Brain-dead Pregnant Woman :  माँ की मौत के बाद भी ममता ज़िंदा रही...ब्रेन-डेड महिला को तीन महीने तक वेंटिलेटर पर रखा गया...ताकि बच्चा ले सके जन्म...

Brain-dead Pregnant Woman :  माँ की मौत के बाद भी ममता ज़िंदा रही…ब्रेन-डेड महिला को तीन महीने तक वेंटिलेटर पर रखा गया…ताकि बच्चा ले सके जन्म…

अटलांटा (जॉर्जिया), 21 मई| Brain-dead Pregnant Woman :  एक ओर विज्ञान की सीमाएं, दूसरी ओर ममता की गहराई—जॉर्जिया (अमेरिका) से आई यह घटना दोनों के बीच की रेखा को धुंधला कर देती है। 30 वर्षीय नर्स एड्रियाना स्मिथ, जिसे फरवरी में ब्रेन-डेड घोषित कर दिया गया था, अब भी वेंटिलेटर पर है—मगर सिर्फ इसलिए कि उसका अजन्मा शिशु दुनिया में आ सके।

यह निर्णय किसी चमत्कार से कम नहीं, बल्कि कानूनी, नैतिक और भावनात्मक उथल-पुथल से भरा एक वास्तविक संघर्ष है। एड्रियाना का परिवार चाहकर भी जीवन रक्षक उपकरणों को हटाने का निर्णय नहीं ले (Brain-dead Pregnant Woman)सका, क्योंकि जॉर्जिया के सख्त एंटी-अबॉर्शन कानून इसमें बाधा बने हुए हैं।

मौत के बाद भी साँसें—क्यों?

एड्रियाना स्मिथ को सिरदर्द के बाद अस्पताल में भर्ती कराया गया था। जांच में पाया गया कि उनके मस्तिष्क में रक्त के थक्के हैं, और उन्हें ब्रेन-डेड घोषित कर दिया गया—कानूनी रूप से मृत। लेकिन उनकी कोख में एक जीवन पल रहा था, और डॉक्टरों के अनुसार यदि वेंटिलेटर हटाया गया तो वह भ्रूण भी जीवित नहीं (Brain-dead Pregnant Woman)बचेगा।

परिवार के सामने सवाल:

क्या उस महिला के मृत शरीर को सिर्फ इसलिए जीवित रखा जाए ताकि भ्रूण जन्म ले सके—even when the fetus may not survive or may be severely disabled?

कानून का शिकंजा या नैतिक मजबूरी?

जॉर्जिया राज्य का कानून “हार्टबीट डिटेक्शन” के बाद गर्भपात को प्रतिबंधित करता है। यानी यदि भ्रूण में हृदय गति पाई जाती है, तो गर्भपात नहीं किया जा सकता—even in extreme cases like brain death of the mother.

एड्रियाना की मां एप्रिल न्यूकिर्क बताती हैं:

“मेरी बेटी मर चुकी है, लेकिन उसका शरीर सिर्फ इसलिए जीवित (Brain-dead Pregnant Woman)है क्योंकि कानून हमें उसकी मशीनें बंद नहीं करने देता।”

बहरहाल, डॉक्टरों ने यह भी बताया कि भ्रूण की स्थिति गंभीर है—उसके मस्तिष्क में तरल पदार्थ है, वह अंधा, अपंग या जन्म के तुरंत बाद मृत भी हो सकता है।

मेडिकल दुनिया भी है दोराहे पर

थॉमस जेफरसन यूनिवर्सिटी के डॉ. विन्सेन्ज़ो बर्घेला कहते हैं,

“यह सिर्फ नैतिक या भावनात्मक मामला नहीं, बल्कि एक जटिल चिकित्सकीय चुनौती है।”

जब एक महिला कानूनी रूप से मर चुकी हो और भ्रूण की जीवनशक्ति संदिग्ध हो—तो क्या विज्ञान, कानून और परिवार एकमत हो सकते हैं?

ममता की अंतिम साँस, या ज़िंदगी की ज़िद?

एड्रियाना स्मिथ की कहानी सिर्फ एक महिला की नहीं, बल्कि उन हजारों परिवारों की है जो मेडिकल टेक्नोलॉजी, कानून और भावना के बीच फंसे होते हैं। यहाँ ममता, मशीन और संविधान एक त्रिकोणीय युद्ध में उलझे हैं।

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