न्यू इंडिया कोऑपरेटिव बैंक मामला: 122 करोड़ रुपये के घोटाले के बाद जमाकर्ताओं की RBI से अपील..

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-जमाकर्ताओं ने भारतीय रिजर्व बैंक से इस मामले में मदद की गुहार लगाई
मुंबई। new india bank case: फरवरी में मुंबई के न्यू इंडिया कोऑपरेटिव बैंक में 122 करोड़ रुपये का घोटाला सामने आया था। बैंक जमाकर्ता अभी भी इस सदमे से उबर नहीं पाए हैं। एक साधारण क्लर्क से जनरल मैनेजर के पद तक पहुंचे हितेश मेहता ने बैंक को 122 करोड़ रुपये का चूना लगाया है। आर्थिक अपराध शाखा ने इस मामले में मुख्य आरोपी हितेश मेहता को गिरफ्तार कर लिया है। हालाँकि, तब से जमाकर्ताओं की चिंताएँ कम नहीं हुई हैं। उन्होंने भारतीय रिजर्व बैंक से मांग की है।
जमाकर्ताओं का आरबीआई से अनुरोध
घोटाला उजागर होने के बाद आरबीआई (new india bank case) ने बैंक पर वित्तीय लेनदेन करने पर प्रतिबंध लगा दिया है। परिणामस्वरूप लाखों जमाकर्ताओं का पैसा बैंक में फंस गया है। इस संदर्भ में जमाकर्ताओं के संघ ने आरबीआई से पहल करने और बैंक को राहत देने का अनुरोध किया है।
आरबीआई ने बैंक पर प्रतिबंध लगाए
रिजर्व बैंक ने बैंक पर कई प्रतिबंध लगाये थे। इसमें जमाकर्ताओं का पैसा वापस करना, बैंक में हुए घटनाक्रमों से उत्पन्न पर्यवेक्षी चिंताओं का हवाला देना तथा जमाकर्ताओं के हितों की रक्षा करना शामिल था। इसके अलावा, सहकारी बैंक के निदेशक मंडल को भंग कर दिया गया है और प्रशासन संभालने के लिए एक प्रशासक नियुक्त किया गया है।
2020 से 2025 तक घोटाला
शिकायत में कहा गया है कि यह धोखाधड़ी 2020 से 2025 के बीच हुई। एक बैंक अधिकारी ने आर्थिक अपराध शाखा को सूचित किया कि बैंक के खाता बही और नकदी में अनियमितताएं पाई गई हैं। जांच में दादर और गोरेगांव शाखाओं से धन की अनियमित निकासी का पता चला है और कहा जा रहा है कि इसके पीछे हितेश मेहता का हाथ है।
घोटाला कैसे हुआ?
आरोपी पूर्व महाप्रबंधक हितेश मेहता दो शाखाओं का प्रमुख था। इसलिए, बैंक की तिजोरी उसके कब्जे में थी। जांच में पता चला है कि उसने बैंक से पैसे निकालकर बाहर रिश्तेदारों और व्यापारियों को भेजे थे। वह नियमित रूप से रजिस्टर पर यह बात दर्ज कर रहा था ताकि किसी को कुछ भी संदेह न हो। अगर आरबीआई ने नकदी नोटों की गिनती नहीं की होती तो यह घोटाला कभी सामने नहीं आता।