संपादकीय: अंतत: हंगामों की भेंट चढ़ा सत्र
The session ultimately ended in chaos: जैसी की संभावना थी संसद का शीतकालीन सत्र अंतत: हंगामों की भेंट चढ़कर रह गया। पच्चीस दिवसीय इस सत्र में बीस बैठकें हुई और लोकसभा व राज्यसभा की कार्यवाही 120 घंटे चली। लोकसभा में पांच और राज्यसभा में चार विधेयक ही पेश हो पाये। जबकि संसद के शीतकालीन सत्र में पंद्रह विधेयक पेश किये जाने थे।
किन्तु माननीयों के हंगामें के कारण बार बार संसद की कार्यवाही बार बार बाधित होती रही जिसकी वजह से संसदीय काार्य प्रभावित हुआ। संसद में सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच अडानी, सोरोस और सोनिया गांधी के अलावा डॉ.बी.आर आम्बेडकर पर दिये गये केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह के बयान को लेकर ही हंगामा होता रहा।
नतीजतन लोकसभा और राज्यसभा की उत्पादकता क्रमश: 57 प्रतिशत 40 प्रतिशत ही रही। जनहित से जुड़े मुद्दे हासिए पर चले गये। इस सत्र के दौरान लोकसभा में एक देश एक चुनाव विधेयक पेश किया गया। जिसे संसद की संयुक्त समीति के पास भेज दिया गया। इस विधेयक को लेकर भी संसद में जमकर हंगामा हुआ।
भारतीय संविधान के 75 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में विपक्ष की मांग पर सरकार ने भारतीय संविधान पर विशेष चर्चा कराई जिसमें विपक्ष के आरोंपो का प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लोकसभा में सिलसिले वार जवाब दिया और संविधान की दुहाई देने वाली कांग्रेस पार्टी की बखिया उधेड़कर रख दी।
वहीं राज्यसभा में केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने विपक्ष के आरोपों का जवाब दिया और अपने वक्तव्य के दौरान उन्होंने संविधान निर्माता डॉ.बी.आर आम्बेडकर का उल्लेख किया जिसके एक हिस्से को लेकर विपक्ष ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया और गृह मंत्री अमित शाह पर डॉ.आम्बेडकर का अपमान करने का आरोप लगाते हुए उन्हें मंत्री पद से हटाने की मांग कर आंदोलन छ़ेड दिया।
संसद परिसर में दो दिनों तक इस मुद्दे को लेकर हंगामा होता रहा। सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों के ही सांसद संसद के ही बाहर नारेबाजी करने लगे और संसद सत्र के आखरी दिन तो सत्ता पक्ष और विपक्ष के सांसदों के बीच धक्का मुक्की की नौबत आ गई। जिसकी वजह से भाजपा के दो सांसद घायल हो गये और इस घटना के लिये लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज करा दी गई। भारतीय संसद के इतिहास संभवत: यह पहला मौका रहा।
जब सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच इस कदर कटुता देखने को मिली हो। बहरहाल संसद का शीतकालीन सत्र जो हंगामों से ही शुरू हुआ था वह भारी हंगामें के साथ खत्म हो गया। दरअसल पिछले कुछ सत्रों से यह देखा जा रहा है कि विपक्ष हंगामा खड़ा करके सदन की कार्यवाही को बाधित करने का प्रयास करती रही है।
इस बार भी ऐसा ही हुआ और संसद के शीतकालीन सत्र में भी सुचारू रूप से कामकाज नहीं हो पाया न तो प्रश्रकाल चल पाया न ही शून्यकाल में सांसद अपने क्षेत्रों की समस्याओं को उठा पाये। इन माननीय सांसदो को इस बात की कतई कोई परवाह नहीं है कि ससंद में एक घंटे की कार्यवाही पर लगभग डेढ़ करोड़ रूपये का खर्च आता है लेकिन हंगामों के कारण जनता के गाढ़े खून पसीने की कमाई व्यर्थ जाती है।
माननीयों को इस पर विचार करना चाहिए और संसद का काम सुचारू रूप से चलाने में सहयोग देना चाहिए। ताकि भविष्य में संसद के सत्र हंगामों की भेंट न चढ़े और वहां जनहित से जुड़े मुद्दो पर सार्थक चर्चा हो तथा नये कानून बन सके।