संपादकीय: आधी अबादी को पूरा हक आखिर कब?

When will half the population get full rights?
When will half the population get full rights?: हर साल की तरह इस बार भी देश व दुनिया में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस समारोह पूर्वक मनाया गया। महिला दिवस के दिन महिलाओं की उपलब्धियों और उनके संघर्षों के साथ ही समाज में उनके योगदान के लिए उन्हें सम्मानित भी किया गया। संयुक्त राष्ट्र ने 1975 में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस को मान्यता दी थी। उसी समय से हर साल आठ मार्च का अंतर्राष्ट्रीय महिला मनाया जा रहा है। जिसका उद्देश्य महिलाओं को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करना और उन्हें सम्मान देना है।
जहां तक भारत का प्रश्न है तो हमारे यहां सदियों से नारी को देवी का रूप कहा जाता है। नारी शक्ति की पूजा की जाती है। क्योंकि महिलाओं के बिना समाज की कल्पना ही नहीं की जा सकती। महिलाएं न सिर्फ घर और परिवार की धूरी होती हैं बल्कि वे पूरी दुनिया को बदलने का सामथ्र्य भी रखती हैं। इसके बावजूद हमारे देश में आधी आबादी आज भी अपने पूरे हक से वंचित हंै। जबकि महिलाओं ने पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर देश के नवनिर्माण में अग्रणी भूमिका का निर्वाहन किया है। इसके बाद भी महिलाओं के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार किया जा रहा है।
पुरूष प्रधान इस समाज में महिलाओं को हर कदम पर अपनी योग्यता साबित करने के लिए अग्नि परीक्षा से गुजरना पड़ रहा है। राजनीतिक क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने की जरूरत लंबे समय से महसूस की जा रही थी लेकिन आजादी के सात दशकों बाद महिलाओं को संसद और विधानसभाओं में 33 प्रतिशत आरक्षण मिलने का मार्ग प्रशस्त हो पाया है।
महिला आरक्षण विधेयक दशकों तक संसद में अटका रहा जबकि प्रधानमंत्री से लेकर राष्ट्रपति पद तक महिलाएं निर्वाचिर्त हुई थी। कई राजनीतिक पार्टियों की तो अध्यक्ष पद को भी महिलाओं ने सुशोभित किया था। फिर भी महिलाओं को आरक्षण के लिए इतनी लंबी प्रतिक्षा करनी पड़ी। बहरहाल अब महिलाओं को संसद और विधानसभाओं में 33 प्रतिशत आरक्षण का लाभ मिलने जा रहा है। इससे महिलाओं में उम्मीद की नई किरण जागी है।
जब महिलाओं को प्रदेश व देश के लिए कानून बनाने का अधिकार मिलेगा तो निश्चित रूप से महिलाओं के हक में भी कानून बनेंगे और महिलाओं के विकास का द्वार भी खुलेगा। कहते हैं न कि सस्कत महिला वह है जो खुद के फैसले लेने में सक्षम हो। महिलाओं की जब राजनीति में भागीदारी बढ़ेगी तो महिला सशक्तिकरण अभियान को निश्चित रूप से गति मिलेगी। खासतौर पर ऐसी महिलाएं जो हर लिहाज से योग्य होने के बावजूद उपयुक्त अवसर न मिल पाने की वजह से आगे नहीं बढ़ पाती। ऐसी महिलाओं को उनकी योग्यता के अनुरूप कभी अवसर मिल पायेगा जब कानून बनाने की प्रक्रिया में महिलाओं की भागीदारी बढ़ेगी।
वर्तमान में नगरी निकायों और त्रिस्तरीय पंचायती राज्य व्यवस्था में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण मिल रहा है और महिलाएं पंच, सरपंच, पार्षद, और महापौर तथा जिला पंचायत की पदाधिकारी के रूप में अपनी योग्यता साबित कर रही हैं। ऐसी महिलाओं को जब विधानसभाओं और लोकसभा में भी 33 प्रतिशत आरक्षण मिल जाएगा तो वे वहां भी अपनी उपयोगिता सिद्ध करके दिखाएंगी। आज जरूरत इस बात की है कि महिलाओं को हर क्षेत्र में प्रोत्साहित किया जाये।
महिलाओं को सिर्फ वोट बैंक न समझा जाये महिला सशक्तिकरण के नाम पर महिलाओं को हर महीने एक हजार रूपये से लेकर ढाई रूपये तक सम्मान निधि देने से महिलाएं सही मायनों में सशसक्त नहीं होगी। कायदे से उन्हें हर क्षेत्र में प्राथमिकता दी जाये और उन्हें आर्थिक रूप ये स्वालंबी बनाया जाये तो उन्हें इस तरह के सरकारी खैरात की जरूरत भी नहीं पडेगी। तभी संभव होगा जब महिलाओं की राजनीति में हिस्सेदारी बढेगी हमारे देश में महिलाओं की सुरक्षा का सवाल भी मुंह बाएं खड़ा हुआ है। आज स्थिति यह है कि महिलाएं घर और बाहर कहीं भी सुरक्षित नहीं हैं।
भारत में हर घंटे 49 महिलाएं किसी न किसी रूप में उत्पीडऩ का शिकार बनती रहती है। महिलाओं के प्रति अपराध के मामले भी साल दर साल बढ़ते ही जा रहे हैं। यह बेहद भयावह स्थिति है और गंभीर चिंता का विषय भी है। ऐसा नहीं है कि महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराधों पर रोक लगाने के लिए कानून नहीं बनाए गये हैं।
इस बारे में जो कानून है उनका पालन इमानदारी से नहीं हो पा रहा है। नतीजतन अन्याय, अत्याचार और उत्पीडऩ का शिकार महिलाओं को न्याय पाने के लिए लंबा संघर्ष करना पड़ता है। इसके बाद भी उनके साथ न्यान होगा या नहीं इस बारे में कोई दावा नहीं किया जा सकता। नतीजतन उत्पीडऩ का शिकार महिलाएं इसे अपनी नियती मानकर इसके खिलाफ आवाज उठाने से भी कतराती है। यह स्थिति बदलनी होगी।
जब तक महिलाओं के मन से असुरक्षा की भावना दूर नहीं होगी उनका डर खत्म नहीं होगा और वे आगे बढऩे से हिचकिचाती रहेंगी। महिलाओं को उनका अधिकार मिले और समाज में पुरूषो के साथ कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढ़े इसके लिए यह आवश्यक है कि उन्हें इसके अनुकुल वातावरण मिले। जब तक ऐसा माहौल नहीं बनेगा तब तक महिला सशक्तिकरण का सपना साकार नहीं हो पाएगा। आधी आबादी को जिस दिन पूरा हक मिल जाएगा तभी अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाना सार्थक हो पाएगा। अन्यथा हर साल 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर इस तरह की रस्म अदाएगी ही होती रहेगी।