संपादकीय: संघर्ष विराम का लेकर सियासत कत्तई उचित नहीं

संपादकीय: संघर्ष विराम का लेकर सियासत कत्तई उचित नहीं

Politics on ceasefire is not appropriate at all

Politics on ceasefire is not appropriate at all

Politics on ceasefire is not appropriate at all: भारत और पाकिस्तान के बीच हुए आतंकी संघर्ष विराम को लेकर विपक्षी पार्टियों ने सियासत शुरू कर दी है जो कतई उचित नहीं है। यह एक नीतिगत फैसला है और इस पर सवाल उठाकर विपक्ष व्यर्थ का बवाल खड़ा कर रहा है। एक ओर तो विपक्षी पार्टियों ने आतंकवाद और पाकिस्तान के खिलाफ की गई कार्यवाही में सेना और सरकार के साथ खड़ा रहने का दम भरा था। वहीं दूसरी ओर विपक्षी पार्टियों के कुछ नेता भारत द्वारा की गई सैन्य कार्यवाही पर और उसके बाद संघर्ष विराम पर प्रश्न चिन्ह लगा रहे हैं।

आम आदमी पार्टी के नेता मनीष सिसोदिया ने संघर्ष विराम पर आपत्तिजनक टिप्पणी करते हुए सरकार पर आरोप लगाया है कि उसने संघर्ष विराम कर भारतीय सेना के हाथ बांध दिये हैं। आम आदमी पार्टी के ही राज्यसभा सदस्य संजय सिंह ने भी इस पर आपत्तिजनक टिप्पणी की है। नई दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री आतिशी ने भी संघर्ष विराम पर सवालिया निशान लगाया है।

ये वही आम आदमी पार्टी है जिसने अपने कार्यकाल के दौरान नई दिल्ली में बांग्लादेशी घुसपैठियों और रोहिंग्याओं को न सिर्फ बसाया था बल्कि उन्हें तमाम तरह की सहुलियतें भी मुहैया कराई थी। इन घुसपैठियों के कारण देश की राजधानी नई दिल्ली में आंतरिक सुरक्षा खतरे में पड़ गई थी। आम आदमी पार्टी की इन काली करतूतों के कारण ही नई दिल्ली की जनता ने इन्हें सत्ता से लात मारकर बाहर कर दिया था और अब ये संघर्ष विराम पर ज्ञान दे रहे हैं

ऐसे विपक्षी नेताओं को यह नहीं भूलना चाहिए कि भारत और पाकिस्तान के बीच भले ही फिलहाल संघर्ष विराम हो गया है लेकिन दोनों देशों के बीच अभी भी तनाव बना हुआ है और कभी भी फिर से जंग की नौबत आ सकती है। ऐसी स्थिति में भारत की सुरक्षा जैसे संवेदनशील मुद्दे पर इन विपक्षी नेताओं को आपत्तिजनक बयान बाजी देने से बचना और इस मामले में सियासत करने से बाज आना चाहिए।
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