आरोपी ने रिश्वत (Acquittal After 40 Years) की मांग की और उसे स्वीकार भी किया। अदालत ने स्पष्ट किया कि यदि साक्ष्य ही आरोप को सिद्ध न कर सकें, तो दोषसिद्धि टिक नहीं सकती।

अपने आदेश में कोर्ट ने यह भी उल्लेख किया कि पुराने अधिनियम के प्रावधानों के अनुरूप कार्यवाही किए बिना नए कानून के तहत कार्रवाई टिकाऊ नहीं मानी जा सकती। अभियोजन पक्ष की ओर से अवैध परितोषण की मांग और स्वीकृति साबित करने में विफलता ने पूरे केस को अस्थिर बना दिया। परिणामस्वरूप अपील स्वीकार कर ली गई और आरोपी को सभी आरोपों से बरी कर दिया गया।

इस फैसले को न्याय व्यवस्था में एक महत्वपूर्ण संदेश के रूप में देखा जा रहा है कि साक्ष्य के अभाव में सिर्फ आरोपों के आधार पर किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।

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