Currency Depreciation : रुपया 36 पैसे टूटकर अपने सबसे निचले स्तर पर पहुंचा…

Currency Depreciation
Currency Depreciation : गुरुवार को भारतीय मुद्रा 36 पैसे टूटकर डालर (dollar) के मुकाबले 88.47 के सर्वकालिक निचले स्तर पर बंद हुई। भारत और अमेरिका के बीच जारी टैरिफ विवाद का घरेलू मुद्रा की कमजोरी पर भारी असर पड़ा। विदेशी मुद्रा कारोबारियों ने कहा कि मुद्रास्फीति के आंकड़े आने से पहले डालर में सुधार हुआ और विदेशी पूंजी की लगातार निकासी ने निवेशकों की धारणा को कमजोर कर दिया। वहीं, पिछले कुछ सत्रों में कच्चे तेल की कीमतों में तेजी आने से भी रुपये पर दबाव बना हुआ है।
विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार (forex market) में रुपया 88.11 प्रति डालर पर खुला और कारोबार के दौरान यह 88.47 के सर्वकालिक निचले स्तर तक गिर गया। कारोबार के अंत में रुपया 88.47 पर बंद हुआ, जो पिछले बंद भाव से 36 पैसे की भारी गिरावट दर्शाता है। बुधवार को रुपया अपने रिकॉर्ड निचले स्तर से थोड़ा संभलकर 88.11 प्रति डालर पर बंद हुआ था। इससे पहले पांच सितंबर को रुपया कारोबार के दौरान 88.38 प्रति डालर तक गिर गया था, जो उस समय का निचला स्तर था।
भारतीय रुपया इन दिनों ऐतिहासिक निचले स्तर (record low) के करीब कारोबार कर रहा है। आयातकों की ओर से डालर की मजबूत मांग, भारत और अमेरिका के बीच बाहरी शुल्क विवाद और अमेरिकी मुद्रास्फीति के आंकड़ों से जुड़ी चिंताओं ने बाजार पर दबाव बढ़ा दिया है। इसके अलावा, फेडरल रिजर्व की संभावित नीतियों को लेकर निवेशकों की धारणा प्रभावित हुई है। फिनरेक्स ट्रेजरी एडवाइजर्स एलएलपी के ट्रेजरी प्रमुख अनिल कुमार भंसाली ने कहा कि आयात के लिए बढ़ती डालर मांग और वैश्विक हालात ने रुपये की कमजोरी को और बढ़ाया है।
डालर सूचकांक (dollar index) में सुधार और एफआईआई की लगातार निकासी के बीच रुपया कमजोर होता जा रहा है। मिराए एसेट शेयरखान के शोध विश्लेषक अनुज चौधरी ने कहा कि हमारा अनुमान है कि रुपया नकारात्मक रुख के साथ कारोबार करेगा। उन्होंने कहा कि आयातकों की डालर मांग और भारत-अमेरिका शुल्क विवाद रुपये पर दबाव बनाए रखेंगे।
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि कच्चे तेल की कीमतें और बढ़ीं, तो रुपये की स्थिति और बिगड़ सकती है। आयात पर अधिक खर्च से चालू खाते का घाटा बढ़ सकता है, जिससे घरेलू मुद्रा पर और दबाव आएगा। इसके अलावा, अमेरिकी आर्थिक आंकड़े और फेड की अगली नीति दर पर बाजार की नजरें टिकी हैं। इन वैश्विक कारकों के बीच निकट भविष्य में रुपये के स्थिर होने की संभावना कम दिखाई देती है।