धर्म का अपर्याप्त ज्ञान अधर्म को जन्म देता है, लेकिन…"; धार्मिक नेताओं को मोहन भागवत की सलाह

धर्म का अपर्याप्त ज्ञान अधर्म को जन्म देता है, लेकिन…”; धार्मिक नेताओं को मोहन भागवत की सलाह

Inadequate knowledge of Dharma gives birth to Adharma, but…"; Mohan Bhagwat's advice to religious leaders

rss chief mohan bhagwat

-भागवत के बयान से बिल्कुल भी सहमत नहीं : जगद्गुरू रामभद्राचार्य

-सत्ता चाहिए थी तो वे मंदिरों की बात करते थे: स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद

नागपुर। rss chief mohan bhagwat: आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि धर्म को ठीक से समझना होगा। यदि धर्म को ठीक से नहीं समझा जाता है, तो धर्म का अपर्याप्त ज्ञान अधर्म की ओर ले जाता है, जबकि धर्म का अनुचित और अधूरा ज्ञान अधर्म की ओर ले जाता है। दुनिया भर में धर्म के नाम पर जो भी अत्याचार हो रहे हैं वे धर्म के बारे में गलतफहमियों के कारण हैं। इसलिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा है कि संप्रदायों को धर्म की सही व्याख्या करनी चाहिए।

एक कार्यक्रम में बोलते हुए मोहन भागवत (rss chief mohan bhagwat) ने कहा कि धर्म सृष्टि के आरंभ से ही अस्तित्व में है, इसीलिए इसे सनातन कहा जाता है। जो धर्म में आस्था रखता है उसका कल्याण होता है। चूँकि धर्म सत्य का स्वरूप है इसलिए इसकी रक्षा अवश्य की जानी चाहिए। धर्म का आचरण करने वाले ही उसके रक्षक हैं। धर्म के आचरण को समझना चाहिए और समझने के बाद उसे मन में नहीं रखना चाहिए बल्कि आचरण में लाकर उसे धर्म का अपेक्षित आचरण बनाना चाहिए। मोहन भागवत ने कहा कि हालांकि धर्म को समझना कठिन है, लेकिन इसे समझा जा सकता है।

प्रबुद्ध पंथ एवं सम्प्रदाय ही देश की शान हैं

गलत समझ के कारण अतीत में धर्म के नाम पर अत्याचार किये गये। ज्ञानवर्धक पंथ एवं सम्प्रदाय हमारे देश की शान हैं। संप्रदाय कोई भी हो, यह एक-दूसरे से जुडऩा सिखाता है। एकता शाश्वत है। सारा ब्रह्माण्ड एक है। अहिंसा ही धर्म की रक्षा है। संघ धर्म की रक्षा के लिए कार्य कर रहा है। मोहन भागवत ने कहा है कि जब सत्य संकल्प काम करते हैं तो वे पूरे होते हैं।

इस बीच धर्म की उचित समझ समाज में शांति, सद्भाव और समृद्धि ला सकती है। धर्म का असली उद्देश्य मानवता (rss chief mohan bhagwat) की सेवा और मार्गदर्शन करना है। किसी भी प्रकार की हिंसा या दुव्र्यवहार को बढ़ावा नहीं देना। मोहन भागवत ने कहा कि धर्म के मूल सिद्धांतों पर जोर देते हुए उन्होंने कहा कि धर्म के सटीक ज्ञान और पालन से समाज का उत्थान होता है और सभी का कल्याण होता है।

भागवत के बयान से बिल्कुल भी सहमत नहीं : जगद्गुरू रामभद्राचार्य

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत का हिंदू समाज को लेकर दिया गया बयान इस समय चर्चा में है। इस पर अब देश के दो बड़े संतों ने प्रतिक्रिया दी है। इस संबंध में बोलते हुए, तुलसी पीठाधीश्वर जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने कहा, “हम मोहन भागवत के बयान से बिल्कुल भी सहमत नहीं हैं। मैं यहां स्पष्ट करना चाहता हूं कि मोहन भागवत हमारे ‘अनुशासकÓ नहीं हैं, बल्कि हम उनके ‘अनुशासक हैं।

सत्ता चाहिए थी तो वे मंदिरों की बात करते थे: स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद

साथ ही उत्तराखंड के ज्योतिर्मठ पीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने भी भागवत के बयान पर प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने मोहन भागवत पर राजनीतिक रूप से सुविधाजनक रुख अपनाने का आरोप लगाया। अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने कहा जब उन्हें सत्ता चाहिए थी तो वे मंदिरों की बात करते थे। अब उनके पास सत्ता है तो वे मंदिरों की तलाश न करने की सलाह दे रहे हैं।

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