अगले साल तक कैसे खत्म हो पाएगा लाल आतंक ?

अगले साल तक कैसे खत्म हो पाएगा लाल आतंक ?

How will the red terror end by next year?

How will the red terror end by next year?

उमेश चतुर्वेदी
How will the red terror end by next year?: इसे संयोग कहें या कुछ और, बीते 21 मार्च को जब छत्तीसगढ़ के बीजापुर और कांकेर में सुरक्षा बलों के हाथो तीस नक्सली मारे गए, उसी वक्त केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह संसद में नक्सलवाद के सफाए का ऐलान कर रहे थे। अमित शाह का कहना था कि अगले 375 दिनों में नक्सलवाद का सफाया हो जाएगा। अगर तारीखों के हिसाब से कहें तो केंद्र सरकार ने 31 मार्च 2026 तक कभी लाल आतंक के नाम से कुख्यात रहे नक्सलवाद के सफाए का लक्ष्य रखा है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या सचमुच नक्सलवाद आखिरी सांसे ले रहा है और जल्द ही आतंक का पर्याय रही ये विचारधारा अतीत बन जाएगी।

साल 2025 के अभी तीन महीने ही गुजरे हैं,लेकिन इस बीच नक्सलवाद को लेकर जो आंकड़े सामने हैं, उनसे तो लगता यही है कि नक्सलवाद अब गिने-चुने दिनों की ही बात है। केंद्रीय गृहमंत्रालय के आंकड़ों पर भरोसा करें तो बीते तीन महीनों में ही सुरक्षा बलों की कार्रवाई में 119 नक्सली मारे जा चुके हैं।
नक्सलियों के खिलाफ सुरक्षा बलों को यह कामयाबी सिर्फ10 मुठभेड़ों में ही मिली हैं। बीते साल यानी 2024 में मुठभेड़ों में 239 नक्सली मारे गए थे। यानी सिर्फ सवा साल की अवधि में ही 358 नक्सली मारे जा चुके हैं। इतने नक्सलियों का मारे जाने और भारी संख्या में नक्सलियों के आत्म समर्पण करने का संकेत साफ है कि अब नक्सलियों की कमर टूटती जा रही है। शायद यही वजह है कि अमित शाह संसद में पूरे आत्मविश्वास के साथ ऐलान कर रहे हैं कि नक्सलवाद देश में आखिरी सांसे गिन रहा है।

साल 2010 के आंकड़ों के हिसाब से देश के तकरीबन छठवें हिस्से में नक्सलवाद का प्रभाव था। झारखंड, बिहार, छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश तक नक्सलवाद फैला हुआ था। गृहमंत्रालय के आंकड़ों के हिसाब से तब देश के 96 जिलों में आतंकवाद का खूनी पंजा फैला हुआ था।
यूं तो हर सरकार नक्सलियों के खिलाफ अभियान चलाती रही है,लेकिन इसमें तेजी केंद्र में मोदी सरकार के आने के बाद आई।नक्सलवाद को ज्यादातर सरकारें कानून और व्यवस्था का मामला मानती रहीं, उसके जिम्मेदार सामाजिक कार्यों को किनारे रखा जाता रहा। मोदी सरकार ने इसे कानून और व्यवस्था का मामला तो माना, लेकिन उसके साथ ही इसे सामाजिक नजरिए से भी देखना शुरू किया।

नक्सलवाद को लेकर कहा जाता रहा है कि जहां विकास नहीं पहुंचा, जहां शोषण की अर्थव्यवस्था रही, वहीं नक्सलवाद को पनपने का ज्यादा मौका मिला। शायद इसी वजह से नक्सल प्रभावित इलाकों में विकास के पहिए को तेजी से दौड़ाने की तैयारी हुई।
सड़कों और रेल लाइन की पहुंच नक्सल प्रभावित इलाकों में बढ़ाने की शुरूआत हुई। बीते आठ वर्षों में 10718 करोड़ की लागत से नक्सल प्रभावित इलाकों में करीब 9356 किमी सड़कों का निर्माण किया गया। इन इलाकों में तैनात केंद्रीय बलों तैनातकेंद्रीयबलोंद्वारा स्थानीयआबादीकेलिए जहांस्वास्थ्यशिविर लगाए जाने शुरू हुए, वहीं उन्हें मुफ्त में जरूरी दवाएं दी जाने लगीं। इसी तरह उन इलाकों में पेयजल सुविधा बढ़ाने, सोलरलाइट की सुविधा देने के साथ ही खेती के उपकरण और बेहतर बीच आदि देने की कोशिश तेज हुई।

गृहमंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, साल2014 सेअबतकइन मदों में नक्सल प्रभावित इलाकों में करीब 140 करोड़रुपयेकेकाम किए जा चुके हैं। डाक विभाग ने 90 नक्सलप्रभावत प्रभावित जिलों में, तकरीबन हर तीन किलोमीटर पर सिर्फ आठ वर्षों में ही 4903 नए डाकघर खोले
हैं। इसी तरह अप्रैल-2015 से लेकर अब तक 30सर्वाधिकनक्सल प्रभावित जिलों में 1258 नई बैंक शाखाएं और 1348 एटीएम लगाए गए हैं।
नक्सल प्रभावित इलाकों में संचार की सुविधा बढ़ाने के लिए पहले चरण में 4080 करोड़ रूपये की लागत से 2343 मोबाइल टावर लगाए गए तो दूसरे चरण में 2210 करोड़ से 2542 मोबाइल टावर लगाए जा रहे हैं। इन इलाकों में 245 एकलव्य आदर्श आवासीय विद्यालय बनाने की तैयारी है,जिनमें 121 काम शुरू कर चुके हैं।
इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि नक्सल उग्रवाद ऐसे क्षेत्रो में तेजी से पनपा, जहां गरीबी ने जड़ें जमा रखी थी। नक्सली विचार प्रभवित समूहों ने इन इलाकों के लोगों के असंतोष को खाद पानी के रूप में इस्तेमाल किया और इस तरह उग्रवाद को बढ़ावा मिला।

इन समूहों को स्थानीय समर्थन मिलने के कारण सुरक्षा संस्थाओ को अपना काम करने में कई समस्याओं का सामना करना पड़ता था, परन्तु 2014 के बाद हालात बदले।
दूसरी तरफ उग्रवादी समूहों को हो रही फंडिंग पर रोक लगाने के लिए चौकसी बढ़ाई गई। इसके तहत नक्सल प्रभावित राज्यों ने जहां 22 करोड़कीसंपत्ति जब्त की,वहीं प्रवर्तन निदेशालय ने तीन और एनआईए ने पांच करोड़ की संपत्ति जब्त की। नक्सली हिंसा की जांच के लिए एनआईए में अलगसे एक सेक्शन बनाया गया। जिसे अब तक55 मामलों की जांच सौंपी जा चुकी है। इसी तरह विशेष कार्रवाई के लिए विशेषज्ञ सुरक्षाबलों पर जोर दिया गया और सूचनाओं को साझा करने का नेटवर्क विकसित किया गया।

नक्सलरोधी ऑपरेशन के लिए केंद्रीयऔर राज्योंविशेषऑपरेशनटीमें बनाई गईं।
सुरक्षा बलों और नक्सलियों पर निगाह के लिए तकनीक को बढ़ावा भी दिया गया। इसके तहत लोकेशन मोबाइल फोन और दूसरी तकनीक सुरक्षा बलों को मुहैया कराई गईं। द्रोण कैमरों से नक्सलियों पर निगाहबानी शुरू हुई और कैजुअल्टी या विशेष ऑपरेशन के लिए हेलीकॉप्टर सेवा शुरू की गई।
शायद यही वजह रही कि संसद में नक्सल ऑपरेशन को लेकर गृहमंत्री अमित शाह बेहद आत्मविश्वास में नजर आ रहे थे। उन्होंने कहा, नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में प्रमुख जगहों पर सीआरपीएफ और इसकी विशेष इकाई ‘कोबराÓ ही माओवादियों से लोहा ले रही है।

इन बलों ने ऐसी रणनीति बनाई है, जिसमें नक्सलियों के पास दो ही विकल्प, ‘सरेंडरÓ करो या ‘गोलीÓ खाओ, बचे हैं। अब ऐसा कोई इलाका नहीं बचा है, जहां सुरक्षा बलों की पहुंच न हो। वे महज 48 घंटे में ‘फॉरवर्ड ऑपरेटिंग बेसÓ स्थापित कर आगे बढ़ रहे हैं। अब नक्सलियों के लिए जंगलों में अधिक दूरी तक पीछे भागना भी संभव नहीं हो रहा। उनकी सप्लाई चेन कट चुकी है। नक्सलियों की नई भर्ती तो पूरी तरह बंद हो चुकी है। इतना ही नहीं, घने जंगलों में स्थित नक्सलियों के ट्रेनिंग सेंटर भी तबाह किए जा रहे हैं।

नक्सल प्रभावित इलाकों में अमन-चैन हो और बिना खून बहाए ही लोग अपनी शिकायत लोकतांत्रिक ढंग से रख सकें। इसका विरोध शायद ही कोई करेगा। नक्सलवाद का आतंक खत्म हो, इसका स्वागत ही होना चाहिए। लेकिन व्यवस्था को यह भी देखना होगा कि भविष्य में ऐसे हालात फिर ना बनें, जिससे फिर से नक्सलवाद को बढऩे को मौका मिले। क्योंकि विचार केंद्रित एक्शन भले ही रूक जाए, विचार कभी नहीं मरते।

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