संपादकीय: प्रलोभन परोसने की होड़

संपादकीय: प्रलोभन परोसने की होड़

Competition to serve temptation

Competition to serve temptation

Competition to serve temptation: नई दिल्ली विधानसभा चुनाव की अभी तक तिथि तय नहीं हुई है लेकिन आम आदमी पार्टी, कांगे्रस और भाजपा ने चुनावी तैयारी शुरू कर दी है। इस मामले में पिछले एक दशक से सत्ता पर काबिज आम आदमी पार्टी सबसे आगे है। उसने उम्मीदवारों की दूसरी सूची भी जारी कर दी है।

नई दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल अपनी टीम के साथ गली-गली घूम घूमकर सघन जनसंपर्क कर रहे है। इसके साथ ही मतदाताओं को प्रलोभन भी परोस रहे है। गौरतलब है कि फ्री रेवड़ी कल्चर की शुरूआत आम आदमी पार्टी ने ही की थी।

मुफ्त बिजली, पानी सहित अन्य लोकलुभावन घोषणाएं करके उन्होंने नई दिल्ली विधानसभा के लगातार प्रचंड बहुमत से चुनाव जीते थे। मुफ्तखोरी को बढ़ावा देने वाली घोषणाएं करके भी आम आदमी पार्टी ने पंजाब में भी दो तिहाई बहुमत प्राप्त कर अपनी सरकार बनाने में सफलता हासिल की थी। जिसके बाद से ही राजनीतिक पार्टियों में मतदाताओं को प्रलोभन परोसने की होड़ लग गई है।

इस फ्री रेवड़ी कल्चर को अपनाकर ही कांग्रेस में पहले कर्नाटक में और फिर हिमाचल प्रदेश में अपनी सरकार बनाई। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के दौरान भी महायुति गठबंधन ने फ्री रेवड़ी कल्चर को अपनाया और वहां वह भारी बहुमत से चुनाव जितने में सफल हुई है।

कमोवेश हर चुनाव में हर राजनीतिक पार्टी फ्री रेवड़ी कल्चर को किसी न किसी रूप में अपनाती ही है। अब नई दिल्ली में अरविंद केजरीवाल ने ऑटो चालकों को अपने पक्ष में करने के लिए पांच महत्वपूर्ण घोषणाएं कर दी है। इसके साथ ही उन्होंने अपनी सरकार बनने पर सभी महिलाओं को इक्कीस सौ रूपये महीना देने की भी घोषणा कर दी है।

गौरतलब है कि छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र जैसे भाजपा शासित राज्यों में भी महिलाओं को हर महीने एक हजार से डेढ़ हजार रूपये तक महीना दिया जा रहा है। लेकिन अब अरविंद केजरीवाल ने यह राशि लगभग दोगुनी करने का ऐलान कर दिया है। जाहिर है उनकी देखा देखी भाजपा और कांग्रेस भी महिला मतदाताओं को अपने पक्ष में करने के लिए इससे भी बड़ा प्रलोभन परोसने पर बाध्य हो जाएंगी।

समझ में नहीं आता कि मुफ्तखोरी को बढ़ावा देने वाली ऐसी घोषणाओं पर रोक क्यूं नहीं लगाई जा रही है। यह सीधे सीधे नोट देकर वोट हथियाने का मामला बनता है। किन्तु चुनाव आयोग फ्री रेवड़ी कल्चर पर अंकुश लगाने में असफल रहा है। जबकि खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने फ्री रवेड़ी कल्चर को अर्थव्यवस्था के लिए घातक बताया है।

सुप्रीम कोर्ट ने भी मुफ्तखोरी को बढ़ावा देने वाली घोषणाओं पर गहन चिंता व्यक्त करते हुए ऐसी घोषणाओं पर रोक लगाने की जरूरत पर बल दिया है। इसके बावजूद इस पर प्रभावी अंकुश लगाने की दिशा में अब तक कोई कारगर पहल नहीं हो पाई है। जबकि मुफ्तखोरी वाली घोषणाओं के कारण कर्नाटक, पंजाब और हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों की अर्थव्यवस्था पटरी से उतर चुकी है। और वे गले तक कर्ज में डूबते जा रहे है।

इन राज्यों से सबक लेने की जगह जिन राज्यों में भी विधानसभा चुनाव होते है वहां राजनीतिक पार्टियों के बीच मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए प्रलोभन परोसने की होड़ लग जाती है जो चिंता का विषय है।

चुनाव आयोग और केन्द्र सरकार इस मामले में कुछ भी नहीं कर रहा है। ऐसी स्थिति में सुप्रीम कोर्ट को ही दखल देना चाहिए और फ्री रेवड़ी कल्चर पर रोक लगाने के लिए कड़े दिशा निर्र्देश जारी करने चाहिए।

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